मेरे उदार भाव पर चंद वकीलों ने मुझे खूब ठगा, बोले थे रमेश पांडेय

बिटिया खबर

: लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता आईबी सिंह ने किया रमेश की पीड़ा का खुलासा : सीएससी से इस्तीफ़ा अवसादग्रस्त मन से दिया था : अब जरूरी यह है कि ऐसी आत्महत्याओं की आशंकाओं की जड़ों को खोजा जाए :

आईबी सिंह
लखनऊ : रमेश पांडे। यकीन नहीं होता कि रमेश पांडे जी की मृत्यु हो गयी. वो भी इतनी दुखद तरीके से. कुछ लोग कहते हैं कि दुर्घटनावश मृत्य हुई है, कुछ कहते हैं कि उन्होंने लायर्स चैम्बर्स के चौथी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली. लायर्स चैम्बर्स के चौथी मंजिल के उस स्थान को, जहाँ से श्री रमेश पांडे ने छलांग लगाई उसे कोई भी देख कर कह सकता है कि श्री रमेश पांडे जी ने आत्महत्या ही की है, उनकी मृत्यु दुर्घटनावश नहीं हुई है.
लगभग डेढ़ महीने पहले एस्केलेटर लौन्ज के पास अपने कई साथियों के साथ मुझसे मिले और कहने लगे मैं आगामी अवध बार एसोसिएशन के चुनाव में अध्यक्ष के पद पर चुनाव लड़ना चाहता हूँ, आपका सहयोग चाहिए. मैंने कहा कि पांडे जी मैं आप को पसंद करता हूँ. आप एक कर्मठ, ईमानदार और जुझारू व्यक्ति हैं, परन्तु आप यह वादा कीजिये कि जिस तरह आपने महामंत्री रहते हुये बार का वेलफेयर फंड के करोडो रुपये वकीलों को लुटा दिये, वो आप जीत जाने पर नहीं लुटाएंगे. बिना किसी झिझक के सभी के सामने उन्होंने कहा कि वह गलती मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे उदारपन का भरपूर फायदा कुछ अधिवक्ताओं ने लिया परन्तु अब मैं ऐसा नहीं करूंगा, यह मेरा वादा है.
मुझे कुछ ही दिन बाद पता चला कि उन्होंने चुनाव लड़ने का इरादा त्याग दिया है. पता नहीं क्या हुआ कि मुझे यह लगने लगा कि श्री पांडे कुछ अवसादग्रस्त हैं. वह उनके चेहरे को देखने से कभी कभी लगता था, परन्तु उनकी स्टाईल में कोई फर्क नहीं पड़ा था. वैसे ही आठ दस वकीलों के साथ टोली बना कर निकलना, वैसे ही अपने कन्धे हिला हिला कर चलना. परन्तु अब मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि चीफ स्टैंडिंग कौंसिल के पद से इस्तीफ़ा भी शायद उन्होंने अवसाद से ग्रस्त होने के प्रभाव में ही दिया था. ऐसे ऊर्जावान, उत्साही व जीवंत व्यक्ति को अवसाद कैसे हो सकता है ?
परन्तु नए भवन में आने के बाद से हाई कोर्ट के किसी अधिवक्ता को कभी भी डिप्रेसन में जाने का वातावरण तैयार हो चुका है. जहाँ सर्विस बेंच के बीस से चालीस फ्रेश केसेज प्रतिदिन फाईल होते थे वहीँ अब हफ्ते भर में दस बारह होते हैं. जहाँ मिस्सेलेनिअस बेंच के चालीस से साठ फ्रेश प्रतिदिन फाईल होते थे वहीँ अब सिर्फ प्रत्यावेदन निस्तारण के लिये बीस बाईस भी नहीं होते. जहाँ क्रिमिनल साईड में केस की मेरिट देखते हुए जजेज डबल व् ट्रिपल मर्डर केस में भी बेल देने से कभी नहीं झिझकता था वहीँ अब तीन सौ सात और चार सौ सरसठ के मामले में भी साल भर मुलजिम जेल में बिता