जजों तक को बैकफुट पर लाने वाला जीवट शख्‍स, क्षणिक तनाव में बिखर गया

बिटिया खबर

: शानदार शख्सियत थे रमेश पांडेय, हाईकोर्ट में ही इहलीला खत्‍म कर दिया : दोस्‍ती, प्रोफेशन और साहस के बेमिसाल इंसान के अकाल अवसान से हाईकोर्ट बार सन्‍नाटे में : हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी थी रमेश ने :

कुमार सौवीर
लखनऊ : जस्टिस उमानाथ सिंह रहे हों या फिर जस्टिस अजय लाम्‍बा, अदालतों में इन जजों की ही तूती चलती थी। जब भी किन्‍हीं मसलों पर तनाव का मौका आ जाता था, वकीलों को ही अपना कदम पीछे खींचना पड़ता था। लेकिन रमेश पांडेय इन में अपवाद थे। उनकी मौजूदगी ही पर्याप्‍त मानी जाती थी। कम से कम जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस लाम्‍बा के मामलों में तो जब भी ऐसी कोई नौबत आयी, रमेश पांडेय ने स्‍टैंड लिया और नतीजा यह हुआ कि जजों को ही बैकफुट पर जाना पड़ा। मगर लखनऊ के न्‍यायिक जगत में दमकता वही नायाब शख्‍स आज अचानक क्षणिक तनावों का ग्रास बन गया। लखनऊ हाईकोर्ट के एडवोकेट बिल्डिंग से दोपहर बाद करीब दो बजे के करीब रमेश पांडेय ने आत्‍महत्‍या कर ली।
रमेश चंद्र पांडेय, यानी प्रदेश के पूर्व मुख्‍य स्‍थाई अधिवक्‍ता और लखनऊ हाईकोर्ट के प्रखर वकील। सुल्‍तानपुर के निवासी और लखनऊ विश्‍वविद्यालय के विधि-छात्र रह चुके रमेश पांडेय की पहचान एक जीवट वाले इंसान की तरह रही है। पूरे जीवन में रमेश ने अपने लक्ष्‍य को हासिल किया। चाहे वह मामला गुणवत्‍ता का रहा हो, वक्‍तृता का रहा हो, साहस का रहा हो, अपने लक्ष्‍यों को हासिल करने का रहा हो, या फिर अपने समाज में अपनी छवि को बनाने का रहा हो, दूसरे वकीलों के मुकाबले रमेश पांडेय की गति हमेशा दो कदम आगे ही रही है। अपनी बात को पूरी शिद्दत के साथ कहने और उसे सलीकेदार अंदाज में पेश करने में रमेश को महारत हासिल थी।
रमेश ने बेदाग जीवन जिया। चाहे वह सुल्‍तानपुर का अपना गृह-जनपद का मामला रहा हो, या फिर लखनऊ का अपना छात्र या अधिवक्‍ता जीवन रहा हो, रमेश पर किसी भी तरह का कोई भी लां‍छन नहीं लगा। हालांकि उन्‍होंने अपना स्‍थाई आशियानी लखनऊ में खड़ा कर दिया था, लेकिन अपने गृह जनपद से उनका जुड़ाव लगातार और घनिष्‍ठ रूप से बना ही रहा। अदालतों में उनकी छवि मेरिट वाले वकील की थी। सर्विस मैटर को समझने-समझाने वाले वकीलों में रमेश अव्‍वल माने जाते थे। हंसमुख अंदाज, मस्‍तमौला व्‍यवहार, सहज जीवन-शैली और मित्रता के मूल्‍यों पर हमेशा खरे उतरे रहे रमेश पांडेयअधिवक्‍ता-जगत में खासे लोकप्रिय माने जाते थे।
लखनऊ हाईकोर्ट को देवेंद्र उपाध्‍याय और राजन राय जैसे ख्‍यातनाम जजों देने वाले एसके कालिया चैम्‍बर से ही रमेश पांडेय ने अपना अधिवक्‍ता जीवन शुरू किया था। और जल्‍द ही वह एक बड़े वकील माने जाने लगे। कारण था विषय पर उनकी मजबूत पकड़, उनकी तीक्ष्‍ण मेधा, उनका प्रभावी अंदाज और उनका मिलनसार व्‍यवहार। अवध बार एसोसियेशन के पूर्व महामंत्री आरडी शाही बताते हैं कि रमेश पांडेय की पहचान वीरेंद्र भाटिया जैसे बड़े समर्पित वकील की श्रेणी की थी। व्‍यवसाय में खासे व्‍यस्‍त वकीलों में शुमार किये जाते थे रमेश। परिचित-अपरिचित वकीलों के बीच लगातार अपना सम्‍पर्क बनाये रखना, परस्‍पर विवादों से दूर रहना, हंसमुख अंदाज और मिलते-जुलते रहना रमेश का धंधा नहीं, उनकी प्रवृत्ति थी। जरूरतमंद वकीलों के बीच वे दिल खोल कर मदद करते थे और आड़े वक्‍त पर हमेशा खड़े रहते थे। एक बड़े अधिवक्‍ता ने बताया कि अक्‍सर तो वे अपना लंच बाकी मौजूद साथियों में बांट लेते थे। वकीलों के बीच उनकी गहरी पकड़ की वजह से वे लखनऊ हाईकोर्ट स्थित अवध बार एसोसियेशन में दो बार महामंत्री चुने गये।
भाजपा सरकार आते ही उन्‍हें मुख्‍य स्‍थाई अधिवक्‍ता बना दिया गया था। हालांकि उनकी पृष्‍ठभूमि आरएसएस से नहीं थी, लेकिन भाजपा में उनकी खासी धाक थी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के डिप्‍टी मुख्‍यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा से खासी करीबी थी रमेश पांडेय की। इसका लाभ उन्‍हें इस प्रोफेशन में मिला। लेकिन इसी बरस जुलाई में उन्‍होंने इस पद से इस्‍तीफा भी दे दिया था, और वे अपने चैम्‍बर में लौट गये। उनका यह फैसला बेहद अबूझ था, लेकिन उन्‍होंने इस पहेली को बाकी साथियों के बीच बांटने-समझाने की कोई भी कोई कोशिश नहीं की।
हालांकि इसके बाद भी उन्‍होंने कुछ और पहेलियां भी बुनीं। मसलन, इस्‍तीफा देने के बाद अवध बार एसोसियेशन के चुनाव की तैयारी। उन्‍होंने ऐलान किया था कि वे अध्‍यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे। लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्‍होंने अपना यह फैसला बदल दिया। ऐसा क्‍यों हुआ, कोई भी समझ न हीं पाया, और न ही रमेश पांडेय ने उसे सुलझाने की कोई जरूरत भी नहीं समझी।
उनके जीवट जीवन की इससे बेहतर मिसाल और क्‍या होगी, कि अभी कुछ महीनों पहले ही मौत को चकमा दे आये थे। सुल्‍तानपुर से फैजाबाद होते हुए लखनऊ वापसी करते वक्‍त उनकी कार का एक जबर्दस्‍त एक्‍सीडेंट हुआ था। इस हादसे में उनके कई अंगों में मल्‍टीपल फ्रैक्‍चर हुआ। बचने की उम्‍मीद तक नहीं थी डॉक्‍टरों को, लेकिन उस हादसे के चलते मौत को धता दे दिया था रमेश पांडेय ने।
लेकिन आज….
आज दोपहर भी अपने चैम्‍बर में हमेशा की तरह उन्‍होंने अपने साथियों के साथ बाकायदा लंच किया, बतियाते रहे, और फिर …
लखनऊ का न्‍याय-जगत स्‍तब्‍ध है, शोकाकुल है।

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