धत्त तेरी की! देखो तो कि क्या-क्या नहीं छाप देते हैं अखबार

बिटिया खबर

: अलाव की लकड़ी को इस बकलोल सम्‍पादक ने लड़की छाप दिया : पता ही नहीं चलता कि तहसीलदार का चरित्र दल्‍ला-भड़वागिरी का है, या फिर यह करतूत रिपोर्टर की है : अखबार ने छाप दिया कि ठिठुरते लोगों को गरम करने के लिए भेजी जाएंगी लड़कियां :

मेरी बिटिया संवाददाता

बनारस : अब यह समझ नहीं आता कि जौनपुर का प्रशासन गधों के हाथ में है या अखबारों में संपादक की कुर्सी पर गधे बैठते हैं। जी हां, ताजा खबर यह है कि इस बार की कड़ाके की सर्दी से बुरी तरह ठिठुरते आम आदमी को निजात दिलाने के लिए एक अजीबोगरीब साधन मुहैया कराने वाली प्रशासनिक कवायद छेड़ दी है। इसके तहत जौनपुर के विभिन्‍न इलाकों में जगह-जगह अलाव तो जलाये ही जाएंगे, साथ ही साथ जनता को सर्दी से बचाने के लिए लकड़ी के लिए बजाय प्रशासन द्वारा लड़कियों की व्यवस्था भी की जाएगी।

यह घिनौना समाचार छाप दिया है बनारस से छपने वाले एक अखबार ने।

शाहगंज के लोगों ने 4 जनवरी को जब यहां पहुंचने वाले एक अखबार के पन्ने खोलना शुरू किया तो उनके कान की लवें ही गरम हो गईं। दिमाग भन्ना गया और लोगों ने अपना अखबार फाड़ कर नाली में फेंक दिया। खबर में लिखा था कि खुटहन डेटलाइन से खबर के हिसाब से तहसीलदार ने सामूहिक स्थलों पर अलाव जलाने के लिए 10 कुंतल सूखी लकड़ी भिजवाई है। खबर के मुताबिक इस तहसीलदार ने जनता को सर्दी से निजात दिलाने के लिए लड़कियों की व्‍यवस्‍था भी कर रखी है।

मतलब यह कि अब यह तहसीलदार अब लड़कियों की दल्‍लागिरी में जुट गया है, या फिर यह पत्रकार का कुत्सित विचार उसकी कलम से अखबार में पहुंचे जहां सम्‍पादक तक ने उस की राय पर सहमति जताते हुए यह खबर पर मोहर लगा दी। हैरत की बात है। शर्मनाक भी। हम खुद को जिम्‍मेदार अखबार और पत्रकार कहलाते हैं।

इस बाबत दो पत्रकारों ने मुझे यह खबर और उसकी कटिंग भेजी है, और बताया है कि खबर के नाम पर अफसरों को तेल लगाने की आपाधापी में इस अखबार के रिपोर्टर ने यह खबर भेजी थी, जो सम्‍पादक ने बिना किसी काट-छांट के ही छाप डाली। कहने की जरूरत नहीं कि यह हरकत निहायत शर्मनाक और सामाजिक दायित्‍वों के साथ ही साथ अखबारों में होते संपादकीय चरित्र को भी कलंकित करती है।

अब जरा पढ़ लीजिए साथ लगे अखबार की कटिंग वाली फोटो को। आपको भी गुस्सा आ जाएगा।

दरअसल यह अखबार आजकल अपनी लापरवाहीपूर्ण हरकतों पर अपनी थू थू करा रहा है। सच बात यही है कि इस खबर को लिखने वाले रिपोर्टर की मंशा लड़की नहीं, बल्कि लकड़ी लिखने की ही रही होगी। लेकिन इस अखबार में जब बिना वेतन दिये रिपोर्टर तैनात किये जाते हैं, उन्‍हें रूपया देने के बजाय अखबार मालिक उनके विज्ञापन बटोरने में जुट जाते हैं। ऐसे में फिर सिर्फ बेकार और धंधेबाज लोगों के बल पर जुटे लोगों से चल रहे अखबारों में व्याकरण और वर्तनी का कोई मतलब नहीं रह गया है। जिसकी जो समझ में आता है वह लिख देता है। खबरों को तोड़ना मरोड़ना उसे दबाना उछालना या अर्थ का अनर्थ कर देना आज के अखबार के चरित्र का एक नया पहलू है।

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