मौजूदा पत्रकारिता में युवाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं रहा

सैड सांग

: सुगर की बीमारी ने गेगरीन के जरिया पैर काट लिया, मगर ओंकार सिंह में हौसले जस के तस : युवाओं के लिए नहीं मौजूदा पत्रकारिता : जागरण के प्रभारी और मुनाड विश्‍वविद्यालय में पत्रकारिता के विभागाध्‍यक्ष रह चुके हैं ओंकार :

अनूप मिश्र

नोएडा : लगभग चार रोज पहले मुझे अपने वरिष्ठ साथी अनिरुद्ध चौहान जी से पता चला कि वरिष्ठ पत्रकार ओंकार सिंह जी का एक पैर गैंगरिंग की वजह से काटना पड़ा, वह नोएडा में भर्ती हैं। अनिरुद्ध जी ने फोन से हाल मालूम करना चाहा, फोन ओंकार जी का ही मिलाया, संयोग था फोन ओंकार जी ने ही उठाया। हिम्मत कर अनिरुद्ध जी ने पूछा कि आप कैसे हैं, उधर सोे आवाज आई कि ‘क्या अपना हेल्थ बुलेटिन भी मैं ही जारी करूं’। संकुचाते हुए अनिरुद्ध जी ने कहा ‘हां’। इस पर ओंकार जी की फिर आवाज गूंजी और वो बोले कि ‘मेरा बायां पैर कट गया है’।

दूसरे रोज पता चला कि वे अस्पताल से गाजियाबाद स्थित अपने भतीजे आलोक के घर पहुंच गए हैं। अनिरूद्ध जी के साथ मैं भी उन्हें देखने के लिए बाइक से गाजियाबाद पहुंच गया। ओंकार जी से एक दुखद मुलाकात हुई, लेकिन ओंकार जी के मुताबिक समझा जाए तो दुखद कतई नहीं। वह बिस्तर पर ताकिया लगाकर लेटे थे, आंखें खोलकर मुझे और अनिरूद्ध जी को बैठने को कहा। हम लोगों ने उनसे उनके हाल जानने शुरू किए। हम लोगों ने इस हादसे की शुरुआती वजहें पूछीं, लेकिन वह हर सवाल पर हम लोगों का मुंह देखते और चुप हो जाते। शायद उन्हें हमारे सवालों में अफसोस की झलक देखकर झुंझलाहट हो रही थी। खैर, उनके छोटे भतीजे बल्ले ने उन्हें उठाकर बैठाया और बामुश्किल एक कटोरी दाल और एक चपाती खिलाई, फिर दवा दी। जिंदादिल ओंकार जी बंद कमरे में बाहर की दुनिया के बगैर छटपटा रहे थे। उनका बस चलता तो वह तुरंत निकल पड़ते।

उनके शुगर होने की वजह से पैरों में कुछ माह से दिक्कत थी, लेकिन गैंगरिंग का अंदाजा चिकित्सकों को भी नहीं लगा। और जब चिकित्सकों को पता चला तो देर हो चुकी थी। उन्हें लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, जहां चिकित्सकों को कुछ सफलता नहीं मिली। आखिरकार उन्हें आनन-फानन में नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उनके पैर को ही काटना पड़ा।

वह पैनी पत्रकारिता के विलक्षण जादूगर हैं, जिन्हें दैनिक जागरण, अमर उजाला और मुनाड विश्वविद्यालय के साथ सैकड़ों लोगों ने शिद्दत से महसूस किया है। वह जागरण में संपादकीय प्रभारी के अलावा हापुड़ के मुनाड विवि के पत्रकारिता जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे। रामजन्म भूमि-बाबरी मसजिद घटना के उनके कुछ चुनिंदा खुलासे सीबीआई और कोर्ट में साक्ष्य बने। कुछ दुर्लभ विषयों पर उनकी किताबें प्रकाशनार्थ हैं।

उनसे मिलने के बाद जाते-जाते मैंने उनसे पूछा- भाई साहब आपकी पत्रकारिता की यात्रा कितनी हो गई

बड़ा सोचकर अनमने से बोले- ‘20 साल से ऊपर’।

फिर रुके और बोले- ‘जब मैं 12वीं में पढ़ रहा था तभी सभी वेद, पुराण और तमाम धार्मिक ग्रंथों को चट चुका था’।

मैंने फिर पूछा – क्या आपके मुताबिक मौजूदा पत्रकारिता युवाओं के लिए ठीक है।

वह बोले – अब यह निर्भर करता है कि वह युवा कैसे हैं। वो हुनरमंद हैं या पत्रकार कहलाने लायक भी नहीं हैं।

मैंने कहा – और अगर दोनों ही तरह के हैं तो….

वह बोले- तो-तो हुनरमंद पत्रकारिता के खाके में फिट हो जाएंगे और नाकारा तो नाकारा ही रहेंगे।

मैंने कहा- लेकिन राष्ट्रीय स्तर के तमाम समाचार पत्रों में वेतन नहीं है, भविष्य निधि भी हजम की जा रही है। जो स्तरीय हैं, वो पत्रकारों के शोषण में तल्लीन हैं।

ओंकार जी थोड़ा सोचकर बोले- ‘हूं… मौजूदा पत्रकारिता के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं रहा।

इसके बाद वो आंखें बंद कर चिंतन की मुद्रा में चले गए और हम मेरठ की ओर प्रस्थान।

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