मी लार्ड ! बहुत बेतुकी बात कह दी आपने

बिटिया खबर


: हमें आपकी सदाशयता और भावुकता पर कत्‍तई कोई शक नहीं है, लेकिन प्रक्रिया और न्‍यायिक-विवेक से कोसों दूर हैं आपकी टिप्‍पणियां, और सम्‍भवत: अनौचित्‍यपूर्ण भी : कोरोना आज न कल खत्‍म हो जाएगा, लेकिन बर्बाद हो जाएगी महान वकालत की परम्‍परा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : वकालत एक पवित्र व्‍यवसाय है, और उस पवित्रता को बनाने-संजोये रखने के लिए बाकायदा कानून है और उस कानून का संरक्षण करने के लिए एक नहीं, दर्जनों आदेश सर्वोच्‍च न्‍यायालय समेत देश की विभिन्‍न हाईकोर्ट द्वारा कई-कई बार जारी हो चुके हैं। लेकिन हाल ही गुजरात हाईकोर्ट ने इस व्‍यवस्‍था पर एक करारी चोट दे डाली। एक मामले की सुनवाई करते वक्‍त गुजरात हाईकोर्ट ने वकीलों से कहा है कि ताजा माहौल के दौरान चूंकि विधि व्‍यवसाय में संलिप्‍त अधिवक्‍ताओं की हालत काफी पतली-खराब होती जा रही है, इसलिए अगर वे अगर चाहें तो वकालत के साथ ही साथ कोई दीगर व्‍यवसाय में भी अपना हाथ साफ कर सकते हैं।
हालांकि हाल ही सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने भी इसी तरह की एक सलाह जारी की थी। ऐसे आदेशों से वकीलों में हर्ष का माहौल है। बावजूद इसके कि वे वकील लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए उस वकालत के साथ कौन सा व्‍यवसाय चुन लें, यह यक्ष-प्रश्‍न सभी वकीलों के सामने हैं। हालांकि यह चिंता उन लोगों के सामने ही है जो वकालत के इतर कोई धंधा नहीं करते हैं, या नहीं कर पाये हैं। वजह यह कि उन्‍होंने अपने व्‍यवसाय में खुद को डुबो कर विधि-परिसरों और विधि व्‍यवसाय को ऊंची प्रतिष्‍ठा का स्‍थान दिलाया है। अब वे कोरोना-संक्रमण से जन्‍मे ऐसे आड़े वक्‍त में कौन सा नया धंधा कर लें, यह उनके लिए अबूझ है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि विधि व्‍यवसाय से जुड़े सभी लोग सिर्फ वकालत ही करते होंगे। दोलत्‍ती को मिली जानकारी के अनुसार बार कौंसिल में रजिस्‍टर हुए वकीलों में से आधे से ज्‍यादा वकील वकालत के अलावा दीगर अन्‍य धंधों में संलिप्‍त हैं। यूपी के एक बड़े वकील साहब वकालत की दुनिया में एक बड़ी हैसियत रखते हैं, लेकिन उनके परिवार के करीबी लोग दिल्‍ली और मुम्‍बई समेत कई शहरों में बाकायदा कम्‍पनी खोल कर प्रॉपर्टी का धंधा करते हैं। लखनऊ के त्रिवेणी नगर समेत कई बड़े इलाकों में प्‍लॉटिंग करने वाले सिंडीकेट और उसके मालिक खुद ही वकील हैं और न्‍यायपरिसरों में उनकी खासी पकड़-धमक है। इसी आधार पर वे खुद को वकीलों के नेता के तौर पर बाकायदा चुने भी जा चुके हैं। इतना ही नहीं, आपको बता दें कि जमीन और दूकान ही नहीं, उगाही और गिरोह के तौर पर भी कई वकीलों की खासी पहचान है।
लेकिन इसके बावजूद चूंकि वकालत का व्‍यवसाय मूलत: प्रतिष्ठित माना जाता रहा है, इसलिए इस बारे में एडवोकेट एक्‍ट में विशेष प्राविधान हैं। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति अगर वकील है, तो वह वकालत के अलावा किसी अन्‍य दीगर धंधे में संलिप्‍त नहीं रह सकता। और अगर ऐसा करता है, तो उसके पहले उसे अपना पंजीकरण बार कौंसिल से वापस कराना होगा। यदि ऐसा कोई वकील नहीं करता है, तो उसकी सदस्‍यता बर्खास्‍त करने की भी व्‍यवस्‍था है। एडवोकेट एक्‍ट की धारा 35 के तहत इसकी स्‍पष्‍ट व्‍याख्‍या दी गयी है।
