मर गया अघोर-श्रेष्‍ठ काल बाबा

सैड सांग

: शायद अब नहीं पैदा हुआ करेंगे ऐसे सरल संत, हो गया अवसान : धर्म की दूकान में पिछड़ गये थे काल बाबा : हमेशा बेहद सरल और स्‍पष्‍ट-वक्‍त रहे कालबाबा को लोग किसी तांत्रिक की तरह भी पूजते थे : कौन जाने, वाकई पहुंचे हुए अघोरी रहे हों काल बाबा, लेकिन मेरे तो पिता ही रहेंगे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : उस तक में पिछले दस बरसों तक बेहद अशांत था। जीवन में भोजन और अपने आश्रितों की भूख का समाधान करने के लिए जयपुर, जोधपुर, पाली, जयपुर, जौनपुर और न जाने कहां-कहां तक पहुंच कर वक्‍त के थपेड़े सहन करता रहा था। अपनों का पेट भरने के चक्‍कर में अपनी ही भूख भूल गया। लेकिन न माया मिली और न राम। जौनपुर में मैं दैनिक हिन्‍दुस्‍तान का जिला प्रमुख बना, तो मक्‍कारी मेरे पीछे पड़ गयी। आपस में कूकुर-घोड़ा की तरह लड़ते-भिड़ते जौनपुर के बाभनों-ठाकुरों की जोड़ी ने मुझे जौनपुर से बाकायदा बेइज्‍जत करने भगाया। लेकिन गनीमत रही कि इसके पहले ही मैं खुद ही सन्‍तत्‍व प्राप्‍त चुका था। बिलकुल मस्‍त। पहले काफी ज्‍यादा था, अब परिपूर्ण। बेधड़क। वजह था काल बाबा। ताजा खबर यह है कि आज इस महानतम अघोरी संत ने अपने प्राण त्‍याग दिये हैं।

काल बाबा, यानी एक अघोरी। उसे लोग पीठ पीछे मां-बहन-बेटी की गालियां देते हुए सस्‍सुर अघोरी साला कहते थे, लेकिन सामने पड़ने पर बाबा जय कीनाराम, या फिर पांलगी। यह है समाज का चरित्र। पहले तो मैं केवल सुनता था, लेकिन बाद में समस्‍याओं-बदहालियों के ढेर पर बैठ कर खुद को सुलगते हुए देखने के बाद धीरे-धीरे पता चलने लगा कि वाकई इस समाज के अधिकांश सन्‍तु-रेशे दरअसल दर-मादर—– होते है।

मधुकर तिवारी नामक एक नराधम-कीट ने मेरे खिलाफ खूब बिसातें बिछायीं, साजिशों के पांसे फेंके, लेकिन इसी बीच कई संतों ने मुझे अंगीकार तक किया। इनमें से कई संतों में से एक था इंद्रभान सिंह उर्फ इंदू सिंह, और दूसरे किनारे पर बार एसोसियेशन के यतीन्‍द नाथ त्रिपाठी। यह तो लौकिक जगत से थे, लेकिन लौकिक स्‍वार्थो से योजनों-जन्‍मों दूर। लेकिन अचानक एक ऐसा संत और मिला, जो अलौकिक और अपरा-शक्ति से सम्‍पन्‍न था। नाम था काल बाबा। काल बाबा से तब मेरी मुलाकात तब हुई जब मैं अपनी एक रिपोर्ट श्रंखला छाप रहा था, जिसका नाम था जो पहुंचे जमीं से आसमान तलक।

काल बाबा एक अघोरी थे। समाज के सभी कोनों को समेटने की प्रक्रिया में मैंने काल बाबा को खोजा। पचहटिया वाले उनके आश्रम तक जाने के पहले मैंने पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पंकज सिंह से अनुरोध किया था कि वह मेरे साथ चले। पंकज चूंकि अप्‍लाइड सायकोलॉजी विभाग में शिक्षक था, इसलिए मुझे इन सारे सामाजिक तंतुओं को समझने के लिए वह हमेशा तत्‍पर रहता था। मैं तो अभी अपना परिचय तक नहीं दे पाया था, कि अचानक काल बाबा मेरे सामने किसी विनम्र-कालीन की तरह बिछ गये। परिचय हुआ। मेरे बारे में खोद-खोद कर पूछा।

अचानक एक मरीज आया। कई लोग उसे सम्‍भाल कर लाये थे। वह बुरी तरह कांप रहा था। आश्रम पर पहुंचते ही वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा और लगा गिड़गिड़ाने-बड़बड़ाने। बाबा ने साथ में आये लोगों को गाली देकर कहां:- भोंस—- के। उस मादर—- को छोड़। लपक कर दारू का खम्‍भा लेकर आओ भों—-। अंग्रेजी की बोतल।

