“इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाही…” सुप्रीम कोर्ट में होगा फैसला

दोलत्ती


: मार दिया जाए, कि छोड़ दिया जाए, प्रशांत भूषण न डिगेंगे : जिज्ञासा का माहौल, किस का पलड़ा झुकेगा। सरलता, सौहार्द्र व समझदारी का प्रमाण किससे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : परशुराम और लक्ष्‍मण के बीच आज फैसलाकुन वाकयुद्ध होने वाला है। रणक्षेत्र बनेगा सर्वोच्‍च न्‍यायालय के तीन जजों की पीठ। लेकिन इसमें सीता-स्‍वयंवर और उसके बाद शिव-धनुष तोड़ने का प्रहसन नहीं होगा, बल्कि तय किया जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट पर कड़ी टिप्‍पणी करने के 11 साल पुराने अवमानना मामले पर क्‍या सजा तजबीज की जाए। इसमें ही तय होगा कि परशुराम अपने क्रोध पर नियंत्रण कर खुद हो संयत कर पाते हैं अथवा नहीं। यह भी तय होगा कि लक्ष्‍मण पर हमला किया जाएगा या फिर नहीं। या फिर शक्तियों के संरक्षण, प्रतिदान अथवा उसके किसी में पूरी तरह समर्पित कर देने की बिना-शर्त कवायद शुरू होगी। लेकिन चाहे कुछ भी हो, लहजा बिलकुल वही होगा, जो रामचरित मानस में दर्ज होगा। मसलन अपने मसें उछालते और मूंछें मरोड़ते लक्ष्‍मण हर क्षण यही साफ कहते दिखेंगे कि “इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाही, जो तर्जनी देखि मरि जाहीं”। पिछले़ 11 बरस और खास कर पिछले एक पखवाड़े से लक्ष्‍मण जी पब्लिक में यही डॉयलॉग रटते, बोलते और सुनाते जा रहे हैं। एक-दूसरे पर ऐसे प्रहार-प्रतिप्रहार पर इन दोनों में क्‍या प्रतिक्रिया होती है, इसको लेकर दोनों ही न्‍यायिक और विधि जगत में सुकुपुकाहट का आलम बना हुआ है। जाहिर है कि सभी के पेशानी पर लकीरें गहरी हो चुकी हैं।

आज 20 अगस्‍त-20 को सुप्रीम कोर्ट अपने वरिष्‍ठतम वकीलों में से एक प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना के मामले में सजा सुनाने वाली है। पिछले हफ्ते ही अदालत ने ऐलान कर दिया था कि इस मामले में वे पूरी तरह दोषी हैं। अब आज केवल सजा ही सुनायी जानी है। सजा क्‍या होगा, इसको लेकर सुगबुगाहट बनी हुई है। जिस तरह से 11 साल पुराने इस मामले में इस कोरोना-काल में निपटाने की जल्‍दी की गयी है, उसको लेकर संशयों के बादल घिरने लगे हैं। खास कर नागपुर में सर्वोच्‍च न्‍यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े का एक कीमती अमेरिकी बाइक पर सवारी का मामला प्रशांत भूषण ने उठाया, उसको लेकर केवल न्‍याय और विधि जगत ही नहीं, बल्कि पूरी सरकार ही सकते में आ चुकी हैं। माना यही जा रहा है कि इस घटना के बहाने प्रशांत की पुरानी फाइल खोली जा चुकी है। ऐसे में सजा होना ज्‍यादा उम्‍मीद-परक हो सकता है। लेकिन सबसे महत्‍वपूर्ण तो होगा कि सजा देने या नहीं देने की हालत में प्रशांत भूषण की प्रतिक्रिया क्‍या होती है, और इस फैसले पर विधि-जगत के लोगों की क्‍या प्रतिक्रिया होती है।

