जागरण-पुराण: हम नौकरों को झाड़ पर चढ़ाया अखबार-मालिक ने

बिटिया खबर

: 25 हजार प्रतियां बिकीं, तो शानदार पार्टी दूंगा। बोले महेंद्र मोहन : अपने माथे पर आए बालों को अपनी उंगलियों में लपेटते रहे शेखर त्रिपाठी, और चंद दिनों में ही सर्कुलेशन एक लाख के पार हो गया :

कुमार सौवीर
लखनऊ : यह शायद सन-88 की बात थी। शाम का वक्त था। तब लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली ठीक सामने वाली सड़क, जहां भार्गव स्टेट हुआ करता था, वहां के 75 नंबर के बड़े मकान में दैनिक जागरण का कार्यालय और प्रेस हुआ करता था। पहली मंजिल पर संपादकीय विभाग के लोग बैठते थे, जबकि नीचे भूतल में प्रेस और विज्ञापन वगैरह। सीढि़यों के नीचे के केबिन में एक बुढ़ऊ कैशियर थे, जो हमारे वेतन से दो-तीन रूपया झटक लिया करते थे। अंदाज ऐसा, मानो वे भूल गये हों। रेजगारी तो वे ले लेते थे, लेकिन अदा करते वक्‍त चिल्‍हर की समस्‍या बता कर अठन्‍नी-चवन्‍नी मार लिया करते थे यह कैशियर बुढ़ऊ। यह उस वक्‍त का वाकया है, जब वेतन नकद ही मिला करता था। और स्‍थानीय सम्‍पादक के तेवर से ही दफ्तर का सामान्‍य कारोबार समझा-जाना जाता था। सर्कुलेशन के मैनेजर दिनेश पांडेय तो दफ्तर आने से पहले चपरासी से यह पूछताछ कर लेते थे कि :- भइया ( सम्‍पादक विनोद शुक्‍ला) का मूड कैसा है।
बहरहाल, एक दिन महेंद्र मोहन हमारे ऑफिस पहुंचे। महेंद्र मोहन यानी दैनिक जागरण के मालिकों यानी मोहन-ब्रदर्स में दूसरे नम्‍बर के भाई। तब नरेंद्र मोहन जीवित थे। जाहिर है कि हम सब सतर्क हो गए। महेंद्र मोहन ने उसी शाम हॉल में एक बैठक ली जिसमें संपादकीय सहयोगी को शामिल किया गया था बैठक में स्थानीय संपादक विनोद शुक्ला थे, शेखर त्रिपाठी थे, विष्‍णु त्रिपाठी थे, डॉक्‍टर उपेंद्र पाण्‍डेय थे, ब्रजेश शुक्‍ला थे, सुदेश गौड़ थे, स्वदेश कुमार थे, वीरेंद्र सक्सेना थे, और मैं कुमार सौवीर भी। सुदेश गौड़ इस वक्‍त भोपाल में दैनिक भास्‍कर के स्‍थानीय सम्‍पादक हैं, विष्‍णु त्रिपाठी दैनिक जागरण में एनसीआर संस्‍करण के स्‍थानीय सम्‍पादक हैं, डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय दैनिक ट्रिब्‍यून में नेशनल ब्‍यूरो हेड हैं, जबकि स्‍वदेश कुमार उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त हैं। इसके अलावा भी कई और भी सहयोगी वहां मौजूद थे। और हां, राजू मिश्र भी थे उस वक्‍त वहां।
इस लेख के नीचे की फोटो उसी दौर की है। यानी करीब 30-31 बरस पहले की, जब हम तीनों जागरण में काम करते थे। तीन यानी, एक तो मैं, बीच में शेखर त्रिपाठी और तीसरे हैं सुदेश गौड़, जो इस वक्‍त भोपाल में दैनिक भास्‍कर के स्‍थानीय सम्‍पादक हैं। सच बात तो यह है आज में जो भी जोश मौजूद है, वह इन और उन जैसे साथियों के साथ होने की वजह से ही है। इस फोटो के लिए आजीवन सुदेश गौड़ का आभारी रहूंगा।
बहरहाल, इस बातचीत के दौरान संपादकीय सहयोगियों के क्रियाकलाप और उनके कार्य-योगदान पर महेंद्र मोहन ने चर्चा छेड़ दी। समीक्षा के दौरान महेंद्र मोहन हम सब की कोशिशों पर मोहित हो गए थे। उत्साह में, उत्तेजना में, हर्ष में या फिर अपने संस्‍थान के सुखद भविष्य की कल्पनाओं में डूबे महेंद्र मोहन ने न सिर्फ दो बार सभी को चाय पिलाई, बल्कि एक बार समोसा और दूसरी बार एक बेसन के लड्डू के साथ चाय की चुस्कियां भी करायीं।
अपनी शैली के अनुसार विनोद शुक्ला महेंद्र मोहन के हर सवाल और सुझाव पर शेखर त्रिपाठी की ओर मुंह ताकने लगते थे। बीच में महेंद्र मोहन ने एक बार एक लंबी सांस खींची और बोले यह बड़े हर्ष की बात है कि यह हमारा अखबार आज 17000 प्रतियों तक पहुंच गया है। यह सर्कुलेशन कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है, बल्कि आप सब की मेहनत की प्रतीक है। हम आप सब के हौसले और आपकी मेहनत को सलाम करते हैं। लेकिन हम यह भी उम्मीद करते हैं यानी कुछ वर्षों में कि हमारा यह अखबार लगातार बढ़ता ही रहेगा।
दैनिक ट्रिब्‍यून में आज नेशनल ब्‍यूरो हेड डॉक्‍टर उपेंद्र पाण्‍डेय को याद है कि तब शेखर त्रिपाठी ने महेंद्र मोहन की बात पर उचक कर जवाब दिया:-हो जाएगा सर, हो जाएगा।
महेंद्र मोहन को शायद इसी जवाब का इंतजार था। उन्‍होंने चुनौती-सी देते हुए कहा:- जिस दिन यह सर्कुलेशन 25,000 हजार तक पहुंच जाएगा, मैं तुम्‍हें एक आलीशान पार्टी दूंगा।
बाद में अपने अंदाज के तहत मीटिंग के बाद विनोद शुक्ला ने शेखर त्रिपाठी की खिल्ली उड़ाते हुए कहा:- बहुत बोलते हो शेखर तुम।
लेकिन शेखर त्रिपाठी अपने बाएं हाथ से अपने माथे पर आए बालों को अपनी उंगलियों में लपेटते रहे। मुस्‍कुराते रहे।
और कहने की जरूरत नहीं कि चंद हफ्तों में ही दैनिक जागरण लखनऊ संस्करण में प्रकाशित होने वाली प्रति यू की संख्या 40 हजार तक पहुंच गई। और सन 89 की पहली जनवरी तक एक लाख प्रतियां बिकने लगीं।

लेकिन न तो जागरण के मालिकों ने हमें हमारे प्रयासों पर पीठ ठोंकी, और न ही विनोद शुक्‍ला ने पार्टी दी। हां, मालिकों और विनोद शुक्‍ला के बीच गुपचुप कोई डील हुई हो तो हमें नहीं पता। (क्रमश:)

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