: पचीस साल पहले हाईकोर्ट में हुए जूता-फेंक काण्ड का क्या हुआ, जवाब तो मांगा ही जाना चाहिए : आखिर किस धारा में लिखा है कि सरेआम वादी को वकीलों का झुण्ड सड़क पर नंगा कर पीट सकता है : लॉ की डिग्री आपको एडवोकेटिंग के लिए मिली है, या बकैती के लिए : अदालत में वकील- दो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : वह करीब 27 साल पहले का वाकया है, जो हमेशा न्यायिक इतिहास में एक घिनौने दाग की तरह दर्ज रहेगा। तब इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ में जस्टिस लाल और जस्टिस सिंह की बेंच पर किसी मामले पर बहस चल रही थी। अचानक हंगामा हुआ और वकीलों ने तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया। वकीलों के एक बड़े नेता इन वकीलों का नेतृत्व कर रहे थे। वहां मौजूद लोगों के कानों में खौलते सीसे की तरह अश्लील गालियां बेहिसाब बकी जा रही थीं। अचानक एक झटके से एक वकील साहब ने डायस पर चढ़ कर जज साहब के साथ वह अभद्रता कर डाली, जिसका बयान कर पाना किसी सभ्य शख्स के वश की बात नहीं।
बहरहाल, इसके बाद इसको लेकर भी जम कर हंगामा हुआ। नाराज जज भी खूब बमके। वकील भी लामबंद होते जा रहे। आखिरकार कुछ वकीलों पर कार्रवाई के नाम पर बुक किया गया और मामला दोनों ओर से ही समाप्त कर लिया गया समझा गया। इस पर भविष्य में कभी भी कोई चर्चा न्यायिक क्षेत्र में नहीं हो पायी। जाहिर है कि बार मजबूत था और कोर्ट भी बैकफुट में आ चुकी थी।
लेकिन इसके बाद से ही ऐसा नहीं हुआ कि बार के सदस्यों ने खुद को सम्भाला हो। मनबढ़ वकीलों ने ऐसी हरकतें अब अक्सर और गाहे-ब-गाहे अपने आचरण में शामिल कर लिया। चाहे वह हाईकोर्ट में हंगामा का मामला हो, या फिर सेशंस कोर्ट में हुआ बवाल, वकील आगे ही बढ़ते रहे हैं। लेकिन तब तो इम्तिहां ही हो गयी, जब एक पूर्व सांसद बनवारी लाल कंछल को वकीलों ने कोर्ट परिसर से पकड़ा और फिर उन्हें पीटते हुए उनके कपड़े फाड़ कर उन्हें लगभग नंगा ही कर दिया। हमला का अंदाजा आपको इसी बात से लग सकता है कि कंछल के गुप्तांग से रक्तस्राव होने लगा था। जान बचा कर वकील जब कोर्ट के बाहर भागे तो हाईकोर्ट के बाहर सड़क पर वकीलों के झुण्ड ने फिर उन पर हमला बोला और फिर सरेआम सड़क पर उनकी पिटाई की गयी।
वकीलों की कीर्ति और यश-गाथाएं लगातार किसी पद्मश्री सम्मान की तरह
काले कोट पर टंकती-सुशोभित होती जा रही हैं। अधिवक्ताओं के ऐसे ही महान
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अभी हाल ही कलेक्ट्रेट के वकीलों ने एक दो अपर जिलाधिकारियों और एक एसडीएम समेत कई कर्मचारियों को जिलाधिकारी कार्यालय उनके दफ्तरों में घुस कर पीटा-कूट दिया था। कई अधिकारियों और कर्मचारियों को इस हमले पर खून भी निकला। गुस्से में कलेक्ट्रेट में हड़ताल हुई, पीसीएस अफसरों के संगठन ने प्रदेश व्यापी हड़ताल का आह्वान किया, लेकिन यह हड़ताल चल नहीं पायी। पांच मांगों को लेकर विरोध चलता रहा, लेकिन उनमें से भी एक भी मांग सरकार ने नहीं मानी। हां, दोषी अधिवक्ताओं पर मुकदमा दर्ज उन्हें गिरफ्तार करने वाली मांग को लेकर पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं हो पायी।
दरअसल, अब वकील समुदाय और कोर्ट के बीच एक अलिखित जंग छिड़ चुकी है, जो लगातार भड़कती ही जा रही है। चाहे वह हाईकोर्ट हो या फिर सेशंस अथवा कलेक्ट्रेट अथवा तहसील की अदालतें। सभी जगहों पर वकीलों में संयम और अधिवक्तामय गुरूता का लोप होता जा रहा है। किसी को भी पीट देना वकीलों के बायें हाथ का काम है। इलाहाबाद में एक दारोगा को पीटने पर आमादा वकीलों की भीड़ से बचने के लिए दारोगा ने फायरिंग कर दी। एक वकील मारा गया था। लखनऊ सेशंस में यादव सिंह और उसकी सुरक्षा के लिए आये पुलिसवालों को भी वकीलों ने घेर कर पीट दिया। ( क्रमश:)
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