डिग्री है कनकौव्‍वा उड़ाने वाली, करते हैं अल्‍ट्रासाउंड

बिटिया खबर
: मेरी बिटिया डॉट कॉम के अभियान में हुआ गड़बड़झाला खुलासा : पीसीपीएनडीटी कानून के रखवाले खुद ही फर्जीवाड़ा करते हैं: जन सूचना अधिकार अधिनियम से पता चला कि अल्‍ट्रासाउंड में होता है भारी फर्जीवाड़ा : कन्‍याभ्रूण संरक्षण- दो :

कुमार सौवीर
लखनऊ : जिन डॉक्‍टरों का श्रीगणेश ही धोखाधड़ी वाली लूप-लाइन यानी चोर-गली से होगा, वे अल्‍ट्रासाउंड की मशीन में केवल गैरकानूनी काम ही तो करेंगे। आपके पास अल्‍ट्रासाउंड की डिग्री है या नहीं, अब यह बहस छेड़ने का जमाना बीत चुका है। डिग्री गयी भाड़ में, अब तो केवल अफसरों की जेब भरने के लिए झोला-भर नोटों की जरूरत पड़ती है। इसके बाद फिर धंधेबाजों की पौ-बारह हो जाती है। पैसा फेंकिये, तमाशा देखिये। पान-चाय की दूकान की तरह अल्‍ट्रासाउंड वाली गुमटी लगा कर नोट छापने की मशीन बन जाइये। और फिर इसके बाद यह कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह सिर्फ और सिर्फ ऐसे गैरकानूनी काम ही किये जा सकते हैं, जिनसे पीसीपीएनडीटी कानून की धज्जियां उड़ जाएं।
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अब यह जग-जाहिर हो चुका है कि वर्तमान समय में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमडी रेडियोलोजी की डिग्री के लिए दो करोड़ रुपये तक देकर दाखिला हो जाता है। और इनमें अधिकांश कॉलेजों में शिक्षा का स्तर घटिया होता है। इतना ही नहीं, भले ही यह कॉलेज सरकारी क्षेत्र का हो, या फिर निजी क्षेत्र में बने मेडिकल कालेजों का हो, दोनों ही मेडिकल कॉलेजेस में अल्ट्रासाउंड प्रशिक्षण की सुविधाएं आज भी अपर्याप्त हैं। इस कारण केवल एमडी रेडियोलोजी की डिग्री होने से ही किसी डॉक्टर को एक काबिल अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ मान लेना सरासर गलत और त्रुटिपूर्ण है।
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जी हां, यह है कन्‍या भ्रूण संरक्षण और कन्‍या-भ्रूण हत्‍या निषेध कानून की जमीनी हकीकत। केवल यूपी ही नहीं, बल्कि पूरे देश में यही हालत चल रही है। गर्भस्‍थ भ्रूण की स्‍वास्थ्‍य-सम्‍बन्‍धी असलियत को परखने का मौका न किसी के पास है, और न ही किसी में इतना दम-खम होता है कि वह इसकी जांच कराने की हैसियत जुटा सके। एक गिरोह की तरह संचालित होती हैं अल्‍ट्रासाउंड मशीनों लगाये व्‍यापारियों की सड़कछाप दूकानें। धोखाधड़ी, अराजकता और इंसानी-भ्रूण को पेट में ही मार डालने वालों की क्रूर गीदड़ों-चीलों-गिद्धों की जमात। पैसा ही सारे कानूनों का टेंटुआ दबोच देता है। इसके बाद तो जिसका जो भी मन करता है, वह इसका मनचाहा इस्‍तेमाल कर इस कानून की चिंदियां बिखेर देता है।
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दुर्दशा कन्‍या भ्रूण की
इसका खुलासा तब हुआ जब प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने पूरे देश और खास तौर पर यूपी के सभी जिलों में सरकारी कागजों और वहां दर्ज सूचनाओं का जायजा लिया। मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस अभियान के तहत प्रदेश के सभी मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारियों, मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षकों, जिलाधिकारियों, पीसीपीएनडीटी के तहत गठित समिति के पदाधिकारियों, सभी मेडिकल कॉलेजों तथा देश के सभी एम्‍स और भारतीय चिकित्‍सा परिषद तथा सभी प्रदेशों के चिकित्‍सा परिषदों से इस बारे में विस्‍तृत जानकारियां हासिल करने का प्रयास किया था।
इस प्रयास के तहत जो भी सूचनाएं मिलीं, वे हैरतनाक, आश्‍चर्यजनक होने के साथ ही प्रशासनिक व सरकारी कामकाज के बेहद अराजक और खतरनाक स्‍तर तक की थीं। इन सूचनाओं से साफ स्‍पष्‍ट होता है कि कन्‍या भ्रूण के संरक्षण और कन्या भ्रूण हत्‍या के खिलाफ झंडा उठाने वाले पीसीपीएनडीटी कानून के अनुपालन की असलियत क्‍या है। साफ पता चला है कि जिस कानून को कन्या भ्रूणहत्या रोकने के उद्देश्‍य के लिए बनाया और लागू कराया गया था, वह अपंग साबित हो रहा है।
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भगवान धन्‍वन्तरि
इन तथ्यों से यह सपष्ट होता है कि एक बड़ी संख्या में अपनी डिग्री के आधार पर रेडियोलाजिस्ट कहलाये जाने वाले तथा अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ माने जाने वाले ऐसे डॉक्टर्स का पीसीपीएनडीटी एक्ट में रेडियोलाजिस्ट की श्रेणी में रजिस्टर्ड होना इस एक्ट का उल्लंघन है तथा तथ्यों को छुपाकर या अनदेखा कर शासन की आँखों में धूल झोंकने जैसा है।
अधिकांश अल्‍ट्रासाउंड सेंटर का मतलब अब किसी कत्‍लगाह से कम नहीं रह गया है, जहां मां के पेट में जन्‍म लेने की तैयारी कर रहे कन्‍या भ्रूण की आपराधिक पहचान कर उसे मौत के घाट उतारने की साजिशों की जाती हैं। इससे जुड़ी खबरों को देखने को अगर इच्‍छुक हों तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
कन्‍या भ्रूण के कत्‍लगाह
पेट में पहचान कर मारी जा रही हैं भविष्‍य में स्‍त्री बन सकने वाले कन्‍या-भ्रूण। सड़क-नाले के किनारे गुमटी खोले अप्रशिक्षित और झोलाछाप डॉक्‍टरों की करतूतों पर मेरी बिटिया का एक सशक्‍त हमला। पूरा मामला समझने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
कन्‍या-भ्रूण

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