: गड़बड़ी की नासा ने, भुगतेंगी धार्मिक महिलाएं :
: ग्रह-नक्षत्रों व सूर्य-चंद्र की गति में आया भारी अंतर :
: आभासी सूर्योदय, हुई नकली शाम नासा के नाम :
: उगने-डूबने में हो गया 3 मिनट 24 सेंकेंड का फर्क :
: न लग्न सही मिल रहा और न ही सही फलादेश :
: सूर्य सिद्धांत पर बना ननाया भारतीय साफ्टवेयर :
: नासा की गणित ने बिगाड़ी ज्योतिषीय गणनाएं :
सूर्योदय का जो समय बताया जा रहा है वह नकली है, सूर्यास्त का समय भी गलत है। वास्तविक सूर्योदय व सूर्यास्त से इस आभासी उदय व अस्त के बीच तीन मिनट 24 सेकेन्ड का अंतर है। इतने अंतर में लग्न, ग्रहों की स्थिति व राशि बदल जाती है और सारा फलादेश भी। नकली सूर्योदय व आभासी शाम का समय बताने का यह काम नासा के नाम है। नासा की गणित में हुई गड़बडि़यों ने भारतीय कम्प्यूटर आधारित ज्योतिष की चाल बिगाड़ दी है। कम्प्यूटर से चिपके ज्योतिषी वर्षो से इसका शिकार हो रहे हैं।
सैटेलाइट लांच व अंतरिक्ष से जुड़ी खोजों के लिए विश्वविख्यात नेशनल एअरोनॉटिक्स एन्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की ग्रहों, नक्षत्रों, सूर्य, चन्द्र आदि से जुड़ी गणना में खासी गड़बड़ी है। पृथ्वी नारंगी के आकार में है इसलिए कणों से प्रकाश के विवर्तन से वास्तविक सूर्योदय से पहले ही सूर्य का प्रतिबिंब क्षितिज पर दिखाई देने लगता है। यही स्थिति सूर्यास्त की भी है जो सूर्य के अस्त होने के बाद भी दिखता है। नासा ने अपनी गणना में इसी आभासी सूर्योदय व नकली शाम के समय को शामिल किया है।
अखिल भारतीय विद्वत परिषद के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. कामेश्वर उपाध्याय के अनुसार नासा के आभासी सूर्योदय व सूर्यास्त तथा वास्तविक सूर्योदय व सूर्यास्त में 3 मिनट 24 सेकेन्ड का अंतर आता है। इतने में तो लग्न आदि सब बदल जाता है व फलकथन भी। डॉ. उपाध्याय के अनुसार ज्योतिष के जितने भी साफ्टवेयर बने, सबने नासा की गणित को ही पंचांग का आधार बनाया। इस समय भारतीय ज्योतिषी अपने लैपटॉप व कम्प्यूटर में इन्हीं का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत में यह आंकड़ा कोलकाता स्थित नेशनल एस्ट्रोनॉमी सेन्टर उपलब्ध कराता है। वैसे खुद नासा व उपग्रह प्रक्षेपण से जुड़ी अन्य संस्थाओं को भी इस गड़बड़ी की जानकारी है। यही वजह है कि उपग्रह प्रक्षेपण के समय यह सब 3 मिनट 24 सेकेन्ड को शामिल करने के बाद ही काल गणना करता है। दूसरी ओर पंचांग की बात करें तो यह महाभारत काल से भी पहले से प्रयोग में रहा है। इसमें सूर्य सिद्धांत का इस्तेमाल होता रहा है जो खासा सटीक है। सूर्य सिद्धांत में 432 करोड़ वर्षो की काल गणना की जा सकती है। भारतीय काल गणना में अपवर्तन व वक्रीभवन संस्कार कर वास्तविक सूर्योदय ही दिया जाता है।
दूसरी ओर नासा की गणित से दस हजार साल की कालगणना ही संभव है। अब नि:शुल्क साफ्टवेयर वाराणसी : सूर्य सिद्धांत पर आधारित ज्योतिषीय साफ्टवेयर अब तैयार हो चुका है। अमेरिका के साफ्टवेयर इंजीनियर पी वी नरसिंह राव की मदद से भारतीय वैज्ञानिक व ज्योतिषविद विनय झा ने यह साफ्टवेयर तैयार किया। इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंसेस व देश की अन्य मानद संस्थाओं के साथ ही नासा में भी शोध पत्र प्रस्तुत कर चुके श्री झा इन दिनों काशी में हैं। उनके अनुसार सूर्य सिद्धांत नाम का यह ज्योतिषीय
साफ्टवेयर नि:शुल्क उपलब्ध है। उन्होंने इससे ज्योतिषीय गणना में शुद्धता आने की आशा भी जताई।