केर-बेर रिश्‍ता: दूल्‍हा भौंकता है चमाइन, दुल्‍हन चिल्‍लाती है कटुआ

सैड सांग

: प्रेम-समर्पण की बात भूल जाइये, पचास के फेटे पर हुई शादियों में अर्थ-क्षमता ही सर्वाधिक होती है : बुढ़ापे में दुहाजू बने, अब कहते हैं कि मैं थोड़ दिन का मेहमान हूं : क्या रोटी बेटी संबध से जाति समस्या हल हो जायेगी : विवाह एक सांस्‍कृतिक कार्यक्रम है। केले और बेर को एकसाथ रोपने की कोशिश मत कीजिए :

उदय सिंह

वाराणसी : मित्रो बेशक जातिविहिन समाज एक अच्छी चीज है पर यह कैसै प्राप्त हो यह एक टेढ़ी खीर है ।अमूमन दलित जाति के विद्वान लोगो द्वारा तर्क दिया जाता है कि अगर उच्च वर्ग दलितो को अपनी बेटी दे दे तो दलित समस्या का समाधान हो जायेगा ।सोचने पर तो यह बहुत अच्छा लगता है पर हमे लगता है भारतीय समाज का जो सोच समझ व संस्कार है यह काम बहुत मुश्किल है ।दलित ब्राह्मण संबध तो छोडिये एक ही जाति की जो कुरी है उसमे भी शादी मे समस्या है ।यादव मे पूर्वांचल व विहार मे ग्वाल व डढहोर दो कुरी है और इनके बीच भी शादी ब्याह नही होता है अगर होते जाता है तो सामाजिक पारिवारिक समस्या उत्पन्न हो जाती है ।

हमारे एक मित्र मेडिकल आफिसर थे दलित मे चमार जाति के थे ,उनकी पत्नि पचास साल की उम्र मे मर गयी तो एक ब्राह्मणी लडकी के शादी किये ।सब लोग खूश हुए कि एक क्रान्तिकारी काम हुआ ।एक साल तो ठीक रहा पर इसके बाद उनके घर में कलह होने लगा ।उनकी ब्राह्मणी पत्नि उनकी बहन फूवा मा भाभी से घृणा करने लगी ।उनको जाति सूचक शब्दो से संबोधित करने लगी । इसके बाद गाव से अपने भाईयो को बुलाकर डाक्टर साहब की पिटाई भी करा दी । कहती थी मै चमार से शादी नही किया हू मै डाक्टर से शादी की हू ।इसकी मा बहन सब चमार है इनसे हमसे क्या लेना देना । अब वे रिटायर हो गये है। 61 की उम्र मे एकदम लचक गये है मुझसे हाल ही मे मिले थे रो रहे थे ।कह रहे थे उदय भाई अब मै थोडे दिन का मेहमान हू ।आप लोगो से निवेदन है कि ये रोटी बेटी वाला आंदोलन को रोक कर जाति के लोगो को कहे -वे पढे लिखे आगे बढे और अपने समाज के पुरूष महिला को आगे बढाये ।भारत मे शादी करने पर भी जाति नही जायेगी जाति का दंभ नही जायेगा । आइये आप लोग राय दे क्या रोटी बेटी के संबध से जाति समस्या या सामाजिक समरसता नही मिल सकता अभी ।

Sunil Kumar एकदम सही ऐसा बहुत उदाहरण है ।हमारा एक मित्र जो मुसलमान है एक दलित लडकी से लव मैरेज किया ।अब वे रोज झगड़ा करते है और गाली गलौज करते है तो एक दूसरे को जाति से संबंधित गाली देते है ।लडका कहता है अरे नीच चमाइन से हम शादी करके गलती किये तो लडकी कहती है कि कटुआ से शादी करके मै गलती की ।हम लोग सिर पकड लेते है ।

Tara Bharti दिक्कत तो है ।पर रास्ता क्या है ।

Dr-Narendra Kumar सभी SC आपस में तो कर ही सकते हैं।

और करना भी चाहिए।

जब कंही शुरुआत होगी तो बदलाव आएगा।

Surendra Pratap Singh पहले सभी अनुसूचित जातियां आपस मे तो विवाह करें | सबसे जरूरी अपने अंदर के रूढ़ि को तोड़ना है |

जाति का मकड़जाल इतना आसान नही है कि किसी एक फार्मूले से हल हो जाएगा |

Dr-Narendra Kumar बिल्कुल जो जातिवाद से परेशान है उन्हें ही ये काम शुरू करना होगा।

BM Prasad लड़कियों की शादी के मामले में, बड़े पैमाने पे, परेशानी सभी जातियों में है.

Surendra Pratap Singh वर्तमान में लड़कियों को लेकर शादी से बडी कोई समस्या नही है |

Girijeshwar Prasad बातों में दम है।आखिर, रास्ता क्या है ?

Rajendra Kumar Das मन बदले बिना कपड़ा बदलने से चलेगा ?

Uday Singh वाह आपने क्या गंभीर बात कह दी ।

Jayant Kumar Why at all the thinking is of high caste n low caste? Kya high caste Ka lamba hota hai aur low caste Ka square? A man will marry a woman to keep the human alive in the earth.. Yes it’s obvious that educated +Educated, uneducated +uneducated makes the perfect couple

Lalita Dasgupta Only education will make the people think over castes. In urban india and some social strata the caste is just outcast

Vinod Kumar Bhardwaj ये तो बडा ही खतरनाक अनुभव हुआ, डाक्टर साहिब कों। मानव जाति मे, क्या, सुधार की उम्मीद नही की जा सकती है, डाक्टर साहिब। ये एक के साथ ऐसा हुआ है, हरेक के साथ, ऐसा होना, जरुरी नही है, जी।

निरंतर शोध होना चाहिए ताकि कुछ बेहतरी की ओर जाना मुमकिन हो.

