: काल बाबा खुद भूखा रह कर भी किसी दूसरे भूखे को सब कुछ सौंप सकता है : गोयनका ने ज्ञान, शांति और प्रज्ञा की भिक्षा लेने-देने के सैकड़ों केंद्र स्थापित कर दिये : रविशंकर तो मानसिक ज्ञान की धारा, बरास्ते शारीरिक उमंगों की उथलपुथल में उमड़ाते हैं : तुलनात्मक अध्ययन:- एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : काल बाबा एक अघोरी है, खुद के खाने-पीने का कोई ठिकाना नहीं। श्मशान का साधक, जिसे जीवित और मृत देहों में कोई फर्क नहीं पड़ता। वह जिन्दा प्राणी पर भी उतना ही आस्था रखता है, जितना जिन्दा प्राणी पर। उसे नहीं पता कि कल क्या होगा, अगले दिन उसे खाना मिलेगा या नहीं, लेकिन काल बाबा को इसके बावजूद अपने पेट की क्षुधा-अग्नि की नहीं, दूसरों के पेट में दौड़ते चूहों की असह्य जैविक गतिविधियों की चिन्ता है। वह चाहते हैं कि वे भले ही भूखे रह जाएं, लेकिन उनके पास आने वाला कोई भी भूखा न तड़पे।
सत्य नारायण गोयनका को इस बात की चिन्ता है कि कैसे कोई इंसान अपना मोक्ष पाये, और इस राह में दीगर प्राणियों को भी सुरक्षित रखे। इसके लिए इस मारवाड़ी ने बर्मा-म्यांमार के जंगलों की खोहों में छिपी लुप्तप्राय विद्या विपश्यना को खोजा और फिर उसे दुनिया में पहुंचाने, सिखाने का दायित्व सम्भाल लिया। गोयनका और उनके बाद भी पूरी दुनिया में बने उनके केंद्रों पर आने वाले अशांत मन-मस्तिष्कों को त्राण दिलाने के लिए उन्हें विपश्यना साधना सिखाने का संकल्प लिया जा रहा है। वह भी निशुल्क। हां हां, भोजन-रहना भी फ्री।
श्रीश्री रविशंकर अब एक नये धर्म-अध्याता हैं। बहुत कम समय में ही उन्होंने देश-विदेश में अपनी ख्याति का झंड़ा गाड़ लिया है। बताते हैं कि देश-विदेश में उनके बेहिसाब केंद्र हैं, जहां भारतीय धर्म का तत्व समझाया, बताया जाता है। फिलहाल तो श्रीश्री रविशंकर अपने इस अभियान के सर्वोच्च आचार्य हैं। दिल्ली में यमुना के किनारे उन्होंने अपने लाखों भक्तों का संगम करा दिया, जिसमें प्रधानमंत्री तक शामिल हुए।
तो, अब आपसे गुजारिश है कि आज आप एक तुलनात्मक अध्ययन कर लीजिए। इन तीनों को लेकर। बेलौस, बेअंदाज।
न न न, इसके लिए आपको कापी-किताब-पेंसिल लाने की जरूरत नहीं है। बस तीन छोटे-छोटे तथ्य हैं, उन्हें सुनिये और उसका मर्म समझिये। आप पायेंगे कि इस के बाद आपके ज्ञान चक्षु ही खुल जाएंगे। हमेशा-हमेशा के लिए। आपका साफ पता चल जाएगा कि कौन किस जमीन पर होने के बावजूद सिंहासन पर है और कौन सिंहासन पर आसीन होने के बावजूद जमीन से भी कई गज नीचे है।
यह लेख श्रंखला है। आप इसे अगले अंकों में देख सकेंगे। शुरूआत कल से होगी। (क्रमश: )
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धत्त, अरे यह तो अघोरी काल बाबा है