: मोहनलालगंज के बलसिंह खेड़ा में दो साल पहले मिली थी खून से सनी एक युवती की नंगी लाश : आला पुलिस अफसर की “हां” ने बिखेर दीं यूपी की बेटियों की नंगी लाशें : कोई भी महिला अब सुतापा सान्याल को अपना आदर्श नहीं मानेगी : सरकारी कार्यशैली से गुम होता जा रहा है “ना” का आधिकार : चलिए, छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन (चार) :
कुमार सौवीर
लखनऊ : मोहनलालगंज में एक साल पहले एक युवती की पाशविक हत्या के बाद अब यूपी में बर्बरता पूर्वक मारी गयीं महिलाओं नंगी लाशों का सिलसिला बिखेर दिया है। पुलिस के आला अफसरों ने इस मामले को दबाने की साजिश की और इसके लिए नंगे झूठ की एक आलीशान इमारत खड़ा करने की कोशिश में लगा दी गयीं पुलिस की एक महानिदेशक सुतापा सान्याल। असल काण्ड को दरकिनार कर उन्होंने एक झूठी कानी बना दी। नतीजा यह कि उसके बाद अकेले लखनऊ में ही आधा दर्जन से ज्यादा युवतियों को नृशंस कर उनकी नंगी लाशों में तब्दील कर दिया गया।
आपको बता दें कि मोहनलालगंज के मारी गयी उस युवती दो बच्चों की मां थी, जिसका बड़ा बच्चा 7 साल का था, बेटी की उम्र 5 साल। पति का देहान्त गुर्दा की बीमारी में हुआ था, जिसे बचाने के लिए उसने अपना एक गुर्दा भी दान दे दिया था। वह युवती पीजीआई में ठेकेदारी पर चल रही लैब की कर्मचारी थी। वेतन पांच हजार। लेकिन कई महीनों तक वेतन नहीं देता था वह ठेकेदार। ऐसे में वह युवती कभी-कभी अपना शरीर तक बेचने पर मजबूर हो जाती थी, परिवार पालने के लिए।
जिस दिन उसकी हत्या हुई, उसे उसके ग्राहक ने महज चार सौ रूपयों के लिए अपनी देह का सौदा किया था। एक ग्राहक के लिए। लेकिन मुझे मिली सूचनाओं के अनुसार जब वहां मौके पर पहुंची तो वहां कई लोग मौजूद थे। उस युवती ने यह सौदा खारिज कर दिया और वापस लौटने लगी। इस पर वहां मौजूद लोगों ने उस पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया। मारा-पीटा, नोंचा-खसोटा। और दरिंदगी का आलम यह तक रहा कि कम से दो हत्यारों ने उसकी टांग खींच कर झटके देकर कर वहां लगे इंडिया मार्क-टू का हत्था उसके जननांग में घुसेड़ दिया। जाहिर है कि इस असह्य पीडा को वह सहन नहीं कर पायी और उसकी मौत हो गयी।
लेकिन इसके बाद कई बड़े अफसरों ने असल काण्ड पर पर्दा डालने के लिए सुतापा सान्याल की आड़ ली। सुतापा को किसी दारोगा की तरह पेश किया और मीडिया को झुठ का पुलिन्दा थमा दिया। सुतापा पुलिस के आला अफसरों में एक हैं। उनके पास अपर मुख्य सचिव के अनुरूप हैसियत है।लेकिन वे केवल अपने सम्मान, वैभव और ऐश्वर्य तक ही सीमित रहीं। यह जानते हुए भी उन्हें एक घिनौने मोहरे में तबदील किया जा रहा है, उन्होंने उफ तक नहीं किया और अपने आला अफसरों की जी-हुजूरी में ही जुटी रही। किसी बेहूदा रट्टू-तोता की तरह। नतीजा यह हुआ कि एक साल के भीतर ही करीब आधा दर्जन युवतियों की लाशें राजधानी लखनऊ कें जहां-तहां बिखेर दी गयीं।
हे ईश्वर।
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