: दर्जनों बेरोजगार, सिर्फ दो बचे गंगाजल डालने के लिए : दिल्ली से पीडीएफ फार्मेट में भेजा जा रहा है जागरण :
दोलत्ती संवाददाता
- नई दिल्ली : कोलकाता से दैनिक जागरण बन्द होने की सूचना अभी अभी जनसत्ता के रिटायर साथी जॉय नारायण ने दी है। सत्रह लोग और उनके परिवार सड़कों पर आ गए। इन्हें अन्यत्र नौकरी मिलने की कोई संभावना नही है। क्योंकि अखबार में काम करने के बाद कोई और नौकरी करना मुश्किल है। मीडिया में नौकरियां खत्म है।
जनसत्ता कोलकाता में छप रहा है बिना सम्पादक पत्रकार के। दिल्ली से पीडीएफ भेज दी जाती हैं। इंजीनियर पेज बना देते हैं। विज्ञपनों के लिए दो डिजाइनरों आर्टिस्ट सुमित गुहा और विमान रॉय की नौकरी अभी बनी हुई है। जनसत्ता से निकले लोगों को भी कहीं नौकरी नही मिली।
हमने 1984 से 1990 तक दैनिक जागरण मेरठ में काम किया है। तब वहां प्रशिक्षु पत्रकारों को 600 रुपये दिए जाते थे, जिन्हें चुनना और प्रशिक्षित करने हमारा काम है। हर छह महीने काम सीखकर प्रशिक्षु पत्रकार कहीं और भाग निकलते थे। फिर हम पत्रकारों ली खोज शुरू करते थे। उनमें से दर्जनों सम्पादक बन गए।
अस्सी के दशक में भी अखबारों में पत्रकारों के बिना काम नहीं चलता था और काबिल पत्रकारों को नौकरी देने के लिए अखबारों में होड़ मची रहती थी।
हमारे सामने कुलदीप नैय्यर, खुशवंत सिंह जैसे तमाम लोग थे, जो जीवनभर पत्रकारिता करते रहे। हमने तब अपनी आर्थिक सामाजिक सुरक्षा, हैसियत और भविष्य के बारे में कुछ नही सोचा।
नब्वे के दशक में भी हमारी सिफारिश पर दर्जनों लोगों को नौकरी मिली है। तब भी काबिल पत्रकाटों की जरूरत होती थी।
नब्वे केदशक खत्म होते होते आटोमेशन और कारपोरेटीकरण से अखबार में सम्पादक खत्म हो गए। सम्पादक के नाम मैनेजर रखे जाने लगे, जिन्हें आम जनता की तो छोड़ दीजिये, साथी पत्रकारों की भी कोई परवाह नहीं होती। अभी तक जागरण ने इस बारे में कोई
अब किसी अखबार या मीडिया को पत्रकार नही चाहिए। कारपोरेट राजनीतिक दलालों को पत्रकार बनाया जा रहा है। जिससे पत्रकारीता सिरे से खत्म है।
हमारे लिए यह बहुत शर्म और निराशा की बात है कि हमने इस पत्रकारिता में पूरी ज़िंदगी खप दी और अपनी जमीन अपने लोगों से कट गए।