लवकुमार दुबके रहे तो नोएडा में प्राइम पोस्टिंग मिली, मोर्चा खोले सुभाष को वेटिंग

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: वो अफसर कहां से लाऊं, जिसे सहारनपुर में पोस्‍ट कराऊं, यह जोगी की समझ में न आये : लव कुमार अपने घर में रहे तो नोएडा भेजे गये, सुभाष चंद्र दुबे गलियों में चौकसी करते रहे, उन्‍हें वेटिंग में डाल दिया गया : जब गृह सचिव और एडीजी जैसे आला अफसर मौजूद हैं, तो छुटभैयों पर कार्रवाई काहे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सन-1970 में एक फिल्‍म आयी थी। नाम था पहचान। उसमें एक गीत सुपरहिट हुआ था। तन-मन तब भड़क जाता है आज भी, यह गीत सुनते ही। बबिता उस गीत और फिल्‍म की मुख्‍य किरदार में थीं। आप भी सुन लीजिए:- वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ। कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको। कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको।

यह गीत आज भी लाजवाब है। केवल मनोरंजन में ही नहीं, राजनीति और प्रशासन में भी। आप गौर कीजिए और अब पिछले सवा महीने से दहकते जा रहे सहारनपुर के माहौल में अफसरों की तैनाती और उनकी रूखसती का विश्‍लेषण कर लीजिए, तो सारी तस्‍वीर आपके सामने स्‍पष्‍ट हो जाएगी। बशर्ते आप इस गीत में परी की जगह आईपीएस रख दीजिए और दुल्‍हन की जगह एसएसपी। फिर जब आप उस गीत को गुनगुनाएंगे तो फिर साफ लगेगा कि हमारे मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ यह गीत गा रहे हैं। गजब बेचारगी की हालत में। एनेक्‍सी में अधिकारियों के बीच अचानक एक जुमला उछल गया:- डीएम-एसएसपी नहीं, तुम अब अलादीन का चिराग घिसो जोगी जी।

ताजा खबर है कि सहारनपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा जारी है और  राज्य सरकार ने वहां के डीएम एनपी सिंह और एसएसपी एससी दुबे समेत चार अफसरों को सहारनपुर से बाहर निकाल बाहर कर दिया है। सरकार का दावा है कि यह सारे अफसर हिंसा पर नियंत्रण पाने में असफल रहे हैं। बाकी हटाये गये अफसरों में एसडीएम और सीओ शामिल हैं। चर्चाएं तो यह भी चल रही हैं कि योगी ने सहारनपुर के मामले में डीजीपी सुलखान सिंह को भी कड़ी फटकार लगाई है। उधर खबर आयी है कि आज भी शहर में शोले दहक रहे हैं। जनकपुरी में जनता रोड पर एक आदमी को गोली मार दी गई और बड़गांव में अब नकाबपोशों का कहर है। यहां नकाबपोशों ने दो लोगों को गोली मारी।

किसी भी हादसे या पूरे घटनाक्रम में किसी अफसर या अफसरों की टीम को हटाना कोई बड़ी बात नहीं होती है। सरकार के पास पूरा अख्तियार है कि वह अपने जिस भी मुलाजिम को जहां चाहे हटाये, लगाये, दंडित करे। प्रशासनिक सिद्धांतों के तहत यह अधिकारियों को ताश की तरह फेंटना सरकार के दायित्‍वों में से प्रमुख कार्य है। लेकिन उसका कोई जस्टिफिकेशन भी तो जनता के सामने आना ही चाहिए, अन्‍यथा सरकार अपनी मनमर्जी और भयावह अराजकता का शिकार हो जाएगी।

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बड़ा दारोगा

एनपी सिंह और सुभाष दुबे को सहारनपुर से क्‍यों हटाया गया। और उससे भी जानना बहुत जरूरी है कि आखिर लव कुमार को क्‍या सहारनपुर से हटाया गया। यह सवाल बड़ा मौजू और समीचीन है। उससे भी ज्‍यादा जरूरी यह है कि सहारनपुर में जब सैकड़ों बड़े भाइपाइयों के नेतृत्‍व में आक्रामक भीड़ ने जब शहर में तांडव किया और फिर बाकायदा आक्रामक जुलूस निकाल कर वे दंगाई एसएसपी के आवास पर पहुंच गये, और वहां एसएसपी लव कुमार, उसकी पत्‍नी और बच्‍चों तक से भयावह और डरावना सुलू‍क किया, तब एसएसपी ने क्‍या किया। सवाल तो यह पूछना चाहिए कि पूरे जिले के सर्वोच्‍च पुलिस प्रमुख के तौर पर लव कुमार क्‍यों इतने भयभीत रहे, क्‍यों उनके घर पर दंगाइयों ने हमला के अंदाज में प्रदर्शन किया, तो लव कुमार क्‍या कर रहे थे। लवकुमार के पास तो पुलिस भी थी, पीएसी थी, पैरामिलिट्री थी, फिर किसी डरपोक की तरह लवकुमार दुबके रहे। बलवाइयों से निपटने के लिए लवकुमार ने कोई भी कदम नहीं उठाया। किसी चाकलेटी-ब्‍वाय की तरह वे केवल अपने आला अफसरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे। इतना ही नहीं, लव कुमार ने तो उस हादसे के बाद 24 घंटों बाद ही मामले की रिपोर्ट दर्ज करायी थी।

इधर लव कुमार की जगह गाजीपुर से सहारनपुर भेजे गये सुभाष चंद्र ने भीड़ को तोड़ने के लिए दिन-रात मेहनत की। एक-एक गलियां छानते रहे सुभाष। जबकि लव कुमार का रवैया उससे बिलकुल उलट था।

नतीजा बिलकुल चौंकाने वाला दिख रहा है अब।

लव कुमार को सहारनपुर से नोएडा भेजा गया था, जबकि सुभाष चंद्र को वेटिंग में डम्‍प कर दिया गया है। (क्रमश:)


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