आज कहां हैं शेखर त्रिपाठी के दावेदार

बिटिया खबर

: दो बरस पहले ही दुनिया को छोड़ दिया था शेखर ने : पहली बरसी के बाद अब कोई पूछने वाला नहीं दिख रहा : वक्‍त की सुइयां रिश्‍तों को भूलने लगती हैं, दावे हवा में उड़ कर धूल में मिल जाते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : शशांक शेखर त्रिपाठी को आप जानते हैं? अरे शेखर त्रिपाठी को आप नहीं जानते? अरे वही हिन्‍दुस्‍तान और दैनिक जागरण अखबारों में संपादक के पदों पर अपनी धाक जमाये रखते थे। और आप? आप तो शेखर त्रिपाठी को जानते ही होंगे। वेरी गुड। और आप? पिछले बरस आपने शेखर त्रिपाठी की बरसी मनायी थी। पर्यटन विभाग के सभागार में। याद आया? बड़े-बड़े लोग आये थे वहां। बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे शेखर त्रिपाठी के बारे में। बड़ी-बडी योजनाएं तैयार करने की घोषणा कर रहे थे आप लोग वहां। कह रहे थे आप, कि आप कुछ ऐसा ठोस करेंगे, कि दुनिया शेखर त्रिपाठी को कभी भी नहीं भूल सकेगी। प्रमुख सचिव से लेकर न जाने क्‍या-क्‍या ओहदेदार लोगों का जमावड़ा जमा लिया था उस दिन आप लोगों ने।
खैर, इस बार आपने उनकी सार्वजनिक बरसी नहीं मनायी। कोई खास बात? समय नहीं मिल पाया? ओ हो। हां हां, हम आपकी व्‍यस्तता समझ सकते हैं। बल्कि समझ ही रहे हैं। बाकायदा। वक्‍त तो वक्‍त का पाबंद होता है न, इसलिए। उसमें अलग-अलग शर्तें होती हैं। कुछ याद करने की, तो कुछ भूलने की शर्तें। आपको तो शेखर त्रिपाठी की याद तो आती ही होगी? तो आपको याद होती ही होगी न? नहीं आती है। कोई बात नहीं।
लेकिन दोलत्‍ती को शेखर त्रिपाठी की याद खूब है। शेखर की दूसरी बरसी के दिन मैं उनके घर गया, उनकी पत्‍नी और उनके बेटों से भेंट की। साथ में हम दोनों के साथी रहे डॉक्‍टर उपेद्र पांडेय भी थे। लम्‍बी बातचीत हुई। यादें ताजा कीं शेखर त्रिपाठी की। कुछ गम की, कुछ खुशी। कुछ उनकी तारीफ, तो कुछ उनकी हरकतों और उनकी आदतों को लेकर। कभी ठठाकर हंसने पर मजबूर होती रही बातें, तो कभी रूला पड़ीं। चाय के कुछ दौर चले। लेकिन कोई भी अप्रिय प्रसंग कोई भी नहीं।
लेकिन मुझे लगता है कि इस प्रकरण में शेखर की स्‍मृतियां जरूर सहेजनी चाहिए। खास कर वे बातें, जो शेखर के साथी लोगों ने महसूस कीं, उनकी मौत के बाद। मेरी भी कुछ स्‍मृतियां भी उसमें शामिल हैं। जिनमें उपेंद्र और सुदेश गौड़ खास कर उल्‍लेखनीय हैं। यह सारी यादें हम आपको लगातार दोबारा प्रस्‍तुत करेंगे। उपेंद्र पांडेय का मतलब दैनिक ट्रिब्‍यून के पूर्व नेशनल ब्‍यूरो प्रमुख और आजकल लखनऊ से प्रकाशित वायस ऑफ लखनऊ के पॉलिटिकल एडीटर, जबकि सुदेश गौड़ जो तीस बरस पहले हमारे साथ लखनऊ के दैनिक जागरण में साथी थे और आजकल भोपाल में दैनिक भास्‍कर के संपादक पद से सेवानिवृत्‍त हो चुके हैं।
लेकिन इस सीरीज में खास बात यह होगी कि हम आपको इसी सीरीज में शेखर त्रिपाठी से हुई बातचीत का ऑडियो भी सुनायेंगे, जो उन्‍होंने अपनी मौत के बस चंद दिन पहले ही मुझसे की थी। इस बातचीत में उन्‍होंने जागरण डॉट कॉम के संपादक पद से हटाये जाने के बाद कारणों पर चर्चा की थी। हालांकि मैं उस बातचीत में शेखर के तर्कों को आज तक सहमत नहीं हो पाया हूं।
तो जरा इंतजार कीजिए।

लेकिन इस सीरीज का मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि अपने अजीज लोगों को अपने कलेजे से लिपटाये रखने की आदत पालना है। ऐसा नहीं होगा तो हम स्‍नेह-तंतुओं को कैसे याद कर पायेंगे, कैसे सामाजिक प्राणी होने का दावा कर पायेंगे।

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