बड़ा दारोगा जी ! सूजी है ?

सैड सांग

: चाहे मथुरा कांड हो या फिर काशी की अभूतपूर्व डकैती, वजह है मुखबिरों की उदासीनता : जरा उन आधारों को टटोलने की जहमत फरमाइये, जहां दर्द का सोता निकलता है : हम नहीं कहते कि पुलिसवाले बहुत ईमानदार होते हैं, लेकिन उनकी पीड़ा भी तो देखिये, आप दहल जाएंगे : बड़ा दारोगा-एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पुलिसवाला। यह शब्‍द ही हमारे समाज के अधिकांश ही नहीं, बल्कि 99 फीसदी जनता की जुबान पर किसी गाली से कम नहीं होता है। लेकिन इस गाली के भीतर घुसे उस इंसान  के दिल में कितनी पीड़ा के टांके दर्ज हैं। पुलिसवाला कि नर्क या दोजख का बाशिंदा नहीं होता है। परिग्रही भी नहीं होता। वह भी इंसान होता है। जैसे हम और आप। लेकिन हालात किसी को भी कितना तोड़-मरोड़ सकते हैं, इसे समझने के लिए आइये, यह दास्‍तान पढि़ये। यह पीड़ा है, जो खबर की तर्ज पर है। एक संवेदनशील पुलिसवाले ने इस रिपोर्ताज नुमा इस लेख श्रंखला को मेरी बिटिया डॉट कॉम को भेजा है।

यह समझना इसलिए जरूरी है, कि आखिरकार हमारा पुलिस महकमा पिछले कुछ बरसों के दौरान अपराधों से निपटने या ऐसे हादसों का खुलासा करने में क्‍यों असमर्थ रहा है। चाहे वह मथुरा में कई व्‍यवसाइयों की हत्‍या के बाद हुई लूट का मामला हो, या फिर वहीं के जवाहरबाग में जयगुरूदेव के अपराधी चेलों का जघन्‍य अपराध और उसे समर्थन कर रहे प्रशासन और पुलिस अफसरों की करतूतें हों, अथवा अब हाल ही बनारस में हुई 16 करोड़ रूपयों की लूट का मामला हो। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे हादसों की तनिक भनक तक प्रशासन-पुलिस को नहीं मिली। इतना ही नहीं, ऐसे हादसों के इतने दिनों बाद भी पुलिस उन जघन्‍य अपराधियों की पूंछ की परछाईं तक नहीं देख पायी।

कहने की जरूरत नहीं है कि यह मामला है इंटेलिजेंस का, जो पुलिस की अनिवार्य और अपरिहार्य धुरी मानी जाती है। लेकिन इस धुरी को यूपी पुलिस के बड़े दारोगाओं ने पूरी तरह नेस्‍तनाबूत कर दिया। मुखबिरों की दी जानी वाली अघोषित रकम की परम्‍परा अब पुलिस अधीक्षकों और उनके वरिष्‍ठ अधिकारियों की जेब तक पहुंचने की परम्‍परा बदल चुकी है। नतीजा या तो हलकों का दारोगा ऐसे मुखबिरों से फ्री-फण्‍ड में काम कराता है, या फिर बाजार से उगाही कर मुखबिरों की जेब गरम करता है। ज्‍यादातर मामले में तो यही होता है कि मुखबिर को ठेंगा ही दिखा दिया जाता है। यह कैसे हो सकता है कि बड़ा दारोगा मलाई चाटता रहे, और मुखबिर ठनठन-गोपाल बन कर समाजसेवा करता रहे।

और फिर केवल मुखबिर ही क्‍यों, पुलिस के दारोगाओं की भी हालत बेहद पतली है। बड़े दारोगाओं ने छोटे दारोगाओं का जीना हराम कर रखा है। किसी भी हादसे का खुलासा करने के लिए जो भी दौड़-भाग होनी होती है, जाहिर है कि वह छोटा दारोगा ही करता है। लेकिन इस कवायद में आने वाले खर्चे का दारोमदार सम्‍भालने की चुनौती  ज्‍यादातर बड़े दारोगा नहीं उठाते।

भारत नेपाल सीमा पर स्थित एक थाने के इंस्पेक्टर सुरेंद्र सिंह (बदला हुआ नाम) हाल ही में काफी परेशान थे. मामला एक बच्चे की हत्या का था. वैसे तो हत्या, लूट, डकैती आदि जैसे मामलों से पुलिसवालों को आए दिन ही दो-चार होना पड़ता है. लेकिन सिंह इसलिए मुश्किल में थे कि मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया था और जिस अपराधी पर हत्या का आरोप था वह नेपाल भाग गया था. वे बताते हैं, ‘नेताओं का दबाव एसपी पर पड़ा तो मुझे चेतावनी मिली कि एक सप्ताह में हत्यारे को पकड़ो या सस्पेंड होने के लिए तैयार रहो.

कुर्सी बचानी थी लिहाजा नेपाल में कुछ लोगों से संपर्क कर अपराधी को भारत की सीमा तक लाने की व्यवस्था करवाई जिसमें करीब 70 हजार रुपए लग गए. इस काम में विभाग की ओर से एक पैसे की भी मदद नहीं मिली, पूरा पैसा मैंने खर्च किया. जो रुपया घर से खर्च किया है उसे किसी न किसी तरह नौकरी से ही पूरा करूंगा.’

न्‍यूज पोर्टल www.meribitiya.com से बातचीत के दौरान सुरेंद्र सिंह की आवाज का लहजा धीमा मगर तल्ख हो जाता है. वे कहते हैं, ‘इन्ही वजहों से आम आदमी की नजर में हमारे विभाग के कर्मचारी सबसे भ्रष्ट हैं. लेकिन आप ही बताएं कि हम इधर-उधर हाथ न मारें तो पूरा वेतन सरकारी कामों में ही खर्च हो जाएगा और बच्चे भीख मांगने को मजबूर होंगे. और हम थाने का चार्ज लेने से इनकार कर नहीं सकते, वजह यह कि फिर हमारे माथे पर नाकारा और कामचोर का पोस्‍टर चस्‍पां हो जाएगा।’

यह पुलिस का वह चेहरा है जिसकी तरफ आम निगाह अमूमन नहीं जाती. दरअसल पुलिस शब्द जिन सुर्खियों में होता है उनके विस्तार में जाने पर भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, ज्यादती, धौंस, शोषण आदि जैसे शब्द ही पढ़ने को मिलते हैं. लेकिन पुलिस के पाले में खड़े होकर देखा जाए तो पता चलता है कि कुछ और पहलू भी हैं जिनकी उतनी चर्चा नहीं होती जितनी होनी चाहिए, ऐसे पहलू जो बताते हैं कि वर्दी को सिर्फ आलोचना की ही नहीं, कई अन्य चीजों के साथ हमारी हमदर्दी की भी जरूरत है. (क्रमश:)

यह रिपोर्ताज-नुमा यह लेख श्रंखला एक निहायत संवेदनशील पुलिस अधिकारी ने मेरी बिटिया डॉट कॉम को लिख कर भेजा है। कहने की जरूरत नहीं कि यूपी पुलिस के ऐसे दारोगा लगातार प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम के मानद संवाददाता के तौर पर शामिल होकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं। हम इस लेख-श्रंखला को चार टुकड़ों में प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसकी अन्‍य कडि़यों को पढने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

बड़ा दारोगा

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