छत्‍तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्‍ता और छत्‍तीसगढ़ हाईकोर्ट के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता कनक तिवारी का कहना है कि चार ऐसे प्रकरण हैं, जिससे प्रशांत भूषण के मामले पर बात की जा सकती है। पहला मसला तो केरल के मुख्‍यमंत्री रहे नंबूदरी पाद का है, जिसमें कृष्‍ण मेनन ने वकील की थी। नतीजा यह हुआ कि तब के जज हिदायतुल्‍लाह ने पचास रुपयों का जुर्माना लगा दिया था। दूसरा मामला था केंद्रीय मंत्री पी शिवशंकर का, जिसमें जस्टिस सव्‍यसाची की बेंच ने उन्‍हें बरी कर दिया था। तीसरी घटना थी जस्टिस कृष्‍ण अय्यर पर लगाये गये अवमानना मामले की। इसे भी जस्टिस सुब्रहमण्‍यम पुट्टी और परिपूर्णानंद ने भी इस मामले को ससम्‍मानजनक तरीके से निपटा दिया। मगर अरुंधति राय, मेधा पाटकर और प्रशांत भूषण ने जब सर्वोच्‍च न्‍यायालय में नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत धरना प्रदर्शन किया, तो सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने एक दिन की सजा दे दी थी।

लेकिन प्रशांत भूषण का यह मामला बिलकुल अलहदा है, जबकि इस वक्‍त उनके तेवर खासे आक्रामक दिख रहे हैं। जबकि विधि-विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट प्रशांत को निपटाने के मूड में दिख रही है। लेकिन इस पेंचीदे मोड़ तक पहुंच जाने से दोनों ही पक्ष त्रिशंकु की हालत पर आ सकते हैं। अदालत यह भी फैसला कर सकती है कि वह प्रशांत भूषण को एकाध दिन की जेल या फिर कुछ आर्थिक दंड की सजा भी सुना दे। होने को तो यह भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की यह बेंच दोपहर बाद के सेशन में अपने सारे मुकदमे निपट लेने के बाद आखिरी केस के तहत शाम चार बजे से चंद मिनट पहले ही प्रशांत भूषण को अदालत उठने तक की सजा सुना दे। लेकिन इसके बाद हालात को सम्‍भाल पाना काफी मुश्किल हो सकता है। कारण यह कि इस मसले पर देश भर में प्रशांत भूषण के पक्ष में व्‍यापक धरना, प्रदर्शन और जुलूस आदि आंदोलन छिड़ चुके हैं। वैसे भी, अगर कोई सजा दी जाती है, तो फिर यह तय माना जा रहा है कि प्रशांत भूषण अदालत के फैसले पर समीक्षा याचिका दायर कर देंगे। और तब यह स्थिति और गम्‍भीर मोड़ ले सकता है। सूत्र बताते हैं कि प्रशांत भूषण अपने रुख से एक इंच भी डिगने को तैयार नहीं है।

यानी मामला अब खासा संगीन हो चुका है। गति भयी सांप-छछूंदर की। लेकिन देखना तो यही है कि इस मामले में सरलता, सौहार्द्र और समझदारी का प्रमाण कौन देता है।

1 thought on ““इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाही…” सुप्रीम कोर्ट में होगा फैसला

  1. गुरूवर। सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम्–@90% जज भृष्ट है सर्वे बोलता है —मालादिक्षित ने दैनिकजागरण मे एक लंबी श्र॔खला न्याय प्रणाली प चलायी थी—@सुप्रीमकोर्ट प्रंशातभूषण द्वारा लगाये आरोपो की जांच व छापे मारकर करा दे आयकरविभाग ईडी सीबीआई आयबी सीआईडी आदि से पदो की जांच करा ले—@हां।भृष्टाचरण ही सदाचरण हो गया –रग मे बस गया –सच स्वीकारे मीलार्ड –तारीख देने के ताजे रेट एक सौ रू से लेकर एक हजार रू है –@पेशगार व आवाज लगाने वाले ओन काम मे माहिर है –बहस उसी केस की चलती है जिसका चढावा पहुंच गया –बार काऊंसिल और पुर्वकानूनमंत्रीसिब्बल जी सब जानते है –भूषण जी समझदार वकील है —अंतिमा सत्यकी बुढापे मे बोलती है

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