कौव्‍वा पुनि-पुनि डाल पर। चहका- जागरण की जय हो

मेरा कोना

: दरअसल, बाराबंकी में नरेंद्र मिश्र की नाल गड़ी है न, इसलिए : गजब है पत्रकारिता में अपने ही बिल में रहने वाली जिद की धार : अब आप उन्‍हें जागरण कहें या फिर नरेंद्र मिश्र, बात एक ही है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अमिताभ बच्‍चन महानायक नहीं, बल्कि पक्‍का बकलोल और अव्‍वल दर्जे के बदतमीज हैं। नमकहराम फिल्‍म में एक तीखी मिर्च तोड़ कर जीनत अमान की कुतिया के पिछवाड़े में लगा कर हंगामा खड़ा करने जैसा अभिनय तो किसी भांड़ का ही काम हो सकता है। है कि नहीं। इसलिए मैं अमिताभ को महानायक नहीं मानता। मेरी नजर में दिलीप कुमार बेमिसाल हैं, और हमेशा रहेंगे। तो जनाब, दिलीप कुमार की एक फिल्‍म थी क्रांति। नूतन के साथ। उस गीत के बोल थे:- हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिये। दिल दिया है, जां भी देंगे। ऐ वतन तेरे लिये।

जी बिलकुल। आप ताजा हालातों में इस गीत और उसके महानायक दिलीप कुमार को महसूस करना चाहते हैं तो आपको सिर्फ एक काम करना पड़ेगा। इस गीत के बोलों में बिलकुल इसी तर्ज में बस वतन की जगह बाराबंकी जोड़ लीजिए, और दिलीप कुमार की जगह नरेंद्र मिश्र को चस्‍पां कर दीजिए। हो गयी पूरी फिल्‍म कम्‍पलीट। गुनगुनाइये, थाप दीजिए, मौज लीजिए। ठीक उसी तर्ज पर बाराबंकी में नरेंद्र मिश्र के चेले जहां-तहां गाते घूम रहे हैं।

तो साहब, पहले इन चमत्‍कारिक पुरूष नरेंद्र मिश्र का परिचय जान लीजिए। नरेंद्र बाराबंकी के ही रहने वाले हैं। कुर्सी लेकर दरियाबाद, हैदरगढ़, सफेदाबाद, देवां, रामनगर, भिलवल, तक नरेंद्र मिश्र की रंगबाजी वाली जागीर विस्‍तृत फैली-पसरी-चियारी पड़ी है। अब चूंकि उनकी नाल बाराबंकी में ही जगह-जगह गड़ी हुई हैं, इसलिए यह कैसे हो सकता है कि वे बाराबंकी से बाहर अपनी उंगली तक बाहर निकाल पायें। अगर कभी जाना अनिवार्य ही होता है, तो उनका दिल बेगम अख्‍तर की गजलों की तरह कुछ यूं फटने लगती है, कि मानो कोई तूफान आने वाला है। फटना-फटाना तो आप खूब समझते ही होंगे। जी हां, ठीक उसी तरह।

तो साहब बहुधंधी नरेंद्र मिश्र के शुभ चरण जब पत्रकारिता में पड़े तो ट्रेनिंग तो वैसे कई अखबारों में की। लेकिन ट्रेनर जागरण वाला ही था। उसने जब भी मौका मिला, बाराबंकी की डगर लपकवा दिया। और खुद निकल गया डुंडीगुल। इसके पहले वह डेल्‍ही मा राता था,आजकल डंडीगुल में राता है। बाराबंकी में नरेंद्र ने डंका बजाया। नहर के किनारे वाले प्रेस में जब दलितों ने हंगामा किया, तो बाहुबली और कटप्‍पा की तरह नरेंद्र ने मामला सम्‍भाल लिया। लेकिन जल्‍दी ही कटप्‍पा ने बाहुबली को डंस लिया, तो बाहुबली अपनी पूंछ दबा कर भागा, और अमर उजाला ज्‍वाइन कर लिया। वहां से जी उचटा, भास्‍कर डॉट कॉम और फिर उसके बाद हैदराबाद के ईटीवी में पाल्‍थी मार ली। मगर मन नहीं लगा। आप खुद देखिये कि नरेंद्र मिश्र ने 15 अगस्‍त-16 के बाद से अपने फेसबुक वाल पर एक भी पोस्‍ट नहीं डाली है। जबकि दुनिया भर के लौंडे-लफाड़ी उस पर अपने-अपने पोर्टल की जयजय करने के लिए नरेंद्र की वाल पर बाकायदा कुंआ खोदने पर आमादा हैं।

लेकिन अब ताजा खबर है कि नरेंद्र मिश्र अपने पुराने दड़बे में लौट आये हैं। बाराबंकी की हर दीवार और मुंडेरों पर उनका साम्राज्‍य फैल चुका है। चहुंओर कांव-कांव का शोर हो रहा है, जिसे उनके चेले-चांपड़ लो सुमधुर रागिनी बता कर किन्‍नरों की तरह तालियां पीटते दिख रहे हैं।

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