फिर सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट ने इस बारे में यह टिप्‍पणी क्‍यों की? हो सकता है कि वकीलों को इसकी जरूरत रही हो, लेकिन यह भी तो सच है कि जिसे इसकी जरूरत थी, वह पहले से ही ऐसे दीगर धंधों में लिप्‍त है, और पूरी धमक के साथ पूरी न्‍यायिक प्रक्रिया-घरों के माध्‍यमों से अपना धंधा चमका रहा है।
फिर सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट ने इस बारे में यह टिप्‍पणी क्‍यों की? क्‍या इस टिप्‍पणी से कोई सुखद या क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है, क्‍या जो वकील अब तक वकालत के प्रति अपने समर्पण, निष्‍ठा और लगाव के चलते कोई दूसरा धंधा नहीं अपना पाये हैं, वे अपना कोई दूसरा धंधा वकालत के साथ-साथ संचालित कर पायेंगे? ऐसी कोई भी टिप्‍पणी करने से पहले क्‍या सुप्रीम कोर्ट या गुजरात हाईकोर्ट ने कोई विशेष अध्‍ययन किया था? नहीं न ?
तो फिर सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट ने इस बारे में यह टिप्‍पणी क्‍यों की? अधिवक्‍ता द्वारा किसी अन्‍य वृत्ति या व्‍यवसाय किये जाने के बारे में एडवोकेट एक्‍ट स्‍पष्‍ट होने के बावजूद न्‍यायपालिका की यह टिप्‍पणी किस श्रेणी में रखी जा सकती है? खास तौर पर तब, जब एडवोकेट एक्‍ट संबंधित प्रावधान न्‍यायपालिका के सामने चैलेंज नहीं किया गया हो। क्‍या ऐसी टिप्‍पणी करने के पहले न्‍यायपालिका को एडवोकेट एक्‍ट में संशोधन की प्रक्रिया नहीं अपनाये जाने की जरूरत समझी हो, और इस बारे में संसद या किसी अन्‍य प्राधिकारी संस्‍था को अनुशंसा की जरूरत समझी ?
अगर नहीं, तो फिर सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट ने इस बारे में यह टिप्‍पणी किस आधार पर जारी की? क्‍या यह सलाह या टिप्‍पणी एडवोकेट कानून का उल्‍लंघन या अवमानना नहीं है ?
योर ऑनर और मी लार्ड जी। क्‍या आपको नहीं लगता है कि इस मामले में आपने बहुत बेतुकी बात कह दी है?
सच बात तो यह है कि इस मामले में हमें आपकी सदाशयता और भावुकता पर कत्‍तई कोई शक नहीं है। रत्‍ती भर नहीं। लेकिन यह भी ध्रुव-सत्‍य है कि इस मामले में प्रक्रिया और न्‍यायिक-विवेक का तनिक भी ध्‍यान नहीं दिया गया। कोसों दूर तक। हमें सिर्फ लगता ही नहीं है, अपितु विश्‍वास है कि आपकी टिप्‍पणियां सम्‍भवत: अनौचित्‍यपूर्ण भी रही हैं। कोरोना आज न कल खत्‍म हो जाएगा, लेकिन बर्बाद हो जाएगी महान वकालत की परम्‍परा । संकट में तो हर शख्‍स है, तो फिर ऐसे प्राविधान केवल वकीलों तक ही ?
लखनऊ हाई कोर्ट की अवध बार एसोसियेशन में महामंत्री रह चुके आरडी शाही इस पूरे प्रकरण में न्‍यायिक सक्रियता को अनौचित्‍यपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि न्‍यायपालिका द्वारा दी गयी टिप्‍पणी अप्रिय-सत्‍य की श्रेणी में आती है, और ऐसी राय अनौपचारिक रूप से ही दी जा सकती है। लेकिन उसे देने का अधिकार केवल संबंधित व्‍यक्ति के माता-पिता या हितचिंतक को है। और न्‍यायिक प्रक्रिया के तहत इस तरह आदान-प्रदान पूर्णतय: अनुचित है।
(क्रमश:)

2 thoughts on “मी लार्ड ! बहुत बेतुकी बात कह दी आपने

  1. एकदम आपके चैनल की तरह ही अवध बार के पूर्व सचिव एवं सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आरडी शाही साहब कड़वा सच बोलने में बिल्कुल भी नहीं संकोच करते हैं निश्चित तौर पर उन्होंने जो कहा है वह सत्य है माननीय न्यायालय की टिप्पणी वकालत के व्यवसाय पर गहरी चोट है

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