राजस्‍थान में बलात्‍कार नहीं, लज्‍जा-भंग के मामले ही होते हैं। वह भी कभी-कभार

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: विषमतम मनो-भूगोल में आस्‍थाओं की बेलें बेहद तीव्रता में अपनी जड़ें जमाती हैं : महिलाओं के प्रति अगाध श्रद्धा का क्षेत्र है राजस्‍थान : राजपूतों को निम्‍नतम करार देकर आप क्‍या साबित कर पायेंगे : राजपूतों के मूर्ख होने का मतलब यह तो नहीं कि आप खिलजी बन कर नरसंहार करा दें : पद्मिनी। श्रद्धा-शिखर दरका, दावानल भड़का- दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : भंवरी-कांड को छोड़ दिया जाए, तो राजस्‍थान महिलाओं के सम्‍मान के क्षेत्र में सर्वोपरि राज्‍य है। बाकी जगहों पर यौन-हिंसा होती है, उससे आम राजस्‍थानी शख्‍स के रोंगटे ही नहीं खड़े होते हैं, बल्कि वे आक्रोश में आ जाते हैं। लेकिन कम से कम यूपी, बिहार, एमपी समेत पूरे हिन्‍दी भाषा-भाषी क्षेत्रों में तो यही हालत है, कि वहां यौन-हिंसा से सारे अखबार पटे-पड़े होते हैं। यूपी के कुछ जिलों के बारे में तो यौन-हिंसा और यौन-अराजकता की हालत यह है कि उन समाजों का नामकरण ही पीसीएस हो चुका है। और तो और, गुजरात में यौन-अराजकता तब सर्वोच्‍च अंक तक पहुंच जाती है, जब नवरात्र के दौरान डांडिया उत्‍सव चलता है। तब होटलों के कमरे केवल रात में ही आबाद होते हैं, और पूरे राज्‍य में कण्‍डोम की बिक्री 30 गुना तक पहुंच जाती है।

आप भले ही गुजरात की उस हालत को विकास और यौन-उन्‍मुक्‍तता अथवा यौन-जागरूकता के चश्‍मे से झांक लीजिए, लेकिन गुजरात की इस हालत के ठीक विपरीत उससे सर्वाधिक सीमा से सटे राजस्‍थान में ऐसी एक भी नजीर नहीं होती है। यौन-अपराध भी वहां न्‍यूनतम होते हैं। कारण यहां कि वहां के समाज में महिलाओं के प्रति अतिशय सम्‍मान है। यह दीगर बात है कि इसके एवज में वहां का समाज महिलाओं से अनवरत मूल्‍य वसूलता रहता है, लेकिन यौन-अपराध कत्‍तई नहीं। रेप तो हर्गिज नहीं होते हैं वहां। हां, वहां यौन-अपराध के नाम पर केवल लज्‍जा-भंग के मामले भी यदा-कदा सामने आते हैं। मसलन, किसी को घूर लेना, उससे इशारा करना, उसको छू लेना, उसके पल्‍लू को पकड़ लेना। बस्‍स्‍स्‍स्‍स्‍स। इससे ज्‍यादा नहीं। कत्‍तई नहीं। भंवरी देवी अपवाद हैं राजस्‍थानी समाज में।

बहरहाल, राजस्‍थान समाज में महिलाओं के प्रति यह सम्‍मान की धुरी वहां के इतिहास और वहां की दुर्धर्ष भौगोलिक परिस्थितियों के चलते ही है। न पर्याप्‍त पानी, न समुचित भोजन। गरमियों में तो राजस्‍थान की अधिकांश ढांडि़यां सूख जाती हैं। अधिकांश राजस्‍थान में रेत है। बाकी जगहों पर भी खेती के नाम पर केवल बारिश के दौरान बाजरा ही उगता है। ऐसे में समाज एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो जाता है। काला हिरण के प्रति उनकी ममता विश्‍वविख्‍यात है, जहां की महिलाएं काला हिरण के बच्‍चे को अपना दूध तक पिलाती हैं। वृक्षों के प्रति उनका प्रेम अप्रतिम है, जो उनकी आवश्‍यकता-जनित भी है।

यूपी-दिल्‍ली में तो महिला तो दूर, कोई स्‍कूली बच्‍ची तक बैठी हो तो उसके हर एक अंग को छूने की होड़ मच जाती है वहां मौजूद आसपास बैठे लोगों में। खास कर अधेड़-बुजुर्गों तक में। बाकी लोग या तो चुपचाप रहते हैं, या फिर बेबसी में रहते हैं कि आखिर वे उस लड़की की बगल में क्‍यों नहीं सीट हासिल कर पाये। यूपी के पूर्वांचल के अलावा बिहार तथा झारखंड के अधिकांश हिस्‍सों के शहर ही नहीं, गांवों तक में भोजपुरी गीतों ने लोकगीतों को अश्‍लीलता का पर्याय बना डाला है। इतना ही नहीं, कस्‍बाई इलाकों तक में महिला को देखते ही पुरूषों का झुण्‍ड क्‍या ज्‍यादा ही मुखर होकर कुछ यूं गाली-गलौज में वार्तालाप शुरू कर देता है, मानो उसे आसपास बैठी स्‍त्री की उपस्थिति का अहसास ही नहीं।

लेकिन कम से कम राजस्‍थान में ऐसा नहीं है। रेतीले इलाकों में धड़कने वाले दिलों में भावनाओं का ज्‍वर उबलता है। कर्कशा रेत को मुट्ठी में दबोचने की हर कोशिश हर प्रयास में निष्‍फल हो जाती है। यहां अकेली महिला कभी भी, कहीं भी जा सकती है। कोई उससे कोई छेड़खानी नहीं करेगा। बस-ऑटो में महिला चौड़े से बैठती हैं, जबकि पुरूष खुद में समेट कर बैठता है। ट्रेन-बस में अगर रात के सफर पर कोई महिला निकली हो, तो बाकी सहयात्री उसकी हर जरूरत पर जागरूक होते हैं। ( क्रमश: )

प्रेम और त्‍याग पर केंद्रित एक काल्‍पनिक कथानक की नायिका पद्मिनी सदियों से श्रद्धा के सर्वोच्‍च पायदान पर विराजती रही है। लेकिन आज उसी सर्वोच्‍च शिखर की इमारत को दरकाने की कोशिश शुरू हो गयी, तो तांडव शुरू हो गया है। इसी सब्‍जेक्‍ट पर यह लेख श्रंखला-बद्ध रूप में प्रस्‍तुत किया जा रहा है। अगर आप इसकी बाकी कड़ी देखना चाहें, तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

पद्मिनी। शिखर दरका, दावानल भड़का


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