: कहां गयी वह नीति, कि लम्बे समय तक अस्पताल को डॉक्टरों की बपौती नहीं बनाया जाएगा : लौट के बुद्धू घर को आया, साथ में राजगद्दी वाली जलेबी भी लाया : राजीव को लाने के लिए चार वरिष्ठों को हलाल किया गया : राजीव को पता ही नहीं था मर्ज-चिकित्सा का लोचा, गुप्ता ने किया जमकर हल्ला : किस्सा बलरामपुर अस्पताल का- दो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे ) उधर भाजपा की लहर की साफ लहर भी उन्हें दिखने लगी थी। इन्हीं दो आधारों पर उन्हें विश्वास हो गया कि वे चुनाव जीत सकते हैं। नतीजा राजीव लोचन ने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति योजना यानी वीआरएस के तहत अर्जी लगायी और निकल गये अपनी राजनीतिक यात्रा तैयारी में। अब यह मैदान कोई सेहत का तो था नहीं, और पॉलिटिकल मैदान में भी तो सीनियरों की तेल-मालिश तो करनी ही होती है। लेकिन वे इस नये दायित्व को इस लिए ठीक से नहीं कर पाये कि वे समझ रहे थे कि उनके पिता आजकल के भाजपाई हमेशा याद कर रखेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। एक कारण यह भी था कि नये भाजपाइयों का मानना था कि राजीव लोचन का कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार राजनीतिज्ञ वाला नहीं पनप पाया है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि राजीव बहुत झंझटी और बवाली की छवि वाले हैं। मतलब यह कि मर्ज और चिकित्सा में फंसा बड़ा लोचा उनके सपनों के मुंह के लिए मुंहनोचवा साबित हो गया। बस, गच्च से औंधेमुंह हरहरा कर जमीन पर गिर पड़े राजीव लोचन। उनकी वांछित सीट बसपा से आये एक नेता ने छीन ली, और उसकी पूजा-आराधना में पूरी भाजपा आचमन करने लगी।
सपने टूटने से राजीव बेहाल हो गये थे। संघ की शरण में गये, पुराने खांटी भाजपाइयों के दर पर गुजारिश-अरदास लगाना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने तय किया कि अपनी वीआरएस की अर्जी को जैसे-तैसे वापस कराया, और कोशिश में लग गये कि जैसे भी हो पाये, बलरामपुर अस्पताल का निदेशक बन कर अपनी नाक बचा लें। मगर ऐसा हो पाता। राजीव अपर निदेशक स्तर के डॉक्टर हैं, जबकि उस समय निदेशक के पद पर थे डॉक्टर ईयू सिद्दीकी। इतना ही नहीं, राजीव से ज्यादा सीनियर कुछ और लोग भी उसी अस्पताल में थे। लेकिन चूंकि राजनीतिक आधार चमकने लगा, और तय हुआ कि राजीव को वापस अस्पताल में लाना है, वह भी निदेशक की कुर्सी पर ही जमाना है। ऐसे में सिद्दीकी का टिकट काट कर उन्हें मुख्यालय के तांगे-इक्के पर सवार लाद दिया गया। बाकी डॉ एके मिश्र, डॉ सुरभि सिन्हा, और एके श्रीवास्तव को बलरामपुर से हटा कर अन्यत्र भेज दिया गया।
अब बचे राजीव लोचन। राजनीतिक दांव-पेंचों के फलस्वरूप सीनियर मोस्ट डॉक्टर बन गये राजीव। शासन ने इसी आधार पर राजीव लोचन के पदस्थापन के आदेश जारी कर दिये।
लेकिन यह क्या। यह तो चमत्कार हो गया। जल्दबाजी में शासन ने एक बड़ी चूक कर डाली। हुआ यह कि इस अस्पताल में एक डॉक्टर मौजूद थे। नाम था एके गुप्त। गुप्ता जी राजीव लोचन से बहुत सीनियर थे, लेकिन हैरत की बात है कि इस बारे में शासन को तनिक भनक तक ही नहीं लगी थी। गुप्ता ने हल्ला करना शुरू कर दिया। वे गये और निदेशक की कुर्सी पर डट गये। पांच घंटों तक बवाल होता रहा। लेकिन इसी बीच महानिदेशक को मौके पर आना पड़ा और उन्होंने गुप्ता की जगह राजीव लोचन को यह कुर्सी थमा दी। (क्रमश:)
यूपी के मशहूर और अति विशिष्ट अस्पतालों में शुमार किये गये बलरापुर अस्पताल में आजकल हंगामा चल रहा है। मामला है यहां के निदेशक के पद पर राजीव लोचन को बिठाने के लिए सारी नीति और शुचिता को ठोकर मारना। इस मामले में चार वरिष्ठतम डॉक्टरों को जिस तरह इस अस्पताल से घर-बदर किया गया, उसे डॉक्टरों में खासी नाराजगी है। प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम इस मामले में तीन किश्तों में खबर तैयार कर रही है। यह है पहला अंक। इसके अन्य अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-