: पूरी अफसरशाही ही पानी में कूद पड़ी, बिलकुल भैंस : सरकारी कामकाज में हरामखोरी का अंजाम देखना हो तो जौनपुर आइये : अस्पताल ले जाने के बजाय लावारिस नवजात को किसी निजी अस्पताल ले जाने की सलाह दी फार्मासिस्ट ने : नकली नोटों की कहानी क्या कुछ छिपाने के लिए बुनी गयी : फार्मासिस्ट की करतूतों से महिला अस्पताल भी संदेहों में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नवजात बच्ची और अल्ताफ को तो आप जानते ही होंगे ? इन दोनों घटनाओं में सिर्फ दो ही समानता है कि इन दोनों की ही मौत हो चुकी है और दोनों की ही मौत बेहद दुखद और शर्मनाक होने के साथ ही समाज और सरकार के चेहरे पर कालिख की तरह हैं। जबकि इन दोनों की ही मौत पर प्रतिक्रियाएं बिलकुल अलग-अलग हैं।
अरे वही अल्ताफ, जिस के बारे में पुलिस का दावा है कि उसने कासगंज के एक थाने की हवालात में लगी खराब लटकी एक टंकी से अपने नारे से फांसी लगा कर मौत को गले लगा लिया था, और वही नवजात बच्ची का वह समूह की एक सदस्य जिसे प्रदेश के मुख्यमंत्री साक्षात पवित्र देवी का नाम देकर उसका चरण पूज चुके थे। इसके बावजूद जौनपुर के एनकाउंटर-विशेषज्ञ की तरह अपनी पीठ ठोंकने वाले पुलिस अधीक्षक अजय कुमार साहनी और उसके अमले ने इस बच्ची को मौत के घाट उतार दिया।
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बताते हैं कि दोलत्ती डॉट कॉम के इस नवजात बच्ची के मामले को दबाने के लिए फर्जी नोटों को जौनपुर जिले में भारी खपत कराने का दावा करने वाले अपर पुलिस अधीक्षक नगर डॉ संजय कुमार की फर्जी कहानी अब पूरी तरह नंगी हो चुकी है। वजह यह कि अनुशासन का ठेका लिये पुलिस के इस अफसर समेत टीम के किसी भी सदस्य ने कोविड बचाव के लिए अनिवार्य मास्क लगाया ही नहीं, जबकि किसी अनुशासित नागरिकों की तरह उन सभी नौ लोगों ने बाकायदा मास्क लगा रखा है, जिन्हें पुलिस के एएसपी नगर ने नेपाल से फर्जी करेंसी पहुंचाने का धंधा करने वालों की गिरोह की तरह पहचाना है। हालांकि यह एएसपी डॉ संजय सिंह जौनपुर के अलावा किसी अन्य जिले में उपरोक्त तथाकथित गिरोह का कोई भी तथ्य नहीं जुटा पाया है। उधर जिले की सम्पूर्ण जिम्मेदारी रखने वाले जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा भी इस मामले में बिलकुल घुग्घू की तरह खामोश बैठे ही रहे हैं।
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हालांकि कासगंज पुलिस के अनुसार जिले के एक थाने की हवालात में अल्ताफ नाम के एक युवक द्वारा एक छोटी से टोंटी से फांसी लगा कर आत्महत्या करने का दावा किया है। लेकिन बमुश्किल दो फीट ऊंची और टूटी हुई टूंटी से एक अच्छे-खासे किस्म के इंसान के आत्महत्या का दावा सिरे से ही झूठा दिख रहा है।कासगंज की पुलिस की यह कहानी सिरे से ही झूठी है, इसके बावजूद वहां के अपर पुलिस महानिदेशक और कासगंज के पुलिस अधीक्षक ने अपने पांच सदस्यों को निलम्बित कर दिया है। लेकिन जौनपुर में नवजात बच्ची की हत्या के मामले में जिले की पुलिस और प्रशासन की चुप्पी लगातार घिनौनी ही होती जा रही है। वह भी तब, जब इस नवजात बच्ची की दर्दनाक मौत पर घटना को जिस तरह योगी और मोदी समेत पूरे देश की छवि पर घातक हमले की तरह देखा जा रहा है, उस को देखते हुए जौनपुर के पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी की गैरकानूनी हरकत अफसरशाही की अभद्रता और अराजकता तथा गैर-संविधान कृत्य के तौर पर ही पहचानी जा रही है।
