मेरी बेटियों की बलात्काार और हत्या के बाद ताजा कड़ी है उन्नति विश्वकर्मा
एसटीएफ न होती तो, आप खुर्राटे ही लेते रहते। गजब राजधानी पुलिस
बहुत बर्दाश्त किया, बताओ कि पांच दिनों तक रोजनामचा में क्या लिखा तुमने
पुलिस व समाजिक दरिंदों से त्रस्त, बच्चिों को मैं पूरे गर्व से मेरी बेटी कहता हूं
( बहुत नृशंसता के साथ मार डाली गयी लखनऊ की बेटी- 2 )
कुमार सौवीर
लखनऊ :- पुलिस की एक बच्ची पांच दिनों तक पहले गायब हुई। पुलिस मं रिपोर्ट दर्ज हुई। मगर पुलिस हाथों पर हाथ ही धरे बैठी रही। पुलिस ने उसे खोजने की कोशिश भी नहीं की। वह तो उस बच्ची के मामा की राजनीतिक का कमाल था कि वे पुलिस की खामोशी-सुस्ती देख कर सीधे एसटीएफ के पास पहंच गये, और उसके पांच दिन बाद उस बच्ची का पता चल पाया। लेकिन शर्म की बात है कि जब तक एसटीएफ की मार्फत लखनऊ पुलिस तक यह सूचना पहुंची, यह बच्चीे मौत के घाट उतारी जा चुकी थी। इतना ही नहीं, उस बेटी की लाश मुख्यमंत्री आवास, डीजीपी आवास के चंद कदम दूर बरामद हुई। उस जगह पर महिला हेल्पलाइन 1090 का मुख्यालय भी है। हैरत की बात है न ?
राजधानी लखनऊ के लिए मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार और उसके बाद उनकी नृशंस हत्याएं अब हैरत की बात नहीं, बल्कि बेहद आम होती जा रही हैं। वरना लखनऊ की मेरी बिटिया पांच दिनों तक लापता रही, और पुलिस ने उसे खोजने की जहमत तक नहीं उठायी।
अब समझ लीजिए कि लखनऊ ने उन्नति को खोजने के लिए क्या-क्या किया। कुछ भी नहीं। और अगर कुछ किया तो यह लखनऊ के नागरिकों का यह अधिकार है कि पुलिस लखनऊ बताये कि लखनऊ की बेटी की गुमशुदगी पुलिस में दर्ज होने के बाद पुलिस ने अपने रोजनामचे यानी जीडी में क्या -क्याि दर्ज किया। जीडी में ही खुलासा किया जाता है कि किसी मामले में पुलिस ने हर पल क्या-क्या किया। आप पूछिये, वह नहीं बता पायेंगे और अगर बताएंगे भी तो सरासर झूठ बोलेंगे।
पूरे शहर में पुलिस ने सीसीटीवी का जाल फैला रखा है। हर चौराहे पर कई-कई कैमरे लगे हैं, जिसे लगाने के लिए सरकार ने करोड़ों रूपये फूंके हैं। लेकिन जरा कोई बताये कि इन कैमरों पर पैसा फूंकने का फायदा क्या हुआ है। डालीगंज में डेढ साल पहले एचडीएफसी की एटीएम पर बदमाशों ने तीन लोगों को गोली मार कर मार डाला था और 51 लाख रूपया लूट लिया था। लेकिन पुलिस यह तक पता नहीं चल पायी कि वह हत्यारे-लुटेरे कहां गये। जबकि उस काण्ड की सारी फोटो वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में दर्ज थी।
खैर, पता यह चला है कि पुलिस के खर्राटे सुन कर उस बच्ची के मामा, जो पूर्व सरकार में राज्यमंत्री के ओहदे पर थे, ने एसटीएफ से सम्पर्क किया, जहां के एडीजी से उनके अच्छे सम्बन्ध थे। एसटीएफ सतर्क हो गयी। लेकिन तब तक वह फोन बंद हो चुका था। और जब यह फोन पांच दिन बाद जब खुला तो, एसटीएफ ने बाराबंकी के हैदरगढ़ से बरामद किया, जो एक रिक्शा चालक के पास था। एसटीएफ ने बताया कि उस रिक्शा चालक ने उस लाश के पास से उसकी ब्लेजर और उसका फोन रख लिया था। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं बता सका है। इसके बाद एसटीएफ ने पूरी कहानी पुलिस को बता दी।
लेकिन अब जरा पुलिस की करतूत देख लीजिए। गुमशुदगी के तत्काल पुलिस अगर सीसीटीवी को खंगालने की कोशिश करती पुलिस, तो उस मेरी बिटिया को उसी वक्त ट्रेस किया जा सकता था। वजह यह कि एसटीएफ की खोज के बाद पुलिस ने जब सीसीटीवी खंगाले तो उसे पता चला कि दस फरवरी की सुबह आठ बजे उन्नति टेढी पुलिया चौराहे पर देखी गयी, और उसके 51 मिनट बाद में उसे फिर पार्क रोड के एक कैमरे ने कैच किया था। यानी अगर पुलिस उसी दिन सक्रिय होती तो उन्नति उसी वक्त सुरक्षित बरामद हो सकती थी। पार्क रोड के कैमरे के बाद से वह आसपास के पूरे इलाके की छानबीन कर सकती थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
और लखनऊ की एक बेटी के साथ बेहद अमानवीय बलात्कार हुआ, और उसकी नृशंस हत्या कर दी गयी।
मैं पुलिस की इस खमोशी की सख्त निन्दा करता हूं।
और आप ?