काश, आम आदमी समझ पाता कि संसद की सीढ़ी चूमने का अंजाम क्‍या होगा

बिटिया खबर
: नंगा नाच करता नोटबंदी का जिन्‍न, ख्‍वाब धूल में : आम आदमी की उम्‍मीदों को कुचल डाला मोदी सरकार ने : नये नोट छापने मे 13 हजार करोड़ रूपयों का खर्चा आया :

कुमार सौवीर
लखनऊ : नोटबंदी का जिन्‍न अब बाहर है और ढोल बजा रहा है कि संसद की सीढि़यां चूमने का ढोंग कैसा होता है। हंगामा जारी है, पहला हमला है मोदी सरकार पर, और उसकी खालिस बेवकूफी पर। बोला कि चले थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास। रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के आधार पर एलान किया कि यह नोटबंदी बेहद बचकाना थी। न नजरिया था, न प्‍लानिंग। सिर्फ यह दिखाना था कि कुछ नया करेंगे, सो कर डाला। रिपोर्ट में कुल दशमल सात फीसदी काला धन की बात है, यानी एक फीसदी का करीब पंद्रहवां हिस्‍सा। बाकी 99 दशमलव तीन फीसदी नोट वापस आ चुका है। यह रकम करीब 11 हजार करोड़ की है। उधर पुराने नोट खारिज कर नये छापने में 13 हजार करोड़ रूपयों का खर्चा आया। यानी काला धन तो नहीं निकाला, बल्कि 13 हजार करोड़ रूपयों का तमाचा सरकारी खजाने पर पड़ा। इतना ही नहीं, नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में वहां के बैंकों में खरबों-खरब के नोट भरे पड़े हैं। नेपाल सरकार ने तो इस बात पर केंद्र सरकार से कड़ा ऐतराज भी दर्ज किया है। लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकार के इस फैसले से रियल स्‍टेट भरभरा कर बैठ गया, बैंकों के एडवांसेज में भारी गिरावट आयी, पुराने नोटों की बरामदगी आज भी जारी है। यानी काला धन आज भी मौजूद है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढि़यों को चूमा था, उसका मतलब जनता को अब समझ में आ रहा है। अब जब नये चुनावों की घंटी बजने वाली है, आरबीआई रिपोर्ट के खुलासे से निकला यह जिन्‍न वाकई बहुत बड़ा शैतान निकला है। उसने यह हमला सीधे उस पर किया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर। मोदी ने 8 नवंबर 2016 को देशभर में हजार और पांच सौ रुपये के पुराने नोट बंद किए जाने का ऐलान किया था, जिसके बाद लोग बैंकों में लंबी कतार में लगकर इन नोटों को वापस जमा कराया था. नोटबंदी के इस ऐलान के 21 महीने बाद आरबीआई ने अब इससे जुड़े आंकड़े जारी किए हैं, जिसमें बताया गया है कि 99.3 फीसदी पुराने नोट बैंकों में वापस आ गए. आरबीआई ने बुधवार को आंकड़े जारी कर बताया है कि नोटबंदी के दौरान 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपये चलन में थे. इनमें से 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपये अब तक वापस आ चुके हैं. काश, आम आदमी पहली ही समझ पाता कि संसद की सीढ़ी चूमने का मकसद क्‍या होता है।
जबकि ऐसे नोटों को काला धन करार दिया था नरेंद्र मोदी ने। आइये हम आपको दिखाते हैं कि सरकार के पहले क्‍या-क्‍या सपने नहीं दिखाये थे मोदी ने, लेकिन उन पर मामला आज केवल ठनठनगोपाल ही बना है।
आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक,नोटबंदी के समय मूल्य के हिसाब से 500 और 1,000 रुपये के 15.41 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों के पास वापस आ चुके हैं. सालाना आंकड़े में बताया गया है कि मार्च 2018 तक बैंक नोट के सर्कुलेशन में 37.7 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई है. मगर असल सवाल तो यह है कि अगर केवल दशमल सात फीसदी नोट ही काला धन था, तो फिर नेपाल समेत विभिन्‍न विदेशी बैंकों में अटे पड़े नोट क्‍या हैं, जिनको लेकर कम से कम नेपाल सरकार खासा नाराजगी जता चुकी है।
खास तौर पर मध्‍यमवर्ग और निम्‍न आयवर्ग की महिलाओं में तो सबसे ज्‍यादा कष्‍ट भोगा था। अपने परिवार को भविष्‍य के किसी भी आसन्‍न संकट से बचाने के लिए भारतीय महिलाएं अपने परिवार का पेट काट कर कुछ पैसा इधर-उधर छिपाये रखती हैं, ताकि किसी बुरी हालत में वे अपना सहयोग बना सकें। इसके लिए यह नोट वे बैंक के बजाय घर में ही कहीं छिपा कर रखा करती हैं। ऐसे नोटों की कानो-कान खबर तक परिवारवालों तक को भी नहीं होती। लेकिन नोटबंदी के चलते उनके यह नोट बर्बाद हो गये। और तुर्रा यह कि एक मजाक के तौर पर नये नोटों में गांधी जी के चरित्र को गंदला करने की साजिश के तहत पुराने नोटों पर छपी उनकी फोटो के ठीक दूसरी दिशा में ही छापा गया। यह राजनीतिक साजिश तो थी ही, राष्‍ट्रद्रोह भी था, जो साबित करता है कि गांधीवाद की दिशा को साजिशन प्रतीक तौर पर बदल दिया गया।

