हर घंटे एक औरत चढ़ती है दहेज की वेदी पर

सैड सांग

8233 महिलाओं को जान गंवानी पड़ी बीते बरस

नई दिल्ली : देश में दहेज के खिलाफ भले ही सख्त कानून बन चुका हो, लेकिन यह ‘बीमारी’ अभी भी समाज को बुरी तरह से जकड़े हुए है और खत्म होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर एक घंटे में एक महिला दहेज के कारण जान गंवाती है।

दहेज के कारण 2012 में जहां 8233 महिलाओं को जान गंवानी पड़ी, जबकि 2011 में इस वजह से 8618 महिलाओं की जान गई।

दहेज से जुड़े मामलों में सजा की दर पर अगर नजर डालने पर यह पता चलता है कि ऐसे मामलों में अभी भी कानून का दायरा काफी सीमित है।

सजा मिलने की दर:

2012- 32 पर्सेंट

2011- 35.8 पर्सेंट

क्या कहता है कानून

दहेज रोकथाम कानून 1961 दहेज मांगने, देने या कबूलने पर रोक लगाता है। दहेज की व्याख्या में इसे ऐसा कोई भी गिफ्ट बताया गया है जिसकी मांग की जाए या जिसकी शर्त पर शादी की जा रही हो।

क्यों बढ़ रहे हैं मामले

दहेज की समस्या सिर्फ लोअर या मिडल क्लास तक सीमित नहीं है। समाज का अमीर तबका जो सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से अच्छा है, वहां पर भी ऐसे मामले खूब हो रहे हैं। यहां तक कि हमारे समाज के पढ़े-लिखे लोग भी दहेज को ना नहीं कहते।

मौजूदा दहेज कानून में कुछ कमियां हैं जिन्हें दूर करके इसे और सख्त बनाया जा सकता है। दहेज कानून 1983 में संशोधन किए गए हैं, लेकिन अच्छे नतीजे मिलने अब भी बाकी हैं।

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