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उधर एक अन्य घटना के अनुसार पता चला है कि नवजात बच्ची की हत्या के मामले में जौनपुर का जिला महिला अस्पताल भी गहरे संदेहों में आ चुका है। दोलत्ती डॉट कॉम को मिली खबर के अनुसार घटना के दौरान सुबह करीब साढ़े नौ बजे के करीब जिला महिला अस्पताल का फार्मासिस्ट अपनी बाइक से अस्पताल पहुंचा, और अपनी बाइक को गेट के पास पार्क करने के बाद उसने भीड़ लगाये भीड़ को देखा। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इसके बाद उस गुलाब चंद्र यादव नामक फार्मासिस्ट ने उस बच्ची के साथ गये लोगों को सलाह दी कि वे अस्पताल के बाहर किसी अस्पताल या डॉक्टर से बच्ची दिखवा लें। जाहिर है कि या तो गुलाब चंद्र यादव को अपने जिला महिला अस्पताल के डॉक्टर व अन्य कर्मचारियों पर विश्वास नहीं था, या फिर चूंकि उस नवजात के साथ आये तीमारदारों से सरकारी अस्पताल के लिए दी जाने वाली उगाही का भुगतान करने की क्षमता नहीं थी। लेकिन सबसे हैरत की बात तो यह है कि जब महिला अस्पताल सुबह आठ बजे खुल जाता है, तो साढ़े नौ बजे इस फार्मासिस्ट के आने का औचित्य क्या था।
बहरहाल, गुलाब चंद्र यादव से दोलत्ती से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने दोलत्ती के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। नतीजा, उस नवजात बच्ची की मौत पर दोलत्ती संवाददाता के सवालों को हमने गुलाब चंद्र यादव नामक फार्मासिस्ट को फेसबुक पर भेज दिया। गुलाब यादव से दोलत्ती ने इस प्रकरण पर कुछ बिन्दुओं पर जानकारी हासिल करने का अनुरोध किया है।
1- आपने कितने बजे उस बच्ची को देखा?
2- आपने ही लोगों को बताया कि आप उस घटनास्थल के पास के ही रहने वाले हैं, क्या आपने घटनास्थल में उस बच्ची के साथ हुए हादसे की जानकारी से हासिल करने की कोशिश की?
3- जिस समय आपने बच्ची को देखा, तब उसकी शारीरिक स्थिति कैसी थी?
4- अपने उस बच्ची को महिला अस्पताल ले जाने की क्या कोशिश की?
5- क्या किसी नवजात मरीज को अपने अस्पताल ले जाने का दायित्व आपका था या नहीं?
6- घटना के समय आपके अस्पताल में संभवतः कितने कर्मचारी-अधिकारी मौजूद थे?
7- क्या उस समय बच्चों अथवा किसी अन्य डॉक्टर की अस्पताल में उपस्थिति थी?
8- क्या घटना के समय पुलिस भी इस मामले में जानकारी हासिल करने के लिए आपके अस्पताल में पहुंची थी ? पुलिस आने वक्त बच्ची अस्पताल परिसर में थी, या कहीं और ले जायी गयी थी?
9- जब वह नवजात बच्ची अस्पताल गंभीर रूप से घायल होकर पहुंचाई गई, तो पुलिस को उसकी सूचना लिखित रूप से आप अथवा अस्पताल के किसी अधिकारी या कर्मचारी ने दी?
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10- क्या ऐसे गंभीर मामले में पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचित करना अनिवार्य और अपरिहार्य नहीं होता है?
11- क्या आपने उस घटना की सूचना अपने सहकर्मियों, अधिकारियों या ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर को दी?
12- क्या आपने अपने ऐसे शासकीय और मानवीय दायित्व का पालन किया?
हालांकि जब जिले के सर्वोच्च सरकारी पदाधिकारी ही ऐसे अत्यंत गम्भीर मामलों को सुनने के लिए अपने कान बंद किये बैठों हों, ऐसी हालत में एएसपी, दारोगा, डॉक्टर और फार्मासिस्ट जैसे लोगों का रवैया क्या होता है उसका जिक्र करना मूर्खतापूर्ण ही होता है। इसके बावजूद जरूरत तो इस बात की भी हो जाती है कि जिला अस्पताल में अधिकारियों और कर्मचारियों ने अस्पताल परिसर को अपनी खाला का घर समझ रखा है या फिर वहां जन-स्वास्थ्य और जन-चिकित्सा के साथ ही लोक सतर्कता भी निर्धारित समय पर हो पाता है या नहीं। कुछ भी हो, दोलत्ती डॉट कॉम इस मसले पर जड़ तक पहुंचाने के लिए लगातार सक्रिय है।
शुक्रवार 12 नवम्बर-21 को इस मामले पर दोलत्ती द्वारा कुछ अन्य विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की जाएगी। मकसद सिर्फ इतना, कि किसी भी कन्या या महिला और खास कर नवजात बच्चे को इस तरह की दर्दनाक और समाज के लिए मर्मांतक मृत्यु की खबर सुनने को न मिले।