देहरादून में रोज ही सजती है बाग-बागीचों की अनोखी महफिल
14 लाउडस्पीकरों से पूरा दिन सुनाया जाता है पेडों को संगीत
संगीत लहरियों पर जब इंसान झूम सकता है तो पेड-पौधे क्यों नहीं
न तो यह वृंदावन है और न ही हैंगिंग गार्डन ऑफ बेबीलोन। फिर भी इस बाग को देख दिल बाग-बाग हो जाए। बाग अनोखा है और बागबां भी। अनोखा इसलिए कि पौधों को सींचने में यहां पानी के साथ प्यार भी उड़ेला जाता है। बागबां को लगता है कि लोरी पर मचलते उनके पौधे जवां भी जल्दी होते हैं। जब संगीत के असर से जीव-जंतु झूमने लगते हैं तो पेड़ पौधे क्यों नहीं। आखिर उनमें भी तो जीवन है।
इसी आधार पर दून के इकबाल ने अपने ख्वाबों की बगिया सजायी। विज्ञान इसे प्रमाणिक माने या नहीं, लेकिन इकबाल इस विश्वास को जी रहे हैं और शिद्दत के साथ जी रहे हैं।
राजधानी देहरादून से 22 किलोमीटर दूर सहसपुर ब्लाक के थान गांव की पहाड़ी से आती संगीत की आवाज पर आने-जाने वालों के कदम ठिठक जाते हैं। जब वे आगे बढ़ते भी हैं तो दूर तक गूंजती सुर लहरियां उनका पीछा करती महसूस होती हैं। यह चौधरी इकबाल सिंह का बागीचा है। इसमें सेब, अमरूद, संतरा, कीनू, नाशपाती आदि के पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं। 14 स्पीकरों से बाग के वाशिंदों को सुबह नौ बजे से शाम ढलने तक संगीत सुनाया जाता है।
मूल रूप से यूपी के फतेहपुर (मुजफ्फरनगर) निवासी श्री सिंह 1968 में देहरादून आए और यहीं के होकर रह गए। चार साल पहले उन्होंने थानगांव में 32 बीघा भूमि खरीद बागीचे का रूप दिया और विभिन्न प्रजाति के 4500 पौधे रोपे। बकौल श्री सिंह- मैं सोचता था कि जब संगीत पर मनुष्य झूम उठता है तो पौधे भी जरूर झूमते होंगे। दो साल पहले इसके लिए म्यूजिक सिस्टम लगाया और पुराने गीत बजाने शुरू किए। तीन-चार माह बाद इसका असर भी दिखने लगा। अब जल्द ही स्पीकरों की संख्या 14 से बढ़ाकर बढ़ाकर 40 की जा रही है।
संगीत पर अपने प्रयोग के समर्थन में चौ. इकबाल तर्क देते हुए कहते हैं चार साल पहले उनके साथ ही दूसरे गांव में फलदार पौधे लगाने वाले व्यक्ति के पेड़ों पर अभी तक फल नहीं आए हैं, जबकि वे तीन फसलें ले चुके हैं। वह बताते हैं कि शिमला व गढ़मुक्तेश्वर में भी पौधों पर संगीत के ऐसे प्रयोग सफल हुए हैं। संगीत का पौधों पर असर पडऩे का अभी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लेकिन, कई जगह लोगों ने पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बागीचों में म्यूजिक सिस्टम लगाए हैं। साभार दैनिक जागरण