देता है. जब सात मुलजिमों की अपील आठ पन्ने में निस्तारित हो जाये और एक सौ आठ पेज के आदेश से बेल रिजेक्ट हो, जब लोग गंभीर से गंभीर मामले में यह कहें की जल्दी कहिये समय कम है तो किसी भी अधिवक्ता को अवसाद हो ही जायेगा. जहाँ नए वकीलों को हाई कोर्ट भवन में प्रवेश करने के लिये आंसू बहाने पड़े हो वहां उन युवा अधिवक्ताओं को अवसाद होगा कि नहीं ? जहाँ क्रिमिनल साइड की वकालत मात्र एक के उपयुक्त अप्रोच पर चल रही हो वहां क्रिमिनल साइड में वकालत करने वाले अधिवक्ताओ को अवसाद होगा कि नहीं ? जहाँ बड़े से बड़ा आई पी एस ऑफिसर कोर्ट में आने से घबड़ाता रहा हो वहीँ एक दारोग एक पन्ने की केस डायरी में कुछ भी झूठा मूठा लिख कर दिखा कर मुस्कुराता हुआ चला जाये, वहां अधिवक्ताओ को अवसाद होगा कि नहीं ?
मुझे लगता है कि नया भवन वकीलों के लिये हाँटेड बिल्डिंग है. उदघाटन ही में गलती हो गयी. यद्यपि कि उदघाटन नवरात्री के समय हुई थी परन्तु गिरिजा देवी, मालिनी अवस्थी, किशोर चतुर्वेदी, विभा सिंह, बनारस के छुन्नन महाराज जैसे महान व अच्छे भजन गायकों के रहते हुये राजस्थान के मजार पर कव्वाली गायकों को बुला कर कव्वाली गवाई गयी तभी लगा कि विस्मिल्लाह ही गड़बड़ हो गया. अशोक पाण्डे ने टोक दिया तो उसे ही गलत ठहरा दिया गया.
रही बात अधिवक्ता वर्ग के नेताओं की तो उन्हें तो हर वक्त किसी भी एआरएम तवे पर अपनी रोटी सकने की आदत हो गयी है. मृत व्यक्ति का शरीर घर पर डाह संस्कार की प्रतीक्षा कर रहा है और तथकथित नेता लोग लगे अपनी रोटी सकने. फुल कोर्ट रिफरेन्स का अचित्य डाह संस्कार के बाद ही बनता था पर नहीं, मृत व्यक्ति के शरीर का अपमान करते हुए पूरी ताकत लगा दी कि मृत ब्यक्ति के शरीर कि चिंता नहीं है, पहले फुल कोर्ट रिफरेन्स करो. सदैव राजनीति. बहुत दुःख हुआ.
हो सकता है कि बंद गलियारों में बिना किसी को देखे हुए चलने वाले जल्दी जल्दी में कोई एक और कमेटी या ग्रिल कमीटी बना कर सभी चैम्बर्स के खुले खिडकियों में ग्रिल लगवा दें जिससे कि अन्य कोई वकील आत्महत्या न कर ले. परन्तु हाई कोर्ट आकर काम करते हुए यदि कोई अधिवक्ता अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेता है तो आत्महत्या करने के जड़ के कारण को ढूढ़ना चाहिये, न कि आत्महत्या करने के साधन को बंद करना चाहिये. मुझे तो लगता है कि यह आत्महत्या नहीं है बल्कि एक हत्या है. ऐसा व्यक्ति हजारों में नहीं बल्कि लाखों में एक मिलता है. रमेश पांडे जी को अपनी ओर से भाव भीनी श्रधान्जली अर्पित करते हुए ईश्वर से बस यही प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे किसी घटना की पुनरावृत न हो.

(रमेश चंद्र पांडेय की आत्‍महत्‍या से आहत लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता आईबी सिंह ने यह अपना भावप्रवण आलेख www.dolatti.com के लिए विशेष तौर पर लिखा है)
सम्‍पादक: दोलत्‍ती डॉट कॉम 

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