माफिया ब्रजेश ने अमर उजाला को दी मानहानि की नोटिस

बिटिया खबर

: दुर्दांत माफिया को चिंता है मानहानि की, बनारस अमर उजाला संपादक और एक समाजसेवी को नोटिस : “हम लोग का बैकग्राउंड है राजनीति, ऐसी खबरों से हमारी प्रतिष्ठा धूमिल हुई” : अमर उजाला ने मामले में चुप्‍पी साधी, मामला अपनी लीगल सेल के हवाले किया :

दोलत्‍ती संवाददाता
वाराणसी : समाज तो सबरंग है। कोई समाजसेवा, कोई रासरंग, कोई आनंद, कोई शोध, कोई निर्माण तो कोई धर्म-सत्‍संग आदि कृत्‍यों से लगातार समाज की उन्‍नति में जुटा रहता है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन केवल अपराध को समर्पित कर दिया है। उनको हत्‍या, खून-खूंरेजी, आतंक, भय, लूट और डकैती जैसे घिनौने कृत्‍यों में आनंद मिलता है। बेधड़क लोग ऐसे अपरधियों को कुख्‍यात माफिया या दुर्दांत अपराधी कहते हैं, जबकि डरपोंक देने वाले लोग उन्‍हें बाहुबली की उपाधि देते घूमते हैं। पुलिस उनकी सतत आपराधिक-माफियागिरी को देखकर हिस्ट्रीशीट खोलकर थाने के सूचना पट्ट पर इनके नाम-पिता का नाम-पता सहित दर्ज कर लेती है, ताकि आम आदमी इनकी करतूतों से वाकिफ हों, प्रशासन को भी पहचानने में सुभीता हो।
आज यहां बात हो रही है जुर्म की दुनिया के कुख्यात बादशाह बृजेश सिंह की, जो लूट, हत्या, धमकी, नरसंहार का मुल्जिम है। ब्रजेश के यह सारे किस्‍से पुलिस की डायरी में भरे-संजोये हुए हैं। हिस्‍ट्री-शीट बताती है कि किस तरह ब्रजेश सिंह और उसके परिवारी जनों ने पूर्वांचल ही नहीं, पूरे यूपी, बिहार, छत्‍तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, एमपी, उत्‍तराखंड समेत कई राज्‍यों में जरायम की दुनिया का सिंहासन हासिल किया और आपराधिक गंदगी पर बैठकर पूंजीपतियों, दुकानदार ,ट्रांसपोर्टर, कोयला व्यापारियों को डरा धमकाकर अपनी तिजोरी भरी।
पुलिस हिस्‍ट्रीशीट के अनुसार ब्रजेश सिंह ने सिकरौरा कांड नरसंहार में दुधमुंहे बच्चे पर भी रहम नहीं किया औऱ यमलोक पहुंचा दिया। जिसके आतंक ने भतीजों को भी बिन पूंजी का व्यापार दे दिया औऱ दिवंगत भाई के गले में विधायक का हार दे दिया। कुनबे को मजबूत कर यह शातिराना अंदाज में प्रगट और गायब होता रहा और अंदर ही अंदर यूपी से बाहर दूसरे प्रदेशों में अपने आर्थिक साम्राज्य को बढ़ाता रहा। यहां इसके भतीजे इसके नाम को भुना कर आगे बढ़ते रहे। अपने तीन दशक के अपराधिक जीवन में बृजेश ठेकों से अरबों कमाता रहा। इसके नाम का आतंक ऐसा रहा कि हर बड़े व्यापार में इसको कमीशन चाहिए था। जो इंकार करता उसकी अंतिम तिथि भी तय हो जाती थी।
खैर समय बदला औऱ कुख्याति चरम पर हुई तो बस नाम ही काफी है। बृजेश ने सोचा कि जब टेरर तो बन चुका है तो क्यों न भाई-भतीजे की तरह नाम के आगे माननीय लगवा लूं। इसी मकसद को अंजाम देने के लिए बृजेश ताना बाना बुनने लगा। क़ामयाबी तब मिली जब चंदौली के मूल निवासी एक स्वजातीय कद्दावर नेता जो इनका सब राज जानते हुए भी इनका ‘नाथ’ बनने को तैयार हो गए वो वर्तमान में वो केन्द्रीय औऱ ‘घर’के मंत्री हैं।
सूत्रों की माने तो इसी योजना के तहत एक दशक पूर्व दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उड़ीसा से अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह को गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी किसी नाटक से कम नही था।
खैर गिरफ्तारी के बाद हर जगह यह गिरफ्तारी चर्चा में रही। बाद में बृजेश को वाराणसी के सेंट्रल जेल में रखा गया। समय के साथ बृजेश ने योजना के तहत अपनी पत्नी को ‘ भारी ले-देकर’ एक पार्टी से एमएलसी बनाया। बाद में उस पार्टी में भाव न मिलने पर चन्दौली के सैयदराजा से चुनाव लड़ा मगर करोड़ो रूपये पानी की तरह बहाने के बाद भी निर्दल मनोज सिंह डब्लू से मुँह की खा गया। उसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव में करोड़ो रूपये पानी की तरह बहाने और ‘नाथ’ के अदृश्य समर्थन के बाद सपा प्रत्याशी मीना सिंह से 1986 मतों से बृजेश ने जीत दर्ज की। और यहीं से मान या न मान है कर मेरा जबरन सम्मान की शुरुआत हुई ।
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जिया रजा बनारस
एमएलसी बनते ही बृजेश के नाम के साथ माननीय शब्द ऐसे जुड़ गया। सूत्रों की माने तो एमएलसी बनते ही अपने टेरर को धार और काली कमाई को व्यापार बनाने के लिए बृजेश ने अपने गुर्गो को काम पर लगा दिया। एक तो मिनिस्टर ‘नाथ’का साथ ऊपर से माननीय का दर्जा। यही कारण है कि सत्तासीन सरकार इस माफिया के लिए आंखें मुंद कर पड़ी रहने लगी। लोगों की माने तो इसी का नाजायज फायदा उठा बृजेश ने अपने मकसद को अंजाम देने के लिए येन केन प्रकारेण बीमारी का बहाना बना जेल से पूर्व के मुकदमों को प्रभावित करने और वसूली ठेको के लिए इलाज की आड़ में बीएचयू में डेरा डाल दिया। जब लम्बे समय तक हॉस्पिटल में पड़े रहने की खबर वाराणसी के अखबारों को हुई तो जाहिर सी बात है लोकतांत्रिक खम्भा ने अपना फर्ज निभाया और बृजेश के इलाज पर सवाल खड़े होने लगे। इससे तिलमिलाये माफिया मास्टर यानी बृजेश ने उन अखबारों को अर्दब और दवाब में लेने के लिए मानहानि का नोटिस भेज दिया।
आम तौर पर सामान्‍य लोग कहते घूमते रहते हैं कि इन अखबारों को नोटिस से कोई फर्क नही पड़ता है। क्योंकि मान उसी का है जो सम्मानित हो औऱ जो हिस्ट्रीशीटर हो उसका मान सम्मान कैसा और क्यों..?अभी कुछ दिनों पहले ही वाराणसी जिले के एक विधायक के बीजेपी अध्यक्ष ने एक सवाल के जवाब में ‘चोर’ कह दिए तो जिस एमलसी की पूरी जवानी जिंदगानी वसूली, रंगदारी ,अपराध में गुजरी हो उसका कैसा मान कैसी हानि..? बल्कि उसे तो अपने पूर्व के कर्मो के लिए उन पीड़ितों जो इसके अपराध कर्मो की वजह से अपनो को खो चुके हैं उनसे माफी मांगनी चाहिए आप माफिया से माननीय हो सकते हैं मगर आपसे लुटे पिटे बर्बाद हुए और उन विधवाओं की सुनी मांग चीख चीख कर आपको माफिया मर्डरर ही कहेगा क्योंकि आप सफेद शर्ट पर सैकड़ों खून के धब्बे हैं जो इस जीवन में आपको मान नही दिला सकते
औऱ ख्यात और कुख्यात में जनता फर्क जानती है आप जनता और अखबार से जबरन मान चाहते हैं तो आपका भरम है कम से कम मुझसे और मेरे अखबार से यह उम्मीद तो नही होनी चाहिए।
हम तो अपराध अपराधियों भ्र्ष्टाचार भ्र्ष्टाचारियों के खिलाफ यूँ ही मुखर रहेंगे चाहे भले ही अंजाम गौरी लंकेश जैसा हो। ( इनपुट: अमित मौर्या के साथ)

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