इस खबर पर दोलत्‍ती चैनल ने विस्‍तार से चर्चा की है। उसे देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
बेरहम और महज बेवकूफी थी नोटबंदी: नाम लिया हरिभजन का, लोटन लगे कपास

तो फिर धोखा किस कोने से आया, यह तो देख लिया जाए। यह भी समझ लिया जाए कि यह धोखा जानबूझ कर हुआ या फिर झूठमूठ था। हमारे पास दो आंकड़े हैं, जो लखनऊ की सर्राफा बाजारों में सोने की खरीद को लेकर है। नोटबंदी के ठीक वाली धनतेरस के दिन लखनऊ के सर्राफों ने 245 करोड़ रूपयों का सोना खरीदा था। लेकिन नोटबंदी के ठीक आठ महीने आने वाली धनतेरस के दिन लखनऊ के स्‍वर्ण-व्‍यवसाइयों के यहां पांच सौ करोड़ रूपयों के स्‍वर्ण-आभूषण खरीदे गये। फिर कल्‍पना कीजिए कि देश के कस्‍बों-नगरों-महानगरों और मेट्रो-नगरों में क्‍या-क्‍या गुल नहीं खुला होगा। तो सवाल यह है कि यह खरीद किस अधिकृत जेब या पर्स से निकली। यहां कुछ तथ्‍य बहुत जरूरी हैं। आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि सोना जैसे सामानों की खरीद केवल घर में जमाने और अलमारियों में जुटाने के लिए ही होती है। चंद नेताओं की तो छोड़ दी जाए, तो सामान्‍य नेतावर्ग अपनी कमाई रियल स्‍टेट में कभी भी नहीं लगाता है। यह काम तो हराम की कमाई वाले अफसर ही करते हैं। बनिया का पैसा उसके बिजनेस को बढ़ाने में इस्‍तेमाल होता है। फिर यह पांच सौ करोड़ किसके थे। जाहिर है कि यह रकम उनकी थी, जो अफसर हैं, इंजीनियर हैं। वे जीडीपी के अंकों में भले ही न बढ़ा पायें, लेकिन काला धन केवल उनके पास ही होता है।
कुछ भी हो, रिजर्व बैंक के इस खुलासे से मोदी सरकार भारी संकट में फंस गयी है। राममंदिर बनाने और मुस्लिम अतिवाद और मुस्लिम तुष्टिकरण वाले हौवा के खिलाफ धर्मयुद्ध के संकल्‍प से सत्‍ता हथियाने वाली भाजपा ने रोज-ब-रोज अपने वायदे तोड़े, और जो भी किया, वह उनके आस्‍थावान जनता के माथे फोड़ने वाला ही रहा है। ऐसी मूर्खताओं में नोटबंदी एक बड़ा धोखा था। कहने की जरूरत नहीं कि इन आंकड़ों ने भाजपा के चुनावपूर्व ऐलानों और मोदी-सरकार की करतूतों को बिलकुल नंगा कर डाला है। सच बात है कि मोदी सरकार अपने पूरे कार्यकाल में एक भी ऐसा काम नहीं कर पायी, जो उसके ऐलान के अनुरूप था, या फिर जनहित से जुड़ा था। बहरहाल, सबसे बड़ा सवाल तो अब यह पूछा जाना चाहिए कि नये नोट छापने में जो 12877 करोड़ का खर्चा आया है, वह उसे जीडीपी में किस तरह एडजस्‍ट किया जाएगा और उसका जिम्‍मेदार कौन होगा। खास तौर पर तब, जबकि आज भी देश के मध्‍यम और निम्‍न वर्ग की महिलाओं के पास आज भी पुराने नोट पड़े हुए हैं।

2 thoughts on “काश, आम आदमी समझ पाता कि संसद की सीढ़ी चूमने का अंजाम क्‍या होगा

  1. सही रिपोर्ट है मैं इसका समर्थन करता हु

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