इन नृशंस भाजपाइयों का इलाज तो सिर्फ मेरे नाना की लाठी थी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: बेजुबान को पीटते हो? आओ, तुमको लठिया दूं: बोले थे नाना : देहरादून में भाजपा विधायक व उसके मित्रों ने घोड़े की टांग तोड़ी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अब तो नहीं, लेकिन एक दौर था जरूर, जब ग्रामीण परिवेश वाले ब्राह्मणों में भी नीच-ऊँच का कर्रा लफड़ा होता था। मेरी नानी नीच ब्राह्मण से थीं। उनकी शादी में तो कुछ दिक्कत नहीं हुई, लेकिन उनके भाई यानी मेरे ममेरे नाना और उनके दोनों अन्य भाइयों को भी डेढ़ सौ रुपल्ली अदा करने के बाद ही शादी की इजाजत मिली थी। इसके बाद ही तीनों नानियां अपने ससुराल तक आ पायीं थीं।

लेकिन तीनो ममेरे नाना बेहद परिश्रमी, सौम्य, शिक्षित, व्यवहारशील, ईमानदार, न्यायप्रिय और चरित्रवान थे। इन्ही गुणों के चलते जल्दी ही दूर-दूर तक उनकी हैसियत का डंका बज गया। बाकी नाना बड़े भाई के सामने बहुत कम बात करते थे। बड़े नाना  को सभी लोग पुरखा मानते थे।

भोजन के समय तीनों नाना एकसाथ चौके में आते थे। थाली से पहला कौर यह सभी लोग गाय को देते थे और आखिरी कौर कुत्ते को। नियम से। कोई चूक कभी नहीं हुई।

यह कुत्ता घर के डालने से लेकर पूरे गांव की चौकीदारी करता था। आसपास किसी सियार की गंध उसे पसंद नहीं थी। सीधे खेद देता था सियार को वह कुत्ता। घर के बड़े लोग और महिलाएं जब भी शौच के लिए निकलती थीं, वह कुत्ता उनके पीछे हो लेता था। उस कुत्ते को सभी लोग स्नेह करते थे, लेकिन घर की चौखट से भीतर आना उसके लिए मना था। वो खुद ही दूरी बनाये रखता था। अगर कभी किसी ने घर की मर्यादा सी सीमा लांघी, तो उसे सिर्फ दांत कर दुर्र या धत्त्व कह दिया जाता था।

एक दिन घर में नाना के बड़े बेटे ने उस कुत्ते को बुरी तरह पीट दिया। शाम को जब नाना लौटे, वह शिकायती अंदाज में नाना के आसपास लंगड़ाता रहा। नाना ने पुचकारा, फिर वहाँ मौजूद लोगों से वजह पूछी। हकीकत जान कर नाना का गुस्सा सातवें आसमान पर भड़क गया। पूरे गांव-जवार में  बेहद शालीन और सौम्यता के प्रतीक रहे नाना ने रौद्र रूप धारण कर लिया। लाठी उठाई और अपने बेटे पर पचीसों लाठी दर्ज कर दिया। पूरा गाँव सन्न।

अंत में नाना ने जमीन पर तड़पते अपने बेटे से पूछा:- तुम्हें लज्जा नहीं आई उस बेजुबान को पीटने में? तुम्हारे तो जुबान है, तुम बताओ कि तुमने उस कुत्ते को क्यों मारा?

काश! मेरे नाना जैसी यह पीड़ा देहरादून के भाजपाइयों को भी महसूस हो जाती। या फिर इनका इलाज केवल मेरे नाना की लाठियां ही होंगी?

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि देहरादून में भाजपा के एक विधायक के चेहरे पर एक घोड़े की पूंछ लहरा कर लग गयी थी। दरअसल, यह घोड़ा पुलिस का था और वहां गुजरते घुड़सवार पुलिसवाला इलाके की गश्त में लगा था। कि अचानक घोड़े ने अपनी पूंछ फटकारी, जो पास गुजरते भाजपा विधायक के चेहरे पर पड़ गयी। फिर क्या था। विधायक और उसके साथियों ने इस पुलिस के घोड़े को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। चोट इतनी गहरी थी, कि मजबूरन अब डॉक्टरों ने उस घोड़े की टांग काट दी है। गौरतलब है कि पुलिस में घोड़े का ओहदा इंस्पेक्टर का होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *