लखनवी कुत्ते की जन्मदिन पार्टी मुंबई में

दोलत्ती

: मुम्‍बई में हिंदी पत्रकारिता का गिद्धभोज-ब्रह्मभोज सम्‍पन्‍न : कुख्‍यात पूर्वांचली नेता की पार्टी में श्‍वान-नेता का सम्‍मान :
अनीता शुक्‍ला
मुम्‍बई : त्राहिमाम! त्राहिमाम!
इंद्र दरबार में अचानक आदि पत्रकार देवर्षि नारद का आर्तनाद गूंजा।
‘क्या हुआ देवर्षि? मंगलवेला में यह आर्तनाद क्यों?’
महाराज, कुल विनाश की और है। पत्रकारिता मृत्युशैया पर पड़ी है।‘ नारद ने उत्तर दिया।
‘कहाँ?’ देवराज का प्रश्न।
‘महाराज! पिछले माह ट्राईडेंट पत्रकारिता के मालवणी संस्करण ने अवैध भवन निर्माताओं, चवन्नी छाप छपरी पत्रकारों को अवार्ड बांटे मगर मैं चुप रहा क्योंकि कुछ असली पत्रकार वहां शामियाना बनकर मंच पर बैठकर सहयोग कर रहे थे। अवैध भवन निर्माता सम्मानित हो रहा था जो कभी एक अवैध निर्माणकर्ता का सारथी अर्थात ड्राईवर हुआ करता था। डंडापकड़ पत्रकार जो लूप लाइन अर्थात यूट्यूब ई पर हजार पांच सौ की वसूली के बाद क्लिप वायरल कर जीवन निर्वाह करता है वह भी चढ़ाव देकर बिरादरी का गौरव बन गया।‘ नारद ने व्यथा कही।
इसमें बुरा क्या है नारद! कलियुग पर गोस्वामी जी ने राचरितमानस में कह दिया है-
मारग सोई जा कहुं जोई भावा। पंडित सोई जो गाल बजावा।।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुं संत कहइ सब कोई।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।।
जाकें नख अरु जटा बिसाला, सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला।।
असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं।।
बहु दाम संवाहरिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती।।
तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जात कही।।
अर्थात जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारेगा, वही पंडित कहलाएगा। जो आडंबर रचेगा उसी को सब संत कहेंगे। जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़ देंगे, कलियुग में वही ज्ञानी कहलाएंगे। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएं होंगी, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी होगा। जो अमंगल वेष-भूषा धारण करेगा, भक्ष्य-अभक्ष्य (खाने योग्य और न खाने योग्य) सब कुछ खा लेगा, वही योगी, सिद्ध हैं और पूज्यनीय होगा। संन्यासी बहुत धन लगाकर घर सजाएंगे, उनमें वैराग्य नहीं रहेगा। तपस्वी धनवान हो जाएंगे और गृहस्थ दरिद्र।‘ इंद्र ने ज्ञान दिया।
‘यही तो पीड़ा है भगवन। दिल्ली वाला प्राइम टाइम में हिंदी पत्रकारिता के गिरते स्तर पर प्रवचन देता है और मुंबई में उसका छर्रा फर्जी पत्रकारों की फैक्ट्री को संचालित करता है।‘ नारद बोले।
‘इसमें आपकी पीड़ा क्या और क्यों है?’ इंद्र ने पूछा।
‘गजब करते हो महाराज! जिसे लखनऊ में श्वान भी हड्डी नहीं देता उसको जन्मदिन की दावत मुंबई में डायरी में दर्ज पत्रकार देते हैं। नई साल की पार्टी नहीं देखी आपने?’ नारद ने प्रतिप्रश्न किया।
‘तो अब नई सूचना क्या है?’ इंद्र ने सवाल किया।
‘महाराज मृत्यु शैया पर सांसे गिन रही हिंदी पत्रकारिता का गिद्धभोज अर्थात ब्रह्मभोज आयोजित किया गया है।‘
‘करने दो। मैं क्या करूँ?’ इंद्र ने पूछा।
‘प्रभु! इस ब्रह्मभोज को उत्तरायण से पहले आयोजित होने दें।‘ नारद ने कहा।
‘क्यों ?’ इंद्र ने पूछा।
‘क्योंकि दक्षिणायन में मृत्युभोज से भी स्वर्ग नहीं मिलता। हे देवेन्द्र! देवी सरस्वती को आदेश दें कि इन छद्म पत्रकारों की बुद्धि भ्रमित करें।‘ नारद ने प्रार्थना की।
‘तथास्तु!’ इंद्र ने उत्तर दिया।
देवी सरस्वती ने अपना प्रभाव दिखाया और उत्तरायण से दो दिन पहले ही पत्रकारिता का मृत्युभोज तय हो गया। वाट्सअप के जरिये निमन्त्रण पत्र सभी गिद्धों तक पहुँच रहा है।
(मुम्‍बई की पत्रकार अनीता शुक्‍ला की फेसबुक वाल से। अनीता के उपन्यास का एक अंश। समानता संयोग से मिल सकती है)

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