कमाल की है यूपी एसटीएफ, मवाली पत्रकारों के चरण-चांपती है

मेरा कोना

: रूको, यह मवाली पत्रकार हैं। इन्‍हें गनर चाहिए : जागरण चौराहे पर शराब में धुत्‍त होकर जागरण चौराहे पर हंगामा किया, एक निर्दोष युवक के खिलाफ एसटीएफ लगा कर जेल भिजवा दिया : दास्‍तान-ए-डरपोंक-तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजधानी में एक पत्रकार ऐसा भी है, जिसकी डिक्‍शनरी में इतने शब्‍द दर्ज नहीं हैं, जितने पुलिसवालों के नाम, और उनके फोन नम्‍बर। यही वजह है कि यह पत्रकार जब भी चाहता है, जिसके खिलाफ भी पुलिस लगा देता है। किसी भी से तनिक भी ऊंच-नीच हो जाए, यह पत्रकार सीधे बड़े पुलिसवालों को फोन करता है, और देखते ही देखते पुलिसवाले उस आदमी के खिलाफ पूरी छावनी लेकर दबोचते हैं, और किसी कुख्‍यात अपराधी की तरह उसे पहले तो मारते-पीटते हैं और फिर जेल में ठूंस देते हैं।

यह मामला है हेमन्‍त तिवारी का, जिनका धंधा आजकल खासा मंदा हो चुका है। खुद को पत्रकारों का नेता कहलाने वाले हेमन्‍त तिवारी का सेंसेक्‍स मुंह के बल औंधा है और बाजार में हाहाकार मच गया है। ग्राहकों ने दूसरी दूकानों की कुण्‍ड खटखटाना शुरू कर दिया है। वजह है योगी-सरकार। योगी सरकार ने हेमन्‍त की दूकान उजाड़ दी। उनको अब कोई भाव ही नहीं देती है यह सरकार। मुख्‍यमंत्री ने दलालों को दूर रखने का फैसला क्‍या लिया, बाकी मंत्रियों ने भी किनारा कर लिया। अब वे पपीहे की तरह एनेक्‍सी, लोक-भवन और सचिवालय में इधर-उधर करते रहते हैं कि शायद कोई न कोई उन्‍हें भाव दे दे। लेकिन उफ्

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दास्‍तान-ए-डरपोंक

लेकिन एक दौर हुआ करता था जब हेमन्‍त का धंधा चौचक था। चाहे वह बटलर पैलेस में हेमन्‍त तिवारी के घर दबिश डालने का मामला हो, सरोजनी नगर थाना के प्रभारी की पिटाई का मामला रहा हो, या फिर टाइम्‍स चौराहे पर एक निरीह युवक की कुटम्‍मस, हेमन्‍त तिवारी की तूती बजा करती थी। हम आपको याद दिला दें कि करीब सात साल पहले हेमन्‍ततिवारी अपने दोस्‍तों के साथ रात करीब एक बजे अमौसी के पास सरोजनीनगर के एक ढाबे में भोजन गये थे। शराब में धुत्‍त थे सभी लोग। बात-बात पर होटलवाले को मां-बहन की गालियां दी जा रही थीं। जब होटलवाले ने ऐतराज किया तो हेमन्‍त ने उसे पीट दिया। होटलवाले ने सरोजनीनगर थाना प्रभारी को फोन लगाया। एसओ पहुंचा और उसने पूछताछ शुरू की, तो हेमन्‍त तिवारी और उसके साथियों ने उस दारोगा को थप्‍पड़ मारा और उसकी वर्दी फाड़ कर उसे सड़क पर पीट दिया।

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शिरोमणि हेमन्‍ततिवारी

एसओ ने अपनी क्षेत्राधिकारी को फोन लगाया, लेकिन इसके कि पहले सीओ पहुंचते, हेमन्‍त तिवारी वहां से रफूचक्‍कर हो गये। सीओ ने हेमन्‍त का पीछा किया। हेमन्‍त सीधे अपने बटलर पैलेस के आवास में छिप गये। सीओ भी दरवाजे पर पहुंच गया, हेमंत को पुकारा, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। पुलिसवाले अपने साथियों के साथ हुई वारदात से बहुत आक्रोश में थे।

उधर हेमन्‍त ने अपने चेले अपर महानिदेशक कानून-व्‍यवस्‍था अरविंद जैन को फोन मिलाया। चूंकि तब की मुख्‍यमंत्री मायावती को हेमंत तिवारी अपने हाथों से केक खिलाया करते थे, इसलिए अरविंद जैन भी हेमंत को तेल लगाया करते थे। उन्‍हें डीजीपी की कुर्सी हर कीमत पर चाहिए थी। सो, अरविंद जैन मौके पर पहुंचे और भरी भीड़ में उस डीएसपी को बुरी तरह जलील किया। इतना ही नहीं, उसका तबादला लखनऊ से बाहर कर दिया और उस थाना प्रभारी को सस्‍पेंड कर दिया।

शर्मनाक बात तो यह रही कि अरविंद जैन ने एक बार भी नहीं सोचा कि हेमन्‍त ने उस इंस्‍पेक्‍टर को गिरा कर पीटा और उसकी वर्दी फाड़ी, जो पुलिस महकमे की शान मानी होती है। एक वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी इस घटना से बेहद क्षुब्‍ध थे। उनका कहना था कि अगर कार्रवाई होनी ही थी, तो पहले हेमन्‍त जैसे दलाल पत्रकार पर होती। लेकिन उल्‍टे इन दो पुलिसवालों के भविष्‍य का गला रेत दिया अरविंद ने। साथ ही पुलिस का हौसला भी ध्‍वस्‍त कर डाला। अरविंद जैन की इस करतूत का अंजाम यह हुआ कि पुलिसवालों ने अपने अफसरों के बजाय पहले हेमन्‍त तिवारी का चरण-चांपना शुरू कर दिया।

बहरहाल, इससे पुलिस महकमे में निराशा फैली, और हेमंत के हौसले बढ़े। फिर क्‍या था, एक रात हेमन्‍त प्रेस क्‍लब में अपने साथियों के साथ शराब में धुत्‍त होकर निकले और टाइम्‍स चौराहे पर होटल से निकल रहे एक युवक की कार को टक्‍कर मार दी। लेकिन अपनी गलती मानने के बजाय हेमन्‍त ने उस युवक को पीट दिया।

उस अचानक हुए हमले से बौखलाया वह बेचारा अपनी जान बचा कर भागा, तो हेमन्‍त ने पुलिस को बुला लिया। युवक की कार के नम्‍बर के आधार पर पुलिस ने उसे खोजने के लिए छापामारी करनी शुरू कर दी, लेकिन शराब में धुत्‍त हेमन्‍त तिवारी के चरण ही चाटती रही पुलिस। हेमन्‍त की चेरी-नौकर बनी पुलिस की एसटीएफ तक को उस युवक को खोजने में लगाया गया और कई दिनों बाद उसे एसटीएफ ने मुरादाबाद से दबोच कर उसे जेल में ठूंस दिया।

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पत्रकार

तो अथ-कथा का अंत यह हुआ कि मवाली हेमन्‍त तिवारी को अरविंद जैन ने एक सरकारी गनर मुहैया करा दिया। जो आज तक हेमन्‍त की सुरक्षा के नाम पर उनकी निजी चाकरी में जुटा हुआ है।

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