पीठ पर अम्‍बानी का हाथ रखने पर खामोश रहा विपक्ष, अब नोट-बंदी पर हल्‍ला क्‍यों

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: जियो-लां‍चिंग में मॉडल बने थे नरेंद्र मोदी, फिर भी विपक्ष खमोश रहा : निजी बैंकों के रवैये पर क्‍यों नहीं बोल रहा है विपक्ष : विरोध तो निजी हाथों में इज्‍जत गिरवी करने पर होना चाहिए था, नोटबंदी पर क्‍यों :

कुमार सौवीर

लखनऊ : नोट-बंदी को  लेकर पूरी नौटंकी चल रही है। चाहे वह नोट-बंदी के खिलाफ हो या फिर उसके समर्थन में। हैरत की बात तो यह है कि कोई भी खेमा इस मामले की विवेचना केवल गुण-दोष के आधार पर ही नहीं कर रहा है। ऐसे लोगों का पक्ष केवल पक्षपात तक ही सीमित है। साफ है कि इस पक्षपात का आधार केवल राजनीतिक निष्‍ठा ही है, सामाजिक और राष्‍ट्रीय हित तो कत्‍तई नहीं।

मैंने तीन दिन पहले एक टिप्‍पणी की थी कि:- संसद में इस वक्‍त जोरदार हंगामा चल रहा है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि:- प्रधानमंत्री ने सबको भ्रष्टाचारी बता दिया है, इसलिए नरेंद्र मोदी विपक्ष से माफी मांगें। मेरा तो साफ कहना है कि विपक्ष ही तो भ्रष्‍टाचारियों के पक्ष में हंगामा कर रहा है। बोलिये, है कि नहीं ?

इस मामले में करीब डेढ़ सौ से ज्‍यादा लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। इनमे से केवल एक ही व्‍यक्ति ने दो-टूक शब्‍द में लिखा कि यह हंगामा भ्रष्‍टाचारी विपक्ष की करतूत नहीं है। यह जो भी हंगामा शुरू हो गया है वह देश के विरोध में नहीं, बल्कि सरकार की नोट-बंदी नीति के खिलाफ है। इस व्‍यक्ति ने साफ लिखा कि जो लोग भी नोट-बंदी के मामले को भ्रष्‍टाचारी विपक्ष का हाथ देख रहे हैं वे दरअसल मूर्ख हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है।

मेरे एक करीबी मित्र है श्रीप्रकाश वर्मा। वे भी मेरी बात का विरोध कर रहे हैं। उनकी टिप्‍पणी के बारे में मैंने जो भी लिखा उसका मुजायका देखिये:- पते की बात की है आपने। विपक्ष अगर विरोध नहीं करेगा तो लोकतंत्र की साख ही नहीं, उसकी हत्‍या तक हो जाएगी। लेकिन एक बात जरूर है कि विरोध को अपने विरोध का औचित्‍य भी साबित करना होगा। अपनी नीयत भी जतानी होगी। अगर ऐसा न हुआ तो उससे भी बुरा और भयंकर हो जाएगा। दिल पर हाथ रख कर बोलिये, सच बोलिये। झूठ तो आप हमेशा बोलते और सोचते ही रहे हैं। अपनी आदत और सिफत के चलते। कभी जानबूझ कर, या तो कभी अनजाने में। लेकिन आपकी ऐसी हरकतों ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है, ऊ्फफ।

और हां, मुझे तो लगता है कि विपक्ष तो तब विरोध करना-बोलना चाहिए था, जब जियो की लांचिंग में मोदी ने पूरे देश को मुंह चिढाया था, अम्‍बानी के अस्‍पताल के उद्घाटन में नीता का हाथ जोड़ा था और मुकेश के हाथों को अपनी पीठ पर थपथपवाने की बेहूदी हरकत की थी। तब यह विपक्ष कहां था। इसका जवाब तो देना ही होगा विपक्ष को और विपक्ष की करतूतों की हिमायत करने वालों को भी। अगर ऐसा न हुआ तो फिर इससे बेहतर तो तानाशाही ही बेहतर होगी। क्‍यों  कि तब यह संदेश स्‍पष्‍ट हो जाएगा कि सरकार   के फैसलों पर विरोध जताने के लिए होने वाली विपक्ष की सारी की सारी कवायदें केवल पाखंड ही हैं।

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