: और बोलने का साहस करने वाले किसानों को आप खालिस्तानी करार दे रहे हैं : कन्नौज के आदर्श-किसान जूझ पड़े तो मंडी अफसरों के हाथ-पांव फूले : मंडी अफसर नदारत, बिचौलियों की भीड़ :
कुमार सौवीर
लखनऊ : विकास खंड क्षेत्र कुरांव को इलाहाबाद में धान का कटोरा माना जाता है। बेशुमार धान उपजता है यहां। महंगा, बेहतरीन और स्वादिष्ट चावल पैदा करती है कुरांव की धरती। लेकिन यहां के किसानों ने इस सीजन में आठ सौ रुपये प्रति कुंतल के भाव से अपना धान व्यापारियों के हाथों सौंपा है। यही हालत है पूर्वांचल के संतकबीर नगर यानी खलीलाबाद जिले का। इस साल यहां के किसानों ने प्रति कुंतल नौ सौ रुपयों की दर से अपना धान बेचा है। हालांकि अमेठी के जगदीशपुर इलाके में किसानों ने इस साल 13 सौ रुपयों के भाव से अपना धान बेच लिया था।
सरकार की गारंटी के मुताबिक सरकारी खरीद पर इस साल किसान को प्रति कुन्तल के हिसाब से धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1867 रुपया मिलना चाहिये। लेकिन इस गारंटी का क्या अर्थ समझा जाए कि कुरांव के किसानों की जेब से करीब 1067 सौ रुपया प्रति कुन्तल की दर से धान बिचौलियों ने झटक लिया, जबकि खलीलाबाद के किसानों को 967 रुपया प्रति कुन्तल की दर से धोखा दिया गया और जगदीशपुर के किसानों को यह धोखा 567 रुपया प्रति कुन्तल की दर से दिया गया।
अब जरा कन्नौज की ओर भी नजर डाल दीजिए। यहां के रहने वाले हैं देवेंद्र नाथ दुबे। रायबरेली के डीएम और इलाहाबाद के मंडलायुक्त समेत कई पदों पर काम कर चुके हैं। श्री दुबे जी का एक भतीजा इंजीनियर बना, और बाद में एक बड़ी कम्पनी में बड़े ओहदे तक पहुंचा। पिछले बरस उसे अहसास हुआ कि नौकरी से बेहतर होगा कि वह अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करे। यह फैसला करते ही उसने अपनी नौकरी छोड़ी और कन्नौज लौट गया। इस बार की फसल उसकी आशाओं के अनुकूल रही। यानी बम्पर उपज। धान को बोरों में लाद कर वह जब मंडी पर पहुंचा, तो दो दिन उसकी ट्रालियां खड़ी ही रहीं। खरीद करने वाले मंडी-कर्मचारी और अधिकारी नदारत, जबकि बिचौलियों की भीड़ भिनभिनाने लगीं। बिचौलियों ने कि गोदाम भरे पड़े हैं। ऐसे में सरकारी खरीद नहीं हो पा रही है। बिचौलियों ने किसानों को समझाया कि जब तक गोदाम खाली नहीं होंगे, तब तक खरीद नहीं हो पायेगी। ऐसे में आखिर मंडी में कितने दिनों दिनों तक धान पड़ा रहेगा। यह भी कि जब तक सरकारी खरीद नहीं होगी, तब तक ट्राली का रोजाना किराया बढ़ता ही रहेगा। इससे बेहतर है कि वे अपना धान व्यापारियों के हाथों बेंच दें। वगैरह-वगैरह।
भतीजे ने दुबे जी से अपनी समस्या सुनाई, तो दुबे जी ने उसे जूझने की सलाह दे दी। बोले कि किसानों को एकजुट करो और अधिकारियों पर दबाव बनाओ। वही हुआ, पहले तो अधिकारियों ने धमकी देना शुरू कर दिया, लेकिन जब किसानों के तेवर कड़े ही रहे। यह देख कर अधिकारियों के पसीने छूटने लगे और धान की खरीद शुरू कर दिया।
यह हालत तब है जब प्रधानमंत्री लगातार ऐलान कर रहे हैं कि किसान को उसकी उपज पर वाजिब कीमत देने की गारंटी दे रही है, और एमएसपी से नीचे खरीद करना अपराध माना जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ बार-बार वही बयान दे रहे हैं जो नरेंद्र मोदी बोल रहे हैं। सिर्फ यह दोनों ही नहीं, भाजपा का हर समर्थक यही दावा कर रहा है कि सिन्धु बार्डर पर जो पचासों हजार किसान पिछले 25 दिनों से डटे हुए हैं, वे कांग्रेस की साजिश है और उनका मकसद सरकार को बदनाम करना ही है। पंजाब से आये किसानों को तो खालिस्तानी तक आरोपित कर दिया गया। भाजपा और सरकार के सारे नेता लोग उन लोगों को देशद्रोही साबित करने पर आमादा हैं, जो चार डिग्री की बर्फीली सर्दी में दिल्ली की सड़क पर रात-दिन कुड़कुड़ा रण-भेरी और दुन्दुभि बजा रहे हैं।