जब मेरी कुटिया पर पधारे डॉ दिनेश शर्मा

बिटिया खबर
: शाम को अचानक फोन आया कि मैं घर आ रहा हूं, चाय साथ ही पिया जाएगा : कॉलोनी में पुलिस की गाडि़यों का सायरन पकाऊं-पकाऊं की आवाज से गूंजने लगी : हालचाल, पुरानी यादें, ठहाके, मित्रों की खोजबीन, बकुल का विवाह, छोटी बिटिया की ससुराल जैसी घरेलू बातचीत :

कुमार सौवीर
लखनऊ : कोई बहुत पुराना और प्‍यारा दोस्‍त जब आमने-सामने हो जाता है, तो गर्व होता है। केवल खुद या उस मित्र पर नहीं, बल्कि हमारी अर्जित मित्रता की सम्‍पदा पर, हमारे जीवन-अर्थ पर, प्रारब्‍ध पर और उसकी भवितव्‍यता पर भी।
सामान्‍य तौर पर मैं अपने उन मित्रों के दफ्तर नहीं जाता हूं, जो किसी बड़े ओहदे पर हैं। वजह यह कि मुझे अपने मित्र के यहां न तो हाजिरी लगाने की कोई जरूरत पड़ती है, और न ही ऐसी कोई आदत ही। हम केवल मित्र हैं, और गाहे-ब-गाहे फोन-शोन पर बतियाते ही रहते हैं।
तीन दिन पहले शाम करीब सात बजे डॉ दिनेश शर्मा जी का फोन आ गया। सामान्‍य बातचीत के बाद बोले:- मैं घर आ रहा हूं, चाय साथ ही पिया जाएगा।
अभी फोन बात कटा ही था, कि पुलिसवालों के फोन आने लगे:- “सर, घर की लोकेशन समझा दीजिए। डिप्‍टी सीएम साहब की फ्लीट के लिए रूट फाइनल करना है। ”
उसके बाद मोहल्‍ले में तो पुलिस की गाडि़यों का सायरन पकाऊं-पकाऊं की आवाज से गूंजने लगी।
एक आधा घंटा के बाद डॉ दिनेश अपनी चिर-परिचित स्मित मुस्‍कान के साथ दरवाजे पर खड़े थे। उनके साथ थे लखनऊ के कामर्स-प्रोफेसर बीके गोस्‍वामी, जो भाजपा के प्रवक्‍ता भी हैं।
घर में मौजूद थी मेरी बिटिया बकुल सौवीर, और मेरे प्रियतम मित्रों में से एक तथा सामाजिक-आर्थिक विशेषज्ञ प्रभात त्रिपाठी। बकुल सौवीर तो बचपन से ही डॉ दिनेश शर्मा की दत्‍तक पुत्री हैं, उधर साशा सौवीर का कन्‍यादान करके डॉ दिनेश पहले ही उऋण ही हो चुके हैं। करीब 20-25 मिनट तक हम लोग बतियाते ही रहे। सामान्‍य से पारिवारिक मसले ही पसरे रहे। मसलन, हालचाल, क्‍या चल रहा है, पुरानी यादें, ठहाके, मित्रों की खोजबीन, बकुल का विवाह, छोटी बिटिया की ससुराल और मेरा कामधाम।
चलते-चलते पूछ लिया कि बकुल की शादी तो 13 अक्‍टूबर को ही है न। बकुल बेहद उत्‍साहित थीं, बोलीं:- “अंकल ! 13 अक्‍टूबर को पूरे दिन हमें आपका साथ चाहिए। नो बहाना।” चलते समय फोटो-सेशन भी हुआ। साशा-सौमित्र तो समय से नहीं पहुंच पाये, लेकिन बकुल की शादी के हीरो बनने वाले प्रवीण मिश्र दरवाजे पर पहुंच ही गये। वहां भी फोटो खिंचवायी। और दिनेश शर्मा जी ने गोस्‍वामी को हमारे हवाले किया, बच्‍चों को आशीर्वाद दिया और फिर काफिला रवाना हो गया।
गोस्‍वामी से फिर काफी देर बैठे। गोंडा के कंडैलगंज निवासी गोस्‍वामी का व्‍यवहार वाकई बहु-आयामी है।
हालांकि हमारी विनीता चंद्रा भाभी मुंह फुलाये बैठी हैं, कि उनकी एक पड़ोसन-गायक मित्र से मैं उनकी मुलाकात नहीं करा पाया। सॉरी। लेकिन मैं क्‍या करता। शर्मा जी के जाने के बाद जब वे पहुंचीं, तो कैसे उनकी भेंट हो पाती।

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