चाहे अयोध्‍या हो, मथुरा या फिर पंचकुला, भीड़ जुटाने का मतलब सिर्फ रक्‍तपात

सैड सांग

: पंचकुला में अब तक 35 से ज्‍यादा लाशें बिखरे जा चुकी हैं : 27 साल पहले अयोध्‍या में दो बार पुलिस गोलाबारी में दर्जनों लोगों की हत्‍या : 17 सितम्‍बर-12 को उकसा कर कई शहरों में कहर ढाया गया : मथुरा के जवाहर बाग में 32 लोगों की पुलिस फायरिंग में हत्‍या : लखनऊ में एक लाख मुसलमानों ने जमकर आतंक मचाया था :

कुमार सौवीर

लखनऊ : भीड़ की बेहद करीबी रिश्‍तेदारी होती है मौत। और इस गठबंधन के पुरोहित होते हैं राजनीति की बिसात पर अपनी गोटियां बिछाये नेता लोग। इतिहास है कि जब भी नेताओं ने षडयंत्र के तौर भीड़ को उकसाया है, हमेशा मौत ही खून-खराबा के साथ नहा-धोकर ही आयी है। लेकिन इसमें भी खास तथ्‍य यह है कि इसमें जातीय और धार्मिक आधार पर राजनीति करने वालों की भूमिका सबसे घटिया होती है। कम से कम अयोध्‍या, लखनऊ और मथुरा में हुई बड़ी घटनाएं तो इसका ताजा सशक्‍त उदाहरण हैं। इनमें से अयोध्‍या और मथुरा वाला नरसंहार तो सीधे समाजवादी पार्टी की सरकार में हुआ।

इस क्रम की ताजा कड़ी साबित हुआ है पंचकुला, जहां एक बलात्‍कारी के समर्थन में जुटी लाखों दंगाइयों की भीड़ की करतूतों ने आज 35 से भी ज्‍यादा नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया है। खुद को डेरा सच्‍चा सौदा नामक एक तथाकथित धार्मिक सम्‍प्रदाय के मुखिया गुरमीत रामरहीम सिंह के समर्थकों ने यहां ऐतिहासिक दंगा किया। गुरमीत को आज दोपहर ही यहां की एक अदालत ने एक बलात्‍कार के मामले में दोषी ठहराया था। लेकिन जैसे ही अदालत के बाहर खड़ी भीड़ को सजा की खबर सुनी, वे तोड़-फोड़, हमला और आजगनी में जुट गये।

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मथुरा

पहले तो 31 अक्‍टूबर-90 और 2 नवम्‍बर-90 को राजनीतिक हत्‍याकांड हुआ, जिसमें सीधे-सीधे तौर पर तब की समाजवादी पार्टी की सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपना रक्‍त-पिपासु चेहरा सबके सामने खोल डाला। दौर था भाजपा के उस नारे का, जो राममंदिर बनाने पर उतारू था। अपनी राजनीति को चमकाने के लिए भाजपा के साथ विहिप वगैरह जैसे संगठन एक बैनर के नीचे आ गये और राममंदिर आंदोलन खड़ा कर दिया। उसी नारे को अमली रूप दिलाने के लिए रामभक्‍तों को अयोध्‍या बुलाया गया।

मुलायम सिंह यादव को साफ लगा कि इस तरह उनकी राजनीति को भाजपा लपक लेगी। मुलायम यह कैसे बर्दाश्‍त कर पाते कि उनकी दूकान भाजपा कैच कर ले। उन्‍होंने नारा दिया कि कोई भी परिंदा तक अब अयोध्‍या तक पहुंच पायेगा। लेकिन उमा भारती चुपके से घुस आयीं अयोध्‍या में। बस, इसी पर भड़क गये मुलायम, और पहले 31 अक्‍टूबर, और फिर 2 नवम्‍बर-90 को रामभक्‍तों के हुजूम में अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गयीं। इसके बाद मुलायम सिंह की सियासत चमक गयी। वे मुसलमानों को यह यकीन दिला गये कि उनकी सरकार मुसलमानों के हक के लिए हिन्‍दुओं को भी खत्‍म कर सकती है, और भाजपा भी यह हिन्‍दुओं को यकीन दिला गयी कि मुसलमानों के आका बने मुलायम सिंह यादव ही हिन्‍दुओं के असली दुश्‍मन हैं। उसी के बाद से ही मुसलमानों और हिन्‍दुओं के बीच खाई बहुत गहरी हो गयी। ( क्रमश: )

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डेरा सच्‍चा सौदा के गुरमीत रामरहीम ने मानवता के नाम पर एक ऐसा घटिया, नृशंस और बेहद ऐसा अमानवीय सौदा पक्‍का कर डाला, जिसमें अब तक 35 लोगों की मौत हो गयी है, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गये हैं। सरकारी और निजी सम्‍पत्ति को बेहिसाब नुकसान हुआ है। खबर है कि करीब एक हजार से ज्‍यादा वाहनों को या तो फूंका जा चुका है, या फिर तोड़ा गया। पंचकुला में हुए इस ताजा हादसे की नींव काफी पुरानी है। ताजा राजनीति की रक्‍त-पिपासु प्रवृत्ति में सबसे घटिया घटना तो अयोध्‍या का नरसंहार था, जो मुलायम सिंह यादव के आदेश पर हुआ था।

भीड़ जुटा कर अपनी राजनीति साधने, स्‍वार्थवादी राजनीति के फल चाटने वाली हरकतों को हमने अयोध्‍या से लेक‍र अब तक की घटनाओं से समेटा है। इसकी दूसरी कड़ी पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

नर-संहार से उगती राजनीति

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