Om Prakash Singh उदय सिंह जी। समस्याएं तो हर प्रकार की शादियों में आती हैं।एक ही जाति में हो या नहीं हों। सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि पति पत्नी एक दूसरे के साथ वैवाहिक जीवन जीने के प्रति कितने समर्पित होते हैं, इस जीवन के लिए अपने निजी आचार विचार, अहंकार, रिश्ते नाते आदि से समझौता करने के लिए तैयार है या नहीं। अगर दोनों में से कोई एक भी ऐसा करने से इंकार करता है तो यह शादी नर्क बन सकती है भले ही यह जाति के भीतर हो या नहीं।

अगर कोई दो अलग-अलग जाति या धर्म के व्यक्ति जाति व्यवस्था का विरोध करने की नीयत से या एक दूसरे से प्रेमवश शादी करते हैं तो पोस्ट में गिनाई गई समस्याओं से भी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। समस्याओं के कारण इस विचार को खारिज करना अनुचित है। आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए इसको प्रोत्साहन देना एक सकारात्मक कदम है और इससे जाति व्यवस्था को कमजोर करने में मदद होगी। अमरीका में कालों और गोरों के बीच शादियों के लिए काफी पहले से प्रोत्साहन दिया जाता है। भारत सरकार दलितों से इस प्रकार की शादियों के लिए संभवत: 4 लाख रुपए का प्रोत्साहन देती है। अापसे अपेक्षा करता हूं कि अपने विचारों में संशोधन करने के लिए प्रयत्नशील होंगे। BM Prasad सरकार की नीयत ठीक हो(यह सबसे बड़ी बाधा है), तो संभव है, कुछ बाधाएं दूर हों.

लोहिया जी ने भाषा नीति के अंदर, हिंदी के राष्ट्रीय स्वीकार्यता हेतु, प्रस्ताव किया था कि कुछ/10 वर्षो के लिए, हिंदी भाषी लोगों को केंद्रीय सेवा में रोक लगा कर, हिन्दी को केंद्रीय परीक्षाओं में हिंदी की योग्यता अनिवार्य कर दिया जाए. (यह हो न सका.)

इसी तर्ज़ पर, ये किया जा सकता था/है कि राजकीय सेवा के लिए अंतरजातीय विवाह अनिवार्य करने की कोई नीति बनाई जा सकती थी/है.

पर सत्ताधारी दलों की पहले जन/देशकल्याण का पहले इरादा तो हो.!

Shyamambuj Singh इस देश की अर्थव्यवस्था (economy), राजनीतिक व्यवस्था (polity) और प्रशासन पर जाति व्यवस्था की गहरी पकड़ है। जिन जातियों की पकड़ है वे जाति व्यवस्था को टूटने ही नहीं देंगे।

छिटपुट अंतर्जातीय विवाह हो तो रहे हैं लेकिन जाति व्यवस्था इसे स्वीकार नहीं करती केवल बर्दाश्त कर लेती है।

इस देश में विवाह के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। विवाह से प्रतिष्ठा बढती है या कम हो जाती है।

इन सब के वजह से अंतर्जातीय विवाह पहले तो होंगे ही नहीं और यदि इक्का दुक्का हुए भी तो जाति व्यवस्था पर मामूली खरोंच ही साबित होगा।

Diwakar Singh चूँकि हम अधार्मिक हैं क्यूंकि हम लोगों का किसी धर्म से निजी तौर पर एवं सार्वजनिक तौर पर मुझे दूर-२ तक कोई लेना ना देना है ऐंड

चूँकि हम नास्तिक हैं क्यूंकि हम अवतारवाद के रहस्य से कोशों दूर हैं और ऐसे रहस्य सिद्धांत से दूर-२ तक कोई लेना -देना नहीं है.

याद रखना चुंकीं, जन्म आधारित हजारों स्तरों वाली ऊंच -नीच की योग्यता -अयोग्यता वाली जाति एवं वर्ण व्यवस्था “स्वर्ग” में बैठकर “भगवानों” द्वारा बनाई गई है इसलिए ऐसी ऊंच -नीच की व्यवस्था के निर्माता जो स्वर्ग में बैठे हुए हैं उन्हीं के पास ये सर्वाधिकार आरक्षित एवं सुरक्षित हैकि जन्म आधारित हजारों स्तरों वाली ऊंच -नीच की इस जाति एवं वर्ण व्यवस्था को खतम कर सकें?चुंकीं, ये व्यवस्था ‘स्वर्ग’ की राजगद्दी पर बैठे निर्माताओं उर्फ़ भगवानों इस जाति एवं वर्ण व्यवस्था के सिस्टम को खत्म करने का पावर ऑफ़ एटॉर्नी या अधिकार इस पृथ्वी पर आजतक किसी को डेलीगेट नहीं किया है तो फिर कैसे लोग दावा करने की नीचता दिखाते हैंकि वो पृथ्वी पर जन्म आधारित ऊंच-नीच की योग्यता -अयोग्यता वाली व्यवस्था को रोटी -बेटी का रिश्ता घुसेड़ कर खतम कर देंगे?—पागल- वागल तो नहीं हो?

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