झांसी-काण्‍ड: असल मर्ज तो बड़े डॉक्‍टर हैं

सैड सांग

: झांसी में घायल के सिरहाने रख दिया गया था कटा हुआ पैर, जिम्‍मेदार कौन : अपने या आर्थिक-मित्रों के नर्सिंग होम्‍स पर मरीज जुटाने को मेडिकल कालेज बन रहा है चारा : जूनियर डॉक्‍टरों ने अनजाने में ही गड्ढा खोदा था, मगर झांसी में वे खुद ही चारों-खाने चित्‍त :

कुमार सौवीर

लखनऊ : (झांसी-कांड पर गतांक से आगे)। झांसी के मेडिकल कालेज में ट्रामा सेंटर में जो दिल दहला देने वाला हादसा सामने आया है, उसके लिए वह सीधे तौर पर भले ही जूनियर डॉक्‍टर ही दोषी ठहराये जा रहे हों, लेकिन हकीकत यही है कि यह लोग उस साजिश का हिस्‍सा बन गये, जो मेडिकल कालेज को अपनी प्राइवेट-प्रैक्टिस का माध्‍यम और अस्‍त्र बनाने की साजिश बुन रहे थे। जी हां, यह एक साजिश का ही अंजाम था, जिसकी बुनियाद काफी लम्‍बे समय से खोदी-तैयार की जा रही थी। मगर उसका भण्‍डाफोड़ 10 मार्च को हो गया। सारा ठीकरा फोड़ा गया जूनियर डॉक्‍टरों के माथे पर और वे निलम्बित कर दिये गये। जबकि इस साजिश के जिम्‍मेदार बड़े-बड़े डॉक्‍टर-प्रोफेसर इस मामले में साफ बेदाग बच गये।

सूत्र बताते हैं कि यह साजिश तैयार की थी मेडिकल कालेज के बड़े-डॉक्‍टरों ने। बरसों से इस साजिश को बेहद सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा था। माध्‍यम बनाये गये रहे थे मेडिकल कालेज के जूनियर डॉक्‍टर को। बड़े-बड़े डॉक्‍टर तो अपने में मस्‍त थे, मोटी तन्‍ख्‍वाह उगाह‍ते थे, मेडिकल रिप्रेंजेटिव से मंहगे उपहार लेते थे, कमीशन खाते थे, घरेलू सामानों के साथ ही साथ विदेश यात्राएं तक आयोजित कराते थे। बड़े-बड़े आयोजनों में भागीदारी कराते थे। कई तो ऐसे थे जिन्‍होंने अपने कई विशालकाय नर्सिंग होम तक खोल रखे थे। मेडिकल के रूतबे का इस्‍तेमाल कर मरीजों को इन्हीं नर्सिंग होमों में भर्ती कराया जाता था। ऑपरेशन किया जाता था। मेडिकल कालेज भले ही अराजक, गंदे और अव्‍यवस्थित हों, मगर इनके नर्सिंग होम चकाचक होते हैं।

जाहिर है कि बड़े-बड़े डॉक्‍टरों-प्रोफेसरों के पास इतना समय नहीं होता है कि वे अपने मेडिकल की अराजकता पर ध्‍यान दे पायें। ऐसे में वे अपने जूनियर डॉक्‍टरों को इतनी ढील तो दे ही देते हैं, ताकि उनका कामधाम पर कोई सवाल न उठे, कोई उंगली न उठे। दोनों ही लोग अपनी-अपनी मस्‍ती में जुटे रहते हैं। बड़ों की लापरवाही का पूरा प्रभाव जूनियरों के व्‍यवहार पर परिलक्षित होता रहता है। झांसी में भी यही हो रहा था।

इतना ही नहीं, इस पूरे मामले में एक बड़ा अहम पहलू यह भी है कि अपने या अपने आर्थिक-मित्रों के नर्सिंग होम्‍स पर मरीजों की भीड़ जुटाने के लिए मेडिकल कालेज का इस्‍तेमाल बाकायदा किसी चारा के तौर पर किया जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि मेडिकल कालेज की ख्‍याति काफी होती है। नर्सिंग होम इस सच को खूब जानते-पहचानते हैं। ऐसे में उन्‍हें लगता यही है कि मेडिकल कालेज में होने वाले हंगामे का लाभ उन्‍हें सीधे तौर पर मिल जाएगा। मेडिकल कालेज की जितनी भी कुख्‍याति होगी, मरीजों से मेडिकल कालेजों से मोह-भंग और विश्‍वास भंग होगा। इसका सीधा लाभ यह होगा कि मेडिकल कालेज आने वाले मरीज अब नर्सिंग होम की ओर मुड़ने लगेंगे।

बड़े डाक्‍टरों की लापरवाही के चलते अराजक बन चुके जूनियर डॉक्‍टरों ने अनजाने में ही गड्ढा खोदा था, मगर झांसी में वे खुद ही चारों-खाने चित्‍त हो गये। अब तो मेडिकल कालेजों से निकल रही ताजा-नई पौधों जन्‍मजात बदतमीज दिख रही हैं।

और झांसी में और यही कारण और उसका परिणाम सामने आया। (क्रमश:)

भले ही वह साजिश ही सही होगी, लेकिन जिन भी लोगों ने झांसी मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर की ऑपरेशन-स्‍ट्रेचर पर लिटे उस शख्‍स की तस्‍वीर देखी है, उन्‍हें डॉक्‍टरों की करतूतों पर घृणा और उबकाई ही आयी होगी। इस फोटो में घायल के सिरहाने पर तकिया की जगह उसी कटे पैर को रख दिया गया था, जो बस दुर्घटना में घायल होकर उसी शख्‍स का कट कर अलग हो गया था। इस खबर से जुड़ी खबरों के बाकी हिस्‍सों-अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

कटी-टांग का तकिया

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