25 मासूमों की मौत से भी आप न सम्‍भले, तो फिर हे ईश्‍वर

सैड सांग

: बस, ड्राइवर और बच्‍चे तीनों ही एकधुन में शोर बजा कर मृत्‍यु-गान गाते हैं, आपको पता ही नहीं : हल्‍ला मचाते हैं एटा के बस हादसे के मृतात्‍माएं आपको दे रही हैं चेतावनी : सोचिए तनिक कि ड्राइवर का प्रेशर-हॉर्न क्‍यों, कंडक्‍टर सीटी क्‍यों नहीं बजती :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दूर कहीं क्‍यों जाते हैं। अपने मोहल्‍ले-कालोनी में सुबह स्‍कूली बसों की पों-पों का हल्‍ला सुनिये। आपको साफ पता चल जाएगा कि जिस शोर को आप सहज एलार्म समझते हैं, दरअसल वही तो है हमारे नौनिहालों के सर्वनाश का मूल कारक।

सुना आपने?

जी हां, यही तो है वह हादसों का असली हार्न, अलार्म, चेतावनी। लेकिन हम जान-बूझ कर भी उसकी ओर से अपना झटक कर उसे सामान्‍य और सहज बात समझ कर दिमाग से हटा देते हैं। लेकिन यही तो वह मूल कारण होता है, दुबे-पांव आती मौत की खामोश पदचाप। मौत की पदचाप। हमारे और आपके मासूमों-नौनिहालों की चीखें, लेकिन हम उसे सुन कर भी अनसुना कर देते हैं।

आपने गौर किया है कि आपके बच्‍चें को आपके घर से बुलाकर स्‍कूल ले जाने वाली बस या वैन क्‍यों हॉर्न बजाती है। शोर-शोर से हॉर्न बजा-बजा कर आपके मासूम को पुकारती है। दरअसल यही तो होता है आपकी-हमारी संतानों के साथ आसन्‍न हादसों की भयावह आवाज। जोर-जोर से हॉर्न बजा कर ड्राइवर आपके बच्‍चे को बुलाता है। लेकिन पूरा मोहल्‍ला उस शोर को अनदेख कर देता है। आपको लगता है कि ड्राइवर बेहद स्‍नेह से हॉर्न बजा कर पुकार रहा है। है न, लेकिन नहीं। दरअसल यह एक साजिश है आपके, आपके बच्‍चे के प्रति एक सोची-समझी साजिश की करतूत। अब सोचिये कि यह साजिश है क्‍या

मेरी कालोनी में सुबह-सुबह के वक्‍त कम से कम चार बसें-वैन हमारे जीवन-चर्या को बुरी तरह खंगाल देती हैं। पूरा प्रशांत वातावरण इन वाहनों के चिल्‍ल-पों से दहल जाता है। मेरी कालोनी में चूंकि सरकारी अफसरों की भरमार है, ऐसे में उन्‍हें शायद बच्‍चे-ड्राइवर के इस कटुतम रिश्‍ते कैसे उन्‍हें हड़बड़ा देते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ऐसे अभिभावकों की निगाह में ऐसे बवाल किसी सहज दिनचर्या का अंग ही बन जाते होंगे।

कभी सोचा है कि आखिर आपके बच्‍चे को लेने जा रहे स्‍कूली वाहन में हॉर्न क्‍यों बजता है। सीटी क्‍यों नहीं। सीटी की चिर-परिचित मधुर चेतावनी आपके लाड़लों को पुकारती है, वह कर्णप्रिय भी होती है। जबकि हॉर्न का कर्ण-कटु हल्‍ला आपके बच्‍चे को दिन भर कटु-कसैला बनाने पर आमादा रहता है। सुबह-सुबह जो मृदु स्‍वर आपके बच्‍चे का दिन भर सरल, सहज और सक्रिय बना सकता है, उसका स्‍थान ले चुका है अब प्रेशर हॉर्न, जो आपके बच्‍चों के मनो-मस्तिष्‍क पर हमेशा कसैला ही स्‍वाद लादे रखता है।

दरअसल, स्‍कूली बस-वैन वाले पैसा बचाने के लिए कंडक्‍टर का खर्चा बचाने पर आमादा रखते हैं। नतीजा जो काम कंडक्‍टर का होता है, वह काम ड्राइवर से कराने की कवायद शुरू हो जाती है। अब ड्राइवर ही चालक है, कंडक्‍टर है, बस की अंदरूनी प्रशासनिक व्‍यवस्‍था का प्रबंधक भी हो जाता है।

ऐसे में उसे कम ही समय में ज्‍यादा से ज्‍यादा काम करने होते हें। शुरूआत होती है जोर-जोर से प्रेशर हॉर्न। इसके बाद से अनियंत्रित स्‍पीड, और हमलावर अंदाज। चूंकि आपके लाडले को रोमांच जन्‍मना पसंद होता है, इसलिए वह उस पर तय-ताल-धुन पर खूब नाचता है। हॉर्न से ज्‍यादा शोर तो खुद बच्‍चे भी शुरू कर देते हैं। ड्राइवर भी उसी रौ में बह जाता है। फिर तो यह रोज-ब-रोज अराजकता बनता जा रहता है। बस, ड्राइवर और बच्‍चे तीनों ही एकधुन में हल्‍ला मचाते हैं। अंतत: अभिभावकों के खाते में बचते हैं चंद आंसू।

हे ईश्‍वर ( क्रमश:)

यूपी में रोज-ब-रोज होने वाले ऐसे हादसों का विश्‍लेषण के लिए हम ऐसे हादसों के कारणों को खोजने की कोशिश कर रहे हैं। इसकी अगली कडि़यों के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- हम खुद हैं ऐसे स्‍कूली बस हादसों में कातिल

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