मुसलमानों ! अरे आपस में बातचीत करो, अफवाहबाजी नहीं

दोलत्ती

: बातचीत डॉक्‍टरों पर हमले को लेकर : जाहिलों ने भड़काया कि कोरोना टेस्ट के नाम पर लगते हैं ज़हरीले इंजेक्शन :
हसन उस्‍मानी
लखनऊ : कल मेरी बात मेरे कज़िन से हुई जो उज्जैन में हॉट स्पॉट एरिया में हैं। कोरोना उनकी दहलीज़ तक पहुँच चुका है तो ज़ाहिर है कि पैनिक भी होगा ही। लेकिन उन्होंने ही बताया कि उनके बेस्ट फ्रेंड को आइसोलेट किया गया है क्योंकि उनके फादर कोरोना पॉज़िटिव आए थे,
पहली महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ‘पिता’ कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे, जो 65+ हैं, वे ‘ठीक’ हो चुके हैं, बिल्कुल नॉर्मल हैं, फिर भी एहतियातन पूरे परिवार को आइसोलेट करके एक रिज़ॉर्ट में रखा गया है, जहाँ उनकी बहुत अच्छी देखभाल की जा रही है, मेडिकेयर और खाना भी बहुत अच्छा है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे ‘मुस्लिम’ मध्यवर्गीय परिवार के हैं।
दरअसल व्हाट्सएप मेसेज और फोन कॉल्स और बातों, अफ़वाहों में यह संदेश चल पड़ा था कि मुस्लिमों को क्वारन्टीन करने के नाम पर ले जाकर अलग थलग पटक दिया जा रहा है, कोई चिकित्सकीय सहायता नहीं दी जा रही, साफ़ पानी और खाने की भी क़िल्लत है, वहीं कुछ जाहिलों ने पता नहीं किस विद्वेषपूर्ण भावना से इनमें यह भी जोड़ दिया कि टेस्ट और इलाज के नाम पर ज़हर के इंजेक्शन दिए जा रहे हैं।
इसलिये अशिक्षित पिछड़े इलाकों में कई जगह मेडिकल टीम को बहुत अमानवीय बर्ताव का सामना करना पड़ा और अभी भी करना पड़ रहा है।
हालांकि लोग अलग अलग तर्क दे रहे हैं कि टीम सपोर्टिव नहीं थी, अभद्रता कर रही थी, धमकियां दे रही थी वग़ैरह, कुछ डिफेंड कर रहे कुछ डिफेंड करने से मना कर रहे
पर बेसिक बात यह समझ लीजिये, देश दुनिया के सामने यही नैरेटिव सेट हो रहा कि अमीरों की लाई यह बीमारी ग़रीबों में मुस्लिमों ने फैला दी है और अब तमाशे करके इलाज की कोशिशें नाक़ाम कर रहे हैं।
पहली बात याद रखिये, ज़हर के इंजेक्शन बस मीडिया लगा रहा है आप सबके कानों में, न कि कोई मेडिकल टीम किसी प्रभावित या प्रभावित होने की आशंका वाले व्यक्ति को, दूसरी बात, हमारे यहाँ अभी तो स्थितियां इतनी ख़राब हुई नहीं हैं कि मेडिकल केयर न मिले ज़रूरी, इसलिये बहुत अच्छे से ख़याल रखा जा रहा है और लोग ठीक हो रहे हैं लेकिन यही रवय्या, यही जहालत, यही हिंसक बर्ताव रहा तो स्थितियां वाक़ई बेक़ाबू होती जाएंगी, हम लम्बा लॉक डाउन झेलने की हालत में वैसे भी नहीं हैं।
अफ़वाहों पर यक़ीन करने की बजाय और कुछ अफ़वाह है या हक़ीक़त, इस पर यक़ीन करने के लिए उनसे या उनके परिजनों से बात करें, जो वाक़ई पीड़ित हैं, न कि हर बात को सच मान लें…..
कोरोना से आसानी से रिकवरी की जा सकती है, की जा रही है लेकिन यह जो इमेज ख़राब हो रही है, उससे लंबे समय तक नहीं उबर पाएंगे याद रखें……
और जो लोग नफ़रत की खंदक चौड़ी करने में लगे हैं, वे भी याद रखें, पीड़ितों का तिरस्कार करने से वे सेफ नहीं रह पाएंगे। कोरोना एक दो महीने में जाने का नहीं है। कभी क़ाबू में आता दिखेगा, कभी तेज़ी से फ़ैलता, बारिश और सर्दी में क्या हाल होगा, हमें नहीं पता अभी। तो हमें सीमित संसाधनों का उपभोग करते, सिलेक्टिव लॉक डाउन में जीने की आदत डाल लेना चाहिये। हेल्दी लाइफस्टाइल मेंटेन करें और प्रशासन और मेडिकल टीम का पूरा सहयोग करें न कि उनकी और अपनी मुश्किलें बढ़ाएं, हालात वैसे ही कम मुश्किल नहीं…….
(बाराबंकी के मूल निवासी और राजधानी में व्‍यवसाय कर रहे हसन उस्‍मानी ने यह स्‍टोरी अपनी वाल पर शेयर की है। यह कहानी उनकी एक रिश्‍तेदार नाजिया नईम की है जो आयुष में चिकित्‍सक है। नाजिया उज्‍जैन की हैं, लेकिन भोपाल में स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी स्‍वर्णवाणी पत्रिका का संपादन कर रही हैं। )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *