: अदालत के सामने घुटने टेकने की मजबूरी अपनी दादागिरी की इमारत टूटने के चलते : अब तो अपनी इज्जत बचाने की कवायद में जुटा है बोर्ड : जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है, तो काजियों को एडवाइजरी जारी का सबब क्या :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पिछले कई बरसों से वाट्सऐप पर एक नंगा-अश्लील चुटकिला चल रहा है। किसी खतना-समारोह को लेकर। बच्चे की खाला, चच्ची और फुफ्फी लोग जर्राह-नुमा मौलवी से उस कार्यक्रम में अपनी-अपनी सलाहें पेश कर रही हैं। झउव्वा भर सलाहें-नसीहतें-हिदायतें। आखिरकार झुंझला कर मौलवी-जर्राह बोल पड़ता है कि आपकी सलाहें तो ठीक हैं, मगर स्टाइल तो आजकल यही चल रहा है। और फिर आप लोगों की चिल्ल-पों से तो कुछ होगा नहीं, करना तो हमें ही है। तो हमें ही यह करने दीजिए, या फिर चाकू ही थाम लीजिए और पूरा समारोह निपटा लीजिए।
खतना कार्यक्रम में उछलकूद कर रही बच्चे की फुफ्फी, खाला और चच्ची लोगों के उछलकूदों की ठीक उसी तर्ज पर आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की हालत है। मसलन कि …अदालत का यह अख्तियार ही नहीं है इस बारे में दखल करने का,
…इस्लामी रवायतों के बारे में अदालत को क्या जानकारी,
…यह काम तो हदीस-शरीयत का है,
…उसे मुसलमान ही तय करेंगे,
…हम यह नहीं मानेंगे,
…नहीं होना चाहिए,
…ऐसा कीजिए,
…तो फिर वह कर दीजिए,
…अथवा तुम ऐसा करो और मैं ऐसा करता हूं,
…तुम अपना काम करो और मैं अपना काम करूंगा,
…अदालत की हर बात नहीं मानी जा सकती है,
…कोर्ट की कई बातें हम मानने को तैयार हैं,
…अदालत का हर फैसला मानेगा बोर्ड वगैरह-वगैरह।
मसला है तीन तलाक पर चल रही सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई का। दरअसल, मुल्क की सबसे बड़ी अदालत यह तय कर रहने की कोशिश कर रही है कि तीन तलाक का मामला इस्लामी, कुरान, हदीस, शरीयत का मसला है, या फिर अनावश्यक रूप से उसे महिलाओं पर थोप दिया गया है। यह भी सम्भावनाएं खोजी जा रही हैं कि उसे कैसे निपटाया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर तीन तलाक का गंदा धंधा लिंग-भेद, अराजकता, एक-दूसरे के प्रति अन्याय और मानवता के सख्त खिलाफ है और उससे आम मुस्लिम महिलाओं के हक-ओ-हुकूक हलाक होते हैं, तो फिर उस पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।
तीन तलाक के खिलाफ भारत की महिलाएं इस वक्त बेहिसाब गुस्से में हैं। हालांकि करीब साढ़े तीन दशक पहले भी यह मामला उठा था, जब शाहबानो ने उसके खिलाफ अपनी आवाज अदालत में उठायी थी। तब भी सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के मामले को संविधान विरोधी और असमान नागरिक सिद्धांत के तौर पर पहचानते हुए शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया था। लेकिन तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए संसद में शाहबानो की लड़ाई को पूरी तरह कत्ल कर डाला था। लेकिन इस वक्त यह मामला फिर सिर उठाता दिख रहा है।
इसके लिए सबसे पहले तो मुस्लिम महिलाओं ने आवाज उठायी थी। लेकिन तब बोर्ड समेत देश भर के मुसलमान संगठन, मौलवी, मुल्ले, हाफिज और कट्टर वहाबी लोगों ने उस पर अदालत तो दूर, गली-मोहल्ले तक में बातचीत तक पर करने में ऐतराज जताया था। उनका कहना था कि इससे अल्लाह के अधिकारों पर हल्ला-हस्तक्षेप होगा जो मौलवी-मुल्ले कत्तई नहीं मानेंगे। अगर जबर्दस्ती की गयी तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा और तब पूरी मुसलमान बिरादरी एकजुट होकर उसका मुंहतोड़ जवाब देगी।
तलाक से जुड़ी खबरों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
औरतों की जिन्दगी तबाह करता है तीन तलाक
तब हर मौलवी, मुल्ला यही चिल्ल-पों कर रहा था कि इस्लाम में मीन-मेख नहीं निकाली जाए। लेकिन ज्यों-ज्यों मामला तेज बढ़ता गया, बोर्ड समेत बाकी मौलवी-मुल्लाओं के तेवर कमजोर होने लगे। और तो और, बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक जैसे निहायत जहीन और शांत शख्स ने भी यह बयान दे दिया कि तीन तलाक से खुद ही मुसलमान बिरादरी का मोह-भंग हो चुका है, और साल-डेढ़ साल में यह नारकीय परम्परा को मुसलमान खुद ही पूरी तरह त्याग देगा, इसलिए उस पर ज्यादा बातचीत या हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।
अदालत को मुंहतोड़ जवाब देने की कवायद के तहत बोर्ड ने अपनी कुछ मुसलमान महिलाओं को आगे किया और जगह-जगह कैम्प लगवा कर महिलाओं से ऐसे फार्म भरवाये गये कि चूंकि तीन तलाक में ही मुस्लिम महिलाओं का हक सुरक्षित है, इसलिए वे तीन तलाक के पक्ष में हैं और ऐसे में वे अदालती कार्रवाई का विरोध कर रही हैं।
लेकिन यह चोंचले चूंकि निहायत बेशर्म, बेहूदे और साजिश के तहत बुने गये थे, इसलिए उस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। सर्वोच्च न्यायाधीश ने अपनी सदारत में पांच जजों की एक बेंच बनायी और ताबड़तोड़ सुनवाई करनी शुरू कर दी।
इसके बाद से तो इन मुल्लों-मौलवियों की पुंगी पों बोल गयी। सबसे पहले तो बोर्ड ने कोर्ट के नजरिये के सामने अपनी हैसियत ज्यादा बड़ी दिखाने की साजिश शुरू की। इसके तहत बोर्ड ने अदालत में साफ कुबूल करने के बजाय सभी काजियों को एक सलाह-नामा यानी एडवाइजरी जारी कर दिया कि किसी भी निकाहनामा में तीन तलाक का कोई भी जिक्र नहीं किया जाना चाहिए।
अब इसके निहितार्थ देखिये। सच बात तो यह है कि अदालती कार्रवाई शुरू होने से बोर्ड को ऐसा साफ लगने लगा है कि वह हार रहा है, ऐसे में अब वह अपना बोरिया-बिस्तर बांधने में जुट गया है। लेकिन इस तरह की एडवाइजरी को जारी करके वह पूरा मामला अदालत को कमजोर कर केवल खुद को मजबूत करने की साजिश बुन रहा है। ताकि फैसला आने के बाद यह साबित किया जा सके कि तीन तलाक कोई मसला ही नहीं है।
वैसे भी, अदालत में न्याय मित्र फराह ने कल अदालत से साफ कहा कि तीन तलाक पर बातचीत करने का कोई अधिकार बोर्ड के पास है ही नहीं। यह अदालत का काम है, और बोर्ड की हैसियत एक अवांछित-अनावश्यक और अनामंत्रित घुसपैठिये की तरह ही है।