नाइश हसन और शकील में भिडन्त : माजरा क्या है

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: एक-दूसरे के सिर कलम करने पर आमादा हैं यह दोनों खेमों के शातिर तलवारबाज : अब तक एक  ने भी खुलासा नहीं किया कि असल झगड़ा की जड़ क्या है : साझी दुनिया ने शकील सिद्दीकी को दुत्कार कर निकाला और प्रलेस ने भड़ाक से दरवज्जा बंद कर लिया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक की पहचान मुस्लिम महिलाओं के हक-ओ-हुकूक के लिए जुझने के तौर पर है। जबकि दूसरे की पहचान का सबब है उसकी जुझारू लेखन का। यह दोनों ही लोग खुद को रेडिकल एक्टिविस्ट  के तौर पर पहचान दिलाने के लिए जुटे रहते हैं। लेकिन अब इन दोनों के बीच अब चरित्र को लेकर खूं-रेजी का माहौल बन चुका है। लेकिन हैरत की बात है कि असल तक यह पता ही नहीं चल पा रहा है कि इन दोनों के बीच इस भयानक युद्ध का मूल कारण क्या  है।

आपको बता दें कि यह झगड़ा लखनऊ से शुरू हुआ है। करीब तीन महीना पहले। अचानक ही लखनऊ के खासे जाने-पहचाने लेखक का नाम है शकील सिद्दीकी। लखनऊ के ही रहने वाले हैं शकील जी। लेखन जगत में उनकी एक अलग छवि है। करीब 45 बरसों से वे इस मोर्चे पर नाम कमा चुके हैं। प्रगति लेखक संघ में भी वे खासे दखल रखते हैं। कुलमिलाकर वामपंथी और प्रगतिशील रंग है उनका। महिलाओं के एक संगठन साझी दुनिया से भी भी जुड़े हैं शकील सिद्दीकी।

उधर दूसरे प्रतिकूल धुरी पर जमी हैं नाइश हसन। कोई आठ-दस साल पुराना प्रगतिशील चेहरा है उनका। हालांकि वे शुरूआत में उन्होंने खुद को आम महिलाओं के लिए काम शुरू किया, लेकिन पिछले करीब छह बरसों से वे केवल मुस्लिम महिलाओं के मोर्चे पर जमी हुई हैं। नाइश का नाम तब अचानक वे आसमान पर चमका जब उन्होंने मुस्लिम तौर-तरीकों में रेडिकल तब्दीलियों के लिए जेहाद छेड़ा और शुरूआत अपने खुद के विवाह से शुरू किया। उस दौर में उनकी शादी में रस्मों को लेकर खासी सुर्खियां बटोरी थी नाइश ने।

लेकिन अचानक तब हंगामा खड़ा हो गया जब साझी दुनिया नामक संगठन ने शकील सिद्दीकी को बेइज्जत कर अपने संगठन से निकाल बाहर कर दिया। हालांकि इसकी खबर मिलने पर शकील भागे-भागे साझी दुनिया के दफ्तर पहुंचे और अपने पक्ष में दलीलें भी दीं, लेकिन बात बनी नहीं। उन्होंने बाकायदा एक माफीनामा तक तैयार करके साझी दुनिया को भेजा, लेकिन वह भी खारिज हो गया। यह भी होता तो भी गनीमत थी। लेकिन महिलाओं के संगठन से लेकर अचानक उनका मामला सीधे प्रगतिशील लेखक संघ की छत को धराशाई करने लगा। पता चला है कि नाइश हसन के कहने पर रूपरेखा वर्मा ने प्रलेस से शकील के खिलाफ खासी पैरवी की। नतीजा यह हुआ कि प्रलेस से भी शकील को बाहर का रास्ता दिखा गया।

मगी यह आश्चर्यजनक है कि इस पूरे कर्मकाण्ड में कोई भी पक्ष कोई भी जुबान नहीं खोल रहा है। न नाइश, न शकील, न साझी दुनिया और ना ही प्रगतिशील संघ, किसी ने भी शकील सिद्दीकी के खिलाफ हुई कार्रवाई के बारे में कोई भी सार्वजनिक टिप्पणी करने से अपनी जुबान सिल रखी है। यह अजब मामला है और जाहिर है कि शर्मनाक भी। क्योंकि इसके पहले यूपी और खास कर लखनऊ के साहित्य या महिला संघर्ष की जमीन पर ऐसा कोई भी बड़ा काण्ड अब तक दर्ज नहीं हो सका है।

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