बाइक स्‍टार्ट हुई, वह आदमी बस पांच मिनट में ही पूरा खम्‍भा-बोतल लेकर पहुंचा, बाबा को खम्‍भा थमाया और उस मरीज को सम्‍भालते हुए खड़ा करने की कोशिश की। बाबा ने यह कोशिश देखी, मरीज के समर्थन में खड़े लोगों को भद्दी गालियां दीं। बाबा में शिव का रूद्र-भाव स्‍पष्‍ट परिलक्षित हो रहा था। बाबा ने बोतल का ढक्‍कन खोला। काली-शाली-खाली जैसे न जाने किन देवताओं-अघोरियों के लिए गालियां देते हुए कई बूंदे अर्पित कीं। और फिर गटागट आधी बोतल पेट के भीतर गटक ली। फिर जमीन पर लम्‍ब-लेट पड़े बड़बड़ाते मरीज को गालियां देते हुए ललकारा:- चल मादर—उठ। इधर आ। ओम झींकचल छूं ककालकमचातण्‍यालबहं कचायाहिेश्‍हहे करहहकचाहचकेा

हैरत की बात थी कि वह शख्‍स जो अब तक ठीक से सांस तक नहीं ले पा रहा था, उठ कर लड़खड़ाते हुए खड़ा हुआ और बाबा के चरणों में लेट गया। साष्‍टांग। बाबा लगातार उसे गालियां देते हुए न जाने कैसे अभद्र गालियां दे रहे थे। अचानक बाबा का एक दाहिना हाथ लहराते हुए उठा और उस मरीज के गाल पर रसीद हो गया। मरीज गुलाटियां मारते गिरा। लेकिन उसके फौरन दौड़ कर बाबा के चरणों पर लेट गया। बाबा ने उसके मुंह के पास अपना कान सटाया। मरीज कुछ गोंगों-गोंगों जैसी आवाज निकाल कर रहा था।

उसके बाबा बाबा ने धूनी से चुटकी भर राख-भभूत उसे दी, उप्‍पर से बोतल चार-छह बूंदें चटवा दीं। बाबा गुर्राये, तो मरीज ने एक झटके में चाट लिया। उसने दो-एक मिनट बाद बाबा के चरण छुए और लंगड़ाते हुए अपने लोगों की ओर बढ़ गया।

बाबा ने संतुष्‍ट भाव में अपनी दाढ़ी सहलायी, और बोतल से कई घूंट डायरेक्‍ट खींच डाले। फिर मुझे बेहद विनम्रता बोतल थमायी कि मैं भी पी लूं। सकपकाया था कुमार सौवीर। मैने भी कोई पौन क्‍वार्टर खींच गया। जो बचा पंकज का थमाया। वह भी हतप्रभ, पूरा खाली कर गया। बाबा मुझे निहार रहा था। बोतल खाली होने पर वह संतुष्‍ट भाव में आया। मरीज के लोगों को हुक्‍म दिया:- अंग्रेजी दारू की पांच बोतल, पांच-पांच सेर गुड़, काली उड़द, देसी घी, काला मुर्गा, सेल्‍हा चावल, कड़वा तेल, चीनी और एक काली चादर। कल लेकर लाओ।

उसके जाने के बाद मैने जब पूछा तो बाबा गालियां उलीचते हुए बोले:- ओझाई करता था। एक दिन नदी में एक लाश खींच लाया और उसकी छाती पर बैठ कर साधना करने लगा। लाश से आवाज निकल गयी तो इस मादर— की गां—- फट गयी। खैर परभू जी, कल शाम आप जरूर आना। ……..(क्रमश:)

काल बाबा। मेरी निगाह में काल बाबा मेरे किसी धर्म-पिता से कम नहीं था। मैं बाभन, बाबा ठाकुर। लेकिन हमारे रिश्‍ते व्‍यावसायिक थे। मैंं पत्रकार, वह अघोरी। लेकिन हम दोनों ने एक दूसरे को जितना सम्‍मान दिया-लिया, वह किसी सामान्‍य शख्‍स के वश की बात नहीं। काल बाबा का शरीर आज मर गया, लेकिन केवल हमारी स्‍मृतियों में ही नहीं, पूरे समाज में काल बाबा हमेशा जिन्‍दा रहेगा।

यह लेख-श्रंखला कम से कम चार या पांच अंकों तक चलेगा। इसके बाकी अंकों को पढ़ने-देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:- अघोरी काल बाबा

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