लखनऊ के बांके दारोगा, जिन्‍हें आज भी लोग याद करते हैं

सैड सांग

: आज एक भी दारोगा ऐसा नहीं है लखनऊ में, जिसे लोग लोकप्रिय मानते हों : पहले कभी भी किसी दारोगा ने किसी गरीब पर सितम नहीं ढाया, अब तो बुजुर्गों-महिलाओं का मकान कब्‍जा कराते हैं : कई दारोगा-दारोगिनें तो इश्‍क में कातिल तक हो चुकीं : लखनऊ के दारोगा- एक

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजधानी में एक बच्‍चे की लाश बरामद हुई। बच्‍चे की उम्र रही होगी करीब 11 साल की। नाम था माज। पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू की तो जांच करने वाले दारोगाओं तक के होश उड़ गये। पता चला कि माज का कत्‍ल हुआ था। और यह कोई लूट या अपहरण का सामान्‍य अपराध नहीं था, बल्कि इसमें इश्‍क में बावले एक ऐसे शख्‍स ने यह नृशंस हत्‍या की थी, जिसका सरकारी दायित्‍व आम आदमी को सुरक्षा प्रदान कराना माना जाता है। इस हत्‍यारे का नाम था संजय राय।

एक थाने का प्रभारी कोतवाल था संजय राय। दाअसल उसे एक प्रशिक्षु दारोगा से इकतरफा इश्‍क हो गया था। इश्‍क में इम्‍प्रेशन सही पड़े, इसलिए संजय राय ने उसके छोटे भाई माज का अपहरण कर लिया, और बाद में उसकी हत्‍या भी कर डाली। माज की बहन संजय को अपना हितैषी मान कर उस पर आंख मूंद कर यकीन करती रही। उसे क्‍या पता था कि जिस दारोगा पर वह यकीन कर रही है, वही उसके मासूम भाई का कातिल है और यह सारा कुछ उसने केवल उसका शरीर हासिल करने के लिए बुना था। लेकिन उस प्रशिक्षु दारोगा की करीबी अकमल नामक एक युवक से बढ़ने लगी थी, इससे संजय बौखला गया था।

दरअसल, संजय राय इलेक्ट्रानिक सर्विलांस व पुलिस के अन्य तौरतरीकों से खूब वाकिफ था। उस ने योजनाबद्ध तरीके से आजमगढ़ से शूटर बुलाकर माज की हत्या कराई। प्रेमिका के पूरे परिवार का भरोसा प्राप्त होने के कारण उसने भयानक षड़यंत्र रचा। वारदात में अकमल को फंसाने की तैयारी थी। माज की हत्या के बाद उसने ही प्रशिक्षु दरोगा के परिवार के कान फूंके। इस पर अकमल पर शक जताया गया। इसके साथ संजय राय ने पुलिसकर्मियों को भी अकमल को पकड़ने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। एक हफ्ते तक इंतजार के बाद उसने माज की बुआ को फोन करके हालचाल पूछा और अपने स्तर से अकमल की तलाश शुरू कर दी। उसका इरादा अकमल को ठिकाने लगाने का था। इस बीच पुलिस को साजिश की भनक लग गई। अकमल को हिरासत में लेकर पूछताछ की और उसे गुप्त स्थान पर छुपा दिया गया था।

जी हां, यह है आजकल के दारोगाओं की असलियत। कभी कोई खुद ही लूट में लिप्‍त है, तो कोई जमीन-जायदाद  पर कब्‍जा करने-कराने में जुटा है। कोई केस में उल्टा फांसने के लिए लाखों रूपयों की उगाही में जुटा है तो कोई अपराधियों से मिल जुल कर निर्दोष और मासूम लोगों को जेल भिजवा रहा है। ऐसे दारोगाओं की करतूतों में निशातगंज के आर्य कन्‍या विद्यालय के पीछे एक 90 वर्षीय दम्‍पत्ति को बेदखल कर उसका मकान फर्जी कागजातों के बल पर कब्‍जा कराने जैसी जघन्‍य हरकतों में शरीक है। अब दीगर बात यह है कि यह बुजुर्ग दम्‍पत्ति आज भी सड़क पर उस मकान के बाहर बाकायदा धरना दिये बैठे हैं।

