श्रीमद्भवदगीता पढ़कर स्थिरप्रज्ञ पुरुष बनो, हम में सेक्‍स न खोजो

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: गोरखपुर की गीता-वाटिका में रीवा को टोक दिया गया जींस पहनने पर : दरवाजे बन्‍द करोगे तो हम खिड़की तोड़ कर बाहर निकल पड़ेंगी : क्‍या आपको हमारे शरीर का हर अंग सेक्‍सुअल ही लगता है : हमें मत रोको, तुम्‍हें दिक्‍कत हो तो जाओ, गांधारी बन जाओ : लड़कियों को जिस ओर से देखेंगे, उधर से सेक्स दिखेगा :

रीवा सिंह

महेश शर्मा हमारे संस्कृति मंत्री हैं। इन्होंने ‘समझाया’ कि विदेशी महिलाओं को यहां (विशेषकर धार्मिक स्थलों पर) स्कर्ट नहीं पहनना चाहिए। फिर साहब ने बाद में सफाई भी दी कि सुरक्षा के लिहाज़ से कहा था।

ये बात इन्होंने विदेशी महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में कही क्योंकि भारतीय महिलाओं से तो यही उम्मीद की जाती है कि उनका दुपट्टा इधर से उधर न हो। भले ही गली-मोहल्ले के सभी होनहार उस दुपट्टे को चीरते हुए अपनी आंखों से सबकुछ स्कैन कर लें।

स्कर्ट नहीं पहनी जानी चाहिए ऐसा सुरक्षा के लिहाज़ से कहा गया है तो बीते वर्ष बदायूं में दो लड़कियों का बलात्कार कर उन्हें नीम के पेड़ की शोभा क्यों बना दिया गया था? वो तो सलवार कुर्ते में थीं। कुछ साल पहले हिजाब करती लड़की का मुरादाबाद में बलात्कार क्यों हुआ?

और साहब, ये क्या तर्क है कि आप उत्तेजित न हों, आप की वासना शांत रहे इसलिए हम स्कर्ट न पहनें। इसलिए हम खुद को परत-दर-परत ढकी रखें। आप खुद अपने लिए कोई उपाय क्यों नहीं ढूंढते? उन होने वाले गुनाहगारों को स्थिरबुद्धि बनने की सलाह क्यों नहीं देते जो हमें देखने के बाद शांत नहीं बैठ पाएंगे? आपको हमारे शरीर का हर अंग सेक्शुअल ही लगता है। अगर नहीं तो बताइए टांगों का सेक्स और उत्तेजना में क्या काम? और अगर काम है फिर ऐसे तो नज़रों का भी काम है। तो कल से आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी बनना उचित रहेगा न?

एक बार मैं एक आंटी के घर गई थी। उन्होंने मेरा स्लीवलेस टॉप को देखकर कहा था – बेटा तुम अच्छी लड़की हो। लड़कियों को ऐसे नहीं घूमना चाहिए। मुझे समझ नहीं आया तबतक उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई। ऐसे खुले बांह लेकर घूमना अच्छा नहीं माना जाता न। देखो कंधे से लेकर पूरी बांह खुली है, लोग अच्छा नहीं समझते। ऐसा नहीं कि उन्होंने आधुनिकता नहीं देखी थी। उनकी बेटी खुद निक्कर पहनकर सड़कों पर बाइक दौड़ाती थी। निक्कर में पैर खुले रहते हैं, मेरे हाथ खुले थे। उनके अनुसार हाथों का खुला रहना अजीब था।

गोरखपुर में कुछ ही पर्यटन स्थल हैं, उनमें से एक है गीता वाटिका। घर के बहुत पास पड़ता है। मैं वहां अपनी दोस्त के साथ गई थी। घूमने का मन नहीं था। पर हम बाहर थे और वो जगह अच्छी है इसलिए चले गए। हमें भगवान के दर्शन नहीं करने थे, उद्यान नहीं देखने थे, सिर्फ़ बातें करनी थीं। हम घूम रहे थे तबतक किसी ने रोका – आप लोग अंदर मत जाइएगा।

मैंने कहा – अंदर नहीं जाएंगे, बस इधर ही घूमेंगे।

तब तक सुनती हूं – यहां जींस अलाउड नहीं है। दिमाग झन्ना गया।

पलटकर देखा तो कुछ लड़के भी जींस में नज़र आए। मैंने कहा – उन्होंने जो पहना है वो भी तो डेनिम है। उनका जवाब था – लड़कियों के लिए नहीं अलाउड है।

रश्मि ने मुझे रोका फिर भी दिमाग खराब था इसलिए मैंने इतना पूछ ही लिया कि हमें डेनिम में देखकर कृष्ण भगवान मूर्ति से बाहर निकल आएंगे क्या? फिर थोड़ी बहस हुई। मुझे मंदिर परिसर में नहीं जाना था। दोस्त ने कहा कि घर चलते हैं। मैंने कहा कि अब मंदिर भी चलेंगे।

बहुतों ने रोका पर हम गए। तो वहां के लोगों को भगवान ने बताया था कि डेनिम से संस्कृति का विनाश हो रहा है। कुछ दिनों पहले एक तस्वीर लगाई थी जिसमें एक तरफ का कंधा खुला था। कई महानुभावों की संस्कृति उससे भी हाशिए पर चली गई। मैंने सिर्फ़ संस्कृति की परिभाषा पूछी थी और संस्कृति व सभ्यता में अंतर पूछा था। संस्कृति के किसी पुरोहित ने जवाब नहीं दिया।

आप हमें सुरक्षा देना चाहते हैं तो ऐसे हालात बनाएं जहां हमें आप से सुरक्षा लेने की ज़रूरत ही न पड़े। आप अपनी संस्कृति का पतन नहीं देख सकते तो स्कर्ट की साइज़ नापने की बजाय खुद श्रीमद्भवदगीता पढ़कर स्थिरप्रज्ञ पुरुष हो जाएं। आपका सबकुछ आपके अनुरूप चले इसके लिए हम से ‘सुधार’ की अपेक्षा न करें।

आप हमें जितना दबाएंगे, हम उतना बाहर निकलेंगे। मैं वैसे सप्ताह के सात दिन घर में रह सकती हूं। पर अगर कोई दरवाज़े बंद कर कैद करने की कोशिश करेगा तो खिड़की तोड़कर बाहर आ जाऊंगी। क्या गलत है और क्या सही ये हम भी समझते हैं। आप मंगल ग्रह से इंटेलिजेंस में क्रैश कोर्स कर के नहीं आए जो सारी बुद्धि आपके हिस्से ही आई है।

मई में पैर में चोट लगी थी इसलिए इस वर्ष शॉर्ट्स से बिल्कुल दूर हूं। पिछले वर्ष की दो तस्वीरें अपने संस्कृति मंत्री जी को समर्पित। मैं इन कपड़ों में रात के 11 बजे अकेली घर आई थी कभी। आपकी संस्कृति का तो पता नहीं पर मेरे हिस्से की स्वच्छंदता सुरक्षित थी।

रीवा सिंह दैनिक अमर उजाला की सम्‍पादकीय टीम से सम्‍बद्ध हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *