: जब सरकार जातीय-धार्मिक आधार पर सोचेगी, तो अफसरशाही की ही मनमानी चलेगी : डीएम बोले एसएसपी से, चलिये छूटे इलाकों का मुआयना किया जाए : शिवलिंग को हटा कर आम्बेडकर की मूर्ति लगा दी, भड़क गया दंगा : इटावा में खासा चर्चित रहा है यह अजीब-ओ-गरीब झगड़ा : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- पांच :
कुमार सौवीर
लखनऊ : डॉ फलाने-ढमकाने मिश्र का नाम यूपी पुलिस में सम्मान के साथ लिया जाता है। अपनी कार्यशैली को लेकर। एक बड़े पत्रकार और साहित्यकार छोटे भाई हैं मिश्र जी। दस साल पहले डीआईजी पद से रिटायर हुए दयानिधि जी अब वाराणसी के नदेसर इलाके में रहते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के साथ चोली और दामन का रिश्ता साढ़े तीन दशकों तक निभाने वाले मिश्र का अनुभव आप सुनेंगे तो दांतों तले उंगली चबा डालेंगे। फिलहाल, सुनिये वह किस्सा, जो इटावा का है और तब वे वहां एसएसपी के पद पर तैनात थे।
तो सुनिये वह किस्सा। मायावती ही यूपी की मुख्यमंत्री थीं। मिश्र इटावा के एसएसपी बनाये गये और जिलाधिकारी के पद पर तैनात हुए एम के सन्त। इटावा शहर में एक चौराहे पर पर शिवमंदिर था और कुछ बरस पहले कुछ दलितों ने आम्बेडकर की मूर्ति रख दी थी। कहने की जरूरत नहीं कि यह दोनों ही जगहें सार्वजनिक थीं और साफ-साफ बोलें तो अवैध कब्जा था इन दोनों का। हां, फर्क सिर्फ इतना ही था कि शिवलिंग खासा पुराना था, जबकि आम्बेदकर की मूर्ति जुम्मा-जुम्मा दो साल पहले ही लगायी गयी थी।
एक दिन सुबह-सुबह एमके सन्त ने फलाने मिश्र से आग्रह किया कि आज जिले के कुछ अछूते इलाकों का भी मुआयना हो जाना चाहिए, ताकि वहां भी कानून-व्यवस्था और विकास की सम्भावनाएं मजबूत की जा सकें। एसएसपी को इसमें क्या ऐतराज होना था। वे तैयार हो गये। एक ही गाड़ी में दोनों लोग रवाना हो गये। यह इलाका बेहद बीहड़ था। यूपी का ही अंग होने के बावजूद हालत यह थी कि वहां पहुंचने के लिए पहले भिण्ड और मुरैना होकर ही वापस यूपी के इटावा में जाना पड़ता था। सड़क ही बहुत खराब थी, दूर-संचार की बात तो कोसों दूर थी।
खैर, शाम को इन दोनों लोगों की वापसी हो पायी। लेकिन जैसे ही वे इटावा में दाखिल हुए, खबर मिली कि शिवलिंग को हटा कर आम्बेदकर की मूर्ति रख दी गयी है। और जाहिर है कि इस पूरे इलाके में तनाव हो गया और कुछ लोगों ने अाम्बेदकर की मूर्ति पर भी हमला कर दिया। उधर हजारों की भीड़ ने कोतवाली को घेर लिया है। यह मसला पुलिस का था, इसलिए मिश्र ने सबसे तो आसपास की फोर्स मौके पर पहुंचने का आदेश दिया और बताया कि वे भी कोतवाली पर पहुंच रहे हैं। लेकिन डीएम सन्त ने कहा कि पहले खाना-पीना कर लिया जाए, उसके बाद ही कोतवाली पहुंचेंगे। लेकिन मिश्र ने उनका आग्रह नहीं माना और अकेले ही मौके पर पहुंच गये।
पहुंचते ही उन्होंने दोनों ही गुटों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। दोनों ही गुटों को अलग-अलग जिले के दूरस्थ इलाकों में बिठाया गया। फिर उन दोनों के नेताओं को पकड़ अकेले में रखा और साफ धमकी दे दी कि तुम लोग फौरन खामोश रहो। और जिसने भी शिवलिंग हटाया है, वह उसे वहीं पुरानी जगह पर वापस रखे और अाम्बेदकर की मूर्ति पुरानी जगह ही रखी जाए। अगर तुम लोगों ने यह कहना नहीं माना, तो तुम दोनों गुटों की खैर नहीं।
मरता न करता, की शैली अपना कर दोनों गुटों ने आदेश का पालन किया। लेकिन इसके बावजूद एसएसपी ने उन दोनों के गुटों को जेल भेज दिया ताकि वे वापस लौट कर बवाल न कर सकें। और तब तक पुलिस की चौकसी दुरूस्त की जा सके। यही हुआ, मामला जस का तस कर दिया गया। अगले दिन शाम को जेल से सभी लोगों को रिहा कर दिया गया। पुलिस चौकस कर दी गयी। यानी अब आइन्दा कुछ गड़बड़ की गुंजाइश खत्म कर दी गयी।
इसके बाद ही एसएसपी अपने आवास पर पहुंचे। भोजन किया और सीधे सोने चले गये। लेकिन जब सो कर उठे तो पता चला कि उन्हें इटावा के एसएसपी पद से हटा दिया गया है। मिश्र बताते हैं कि उन्हें पुख्ता सूत्रों ने बताया था कि एमके सन्त ने सीधे मुख्यमंत्री मायावती को फोन पर समझा दिया था कि यह पूरा मामला मिश्र की करतूत थी और अम्बेदकर मूर्ति को हटा कर साजिशन शिवलिंग को रख दिया गया, और नतीजतन मायावती सरकार की छवि खराब का षडयंत्र किया गया।
लो, अब लगा लो दलित-ब्राह्मण एकता का नारा।
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