श्रवण साहू की हत्‍या के बारे में अगर यह कहा जाए कि यह हत्‍या तो दारोगाओं ने ही खुद करायी थी, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दरअसल श्रवण स्‍थानीय गुंडे अकील के इशारे पर घुटने टेकने को तैयार नहीं थे। इसीलिए श्रवण को फंसाने और फिर उन्‍हें निपटाने की साजिश अकील ने की, और उसके सहायक बने कई दारोगा लोग।इनमें क्राइम ब्रांच के दरोगा धीरेंद्र शुक्ला, सिपाही धीरेंद्र यादव और अनिल सिंह सहित कई दरोगा-सिपाहियों के नाम सामने आए। खाकी के वेष में इन अपराधियों ने तो बेगुनाहों को जेल भेजने में भी हिचक नहीं दिखाई।असलहे का इंतजाम तक कर डाला। अपने ही विभाग की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपने ‘कुकर्म’ को गुडवर्क में तब्दील करने में जुट गए। यह सब जांच में सामने आया। एसएसपी ने दरोगा धीरेंद्र शुक्ला और सिपाही धीरेंद्र यादव व अनिल सिंह को बर्खास्त कर दिया।

ताजा मामला तो लखनऊ की युवा महिला पत्रकार वेदिका चांदनी गुप्‍ता का है। चांदनी के बुजुर्ग मकान पर स्‍थानीय कुछ दबंग और अपराधियों ने फर्जी कागजातों के बल पर कब्‍जा करने की साजिश की थी। घरवालों ने जब हमलावरों पर भिड़ने की कोशिश की, तो घरवालों पर जानलेवा हमला कर वे भाग निकले। मामले की खबर पुलिस को दी गयी तो रिपोर्ट तो दर्ज हो गयी, लेकिन चंद घंटों के बाद ही कई संगीन धाराओं को पुलिस ने रिपोर्ट से निकाल दिया। इस पर जब महिला पत्रकार ने पुलिस पर शिकायत की तो दारोगा ने बेहद अभद्रता से बात की और धमकी दी कि अगर तुम ज्‍यादा बवाल करोगी, तो तुम्‍हारा अंजाम भी भैंसाकुण्‍ड में ही निपटाया जाएगा। बड़े पुलिस से जब शिकायत की गयी तो उनका जवाब था कि थाना का काम पुलिस करती है, योगी-फोगी जैसे नेता-मंत्री केवल अपना कमीशन वसूलते हैं।

17 मई को तालकटोरा थानान्तर्गत बाला जी मंदिर के बाहर पारा निवासी अम्बरीश दूबे (पत्रकार) मंगलवार रात दर्शन करने गये थे तभी वहां मौजूद दारोगा अनिल सिंह अपनी वर्दी का रौब दिखाते हुए बोला गाडी किनारे लगाओ। इसके बाद पत्रकार ने कहा रुको लगाते है।  इतने पर दारोगा अनिल सिंह पत्रकार को धक्का दे दिया और मारपीट पर उतारू हो गया। साथ ही साथ पत्रकार को जान से मारने कि धमकी देते हुए डंडे से जानलेवा हमला बोल दिया।

पत्नी अर्चना दूबे के मुताबिक उनके पति को कई बार डंडे से दारोगा ने मारा जिससे उनकी हालत गंभीर है। दारोगा द्वारा पत्रकार को बेहरहमी से मारते  देख लोगो का जमावड़ा लगा गया और मंदिर दर्शन करने आये भक्तो से दारोगा से जैसे तैसे पत्रकार को बचाया। इन दिनों संविधान के चौथे स्तम्भ पर हो रहे हमले के बाद भी पुलिस कोई कार्यवाही नही करती क्योंकि कहीं न कही इसमें पुलिस के बड़े अफसरों की भी मिलीभगत है।

अभी तीन दिन पहले ही स्‍थानीय अपराधियों की दबंगई, गुंडई और असमाजिक हरकतों पर जब कुछ लोगों ने ऐतराज किया तो बदमाशों ने उन पर हमला कर दिया। बाद में परेशान लोग थाने पर पहुंचे और रिपोर्ट दर्ज करायी। इसके बाद से पुलिस दारोगा का तांडव शुरू हो गया। आलमबाग-पारा इलाके के एक मामले में रिपोर्ट लगाने के लिए एक दारोगा ने डेढ़ लाख रूपयों की मांग की, लेकिन पैसा न मिलने पर उलटे वादी को ही जेल की ओर रवाना करा दिया। वह तो गनीमत थी कि इस मामले पर ऊंचे स्‍तर तक पैरवी हुई, वरना वह पूरा परिवार तबाह हो जाता।

प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम की टीम द्वारा यह रिपोर्ट श्रंखलाबद्ध तैयार की जा रही है। इसकी अगली कडि़यों में लखनऊ की महिला दारोगाओं और जुझारू दारोगाओं की कहानियां दर्ज होंगी। (क्रमश:)

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