: एक मुख्यमंत्री का बेटा, तो दूसरा आम डॉक्टरों का नेता, खूब चली आपसी लांग-डांट : पिता से कह कर विशेष संवर्ग बनवा लिया, ताकि पोस्टिंग शहरों तक ही सिमटी रहे : मगर छह साल बाद ही कोशिशें जमीन सूंघ गयीं : किस्सा बलरामपुर अस्पताल का- अंतिम :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे ) सर्जरी में तो राजीव लोचन की कोई खास उल्लेखनीय कभी भी नहीं रही, लेकिन डॉक्टरों की आपसी उठापटक में किंग-कांग या दारा सिंह से कम नहीं रहे हैं डॉक्टर राजीव लोचन। विधान-राजनीति में भले ही राजीव बुरी तरह मुंह की खा गये, लेकिन सरकारी डॉक्टरों की राजनीति में उन्होंने अपनी जीत हासिल करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी। अब यह दीगर बात है कि उनकी यह राजनीति लड़ाई अन्तत: उनके हितों तक ही सिमट जाती थी। चाहे वह अलग संवर्ग बनाने की लड़ाई रही हो, या फिर बलरामपुर अस्पताल के निदेशक पद को हासिल करने का जेहाद।
बहरहाल, बलरामपुर अस्पताल के निदेशक की लड़ाई में वे भले ही डॉ ईयू सिद्दीकी को जमीन चटा गये, या फिर एके गुप्ता को मुंह की खिला गये, लेकिन सच यही है कि डॉक्टरों की राजनीति में डॉक्टर बीपी सिंह ने राजीव लोचन की ऐसी की तैसी कर दी थी। अपने पिता रामप्रकाश गुप्ता के चलते जो लड़ाई राजीव लोचन ने सन-04 में जीती थी, उसे सन-11 में बीपी सिंह ने जबर्दस्त शिकस्त दे डाली थी। नतीजा यह हुआ कि जिस विशेष संवर्ग बनाने का फैसला उनके पिता के समय हुआ था, उसे हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करा दिया था बीपी सिंह ने।
आपको बता दें कि आजादी के बाद से सरकारी डॉक्टरों का दो संगठन बने थे। इनमें से एक नाम था पीएमएस डॉक्टर्स एसोसियेशन, मतलब, प्रान्तीय चिकित्सा सेवा चिकित्सक संघ। जबकि दूसरे संगठन का नाम था पीएचएस डॉक्टर्स एसोसियेशन, यानी प्रान्तीय स्वास्थ्य सेवा चिकित्सक संघ। इनके विभाग भी अलग-अलग थे, एक चिकित्सा विभाग के थे, जबकि दूसरे स्वास्थ्य। लेकिन सन-74 में इन दोनों सेवाओं को एक कर दिया गया। ऐसी हालत में इन सेवाओं के डॉक्टरों को भी संयुक्त हुआ, और उनके डॉक्टरों के संघ का नाम हुआ पीएमएचएस प्रान्तीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं संघ।
एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि चूंकि राजीव लोचन मूलत: सर्जन थे, और लखनऊ से बाहर जाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने पिता रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में पीएमएचएस में ही एक अनोखा विशेषज्ञ संवर्ग बनाने का एक प्रस्ताव सन-04 में सरकार को भिजवा दिया। उस समय पीएमएचएस डॉक्टर्स एसोसियेशन में डीपी मिश्र महामंत्री हुआ करते थे, जो एमडी मेडिसिन थे और एक अन्य विशेषज्ञ जय सिंह उपाध्यक्ष थे। जाहिर है कि कोई भी विशेषज्ञ शहरों में ही रहना चाहता था। वजह थी उनकी चल रही बम्पर प्राइवेट प्रैक्टिस पर बरसते नोट। ऐसे में विशेषज्ञ ग्रामीण क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग नहीं चाहते थे। राजीव लोचन ऐसे विशेषज्ञों की आंखों के सितारे थे, क्योंकि उस वक्त राजीव लोचन मुख्यमंत्री के आवास पर मुख्यमंत्री के बेटे की हैसियत से रहते थे।
लेकिन किसी अन्य जनपद में तैनात डॉक्टर बीपी सिंह ने अपनी एसोसियेशन में ऐसे विशेष संवर्ग के निर्माण की प्रक्रिया का पुरजोर विरोध किया। लेकिन बीपी सिंह की कोशिशें तब की राजनीतिक पहुंच वाले कारणों से दब गया। विशेषज्ञ संवर्ग बन गया। एमडी, एमएस, डिप्लोमा के लिए अलग-अलग सुविधाएं दे गयीं। तय हुआ कि यह लोग शहरों में ही पोस्टिंग पायेंगे।
लेकिन छह साल बाद पांसा जबर्दस्त पलटा। मायावती बन गयीं मुख्यमंत्री। बीपी सिंह बने अपनी एसोसिसेशन के महामंत्री। अपना बदला लेने के लिए और अपने साथियों को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने सन-11 में अथक कोशिशें कीं, और नतीजा यह हुआ कि यह नया संवर्ग खत्म करा दिया था।
उसके बाद दुखान्त कहानी है। बीपी सिंह लखनऊ में फरवरी-11 में सीएमओ परिवारकल्याण बने। और 2 अप्रैल-11 को गोमतीनगर में कुछ हत्यारों ने उन्होंने गोलियां बरसा कर हमेशा-हमेशा के लिए नींद सुला दिया। (समाप्त)
यूपी के मशहूर और अति विशिष्ट अस्पतालों में शुमार किये गये बलरापुर अस्पताल में आजकल हंगामा चल रहा है। मामला है यहां के निदेशक के पद पर राजीव लोचन को बिठाने के लिए सारी नीति और शुचिता को ठोकर मारना। इस मामले में चार वरिष्ठतम डॉक्टरों को जिस तरह इस अस्पताल से घर-बदर किया गया, उसे डॉक्टरों में खासी नाराजगी है। प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम इस मामले में तीन किश्तों में खबर तैयार कर रही है। यह है पहला अंक। इसके अन्य अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-