धन्‍वन्‍तरि भगवान को साष्‍टांग, रंगे सियारों को जूतम-लात

बिटिया खबर

: प्रेमचंद की मंत्र कहानी पढि़ये। फफक कर रो पड़ेंगे आप : हां, कुछ सरकारी चूतिये धन्‍वन्‍तरि आज भी मरीजों में चिकित्‍सा, आयुष और स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति समर्पित : अंग्रेजी में गुटर-गुटर करके दूसरे विधा वाले स्‍वास्‍थ्‍य-वैज्ञानिकों व मरीजों को बॉस्‍टर्ड, बुलशिट और फक बोलते हैं यह धन्‍वन्‍तरि :

कुमार सौवीर

लखनऊ : प्रकृति ने धरती बनायी। धरती ने खुद को शतरूपा बनाया। धरा, वायु, जल, पादप यानी पौधा, झाड़, लता से वृक्ष तक बनाये। लेकिन सबसे अहम और केंद्र बनाया प्राणी। जैसे सूरज के लिए बाकी ग्रह, ठीक उसी तरह प्राणी के लिए पूरी हरा-भरा और विभिन्‍न रंगों से सजी धरा। उसमें सबसे महत्‍वपूर्ण बनाया मानव। मानव के लिए पूरी धरा बना डाली।
इनमें मानव के लिए सबसे उपयोगी बनाया शैवाल से लेकर वृक्ष तक पादप को मानव-सुविधा हेतु ओषधि के तौर पर विकसित करने की समझ दी। ऐसी समझ रखने वालों को वैद्य बनाया, जिन्‍हें भैषज्ञ कहा गया। उनकी संग्रहित जानकारियों को एक विशाल ग्रंथ-श्रंखला के तौर पर विकसित किया, जिसका नाम रखा आयुर्वेद। चार वेदों से इतर, लेकिन मानव में वैचारिक-आध्‍यात्मिक विकास के लिए चार वेद और मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आयुर्वेद। आयुर्वेद की सेवा के लिए पूरा जीवन खपाने देने वाले विभिन्‍न क्षेत्र गुण के लिए माहिर वैद्यों को एकमेव स्‍वर देने के लिए आयुर्वेद के सर्वोच्‍च औषध-ईश को धन्‍वन्‍तरि भगवान के तौर पर स्‍थापित किया गया। धन्‍व‍न्‍तरि को जिम्‍मा दिया गया कि वह अपने अधीनस्‍थ विशेषज्ञों को मानव के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए कल्‍याण के ज्ञान को समाज तक पहुंचा कर प्राणी की प्राण-रक्षा और आयुष उपलब्‍ध करायेंगे। खुद में गम्‍भीर दायित्‍वों को समझने-समझाने के लिए उन ओषधि-विशेषज्ञों ने खुद को को ही भगवान धन्‍वन्‍तरि के गुण और आचरण को भी अंगीकार कर लिया। हजारों बरस तक इन धन्‍वन्‍तरियों ने निष्‍पाप भाव मानव के तप्‍त, पीडि़त और आर्तभाव को समझा और उसका समाधान व निदान के लिए अध्‍ययन किया, विमर्श किया और अन्‍तत: मानव-कल्‍याण के लिए प्राण-प्रण से युद्ध किया।
अंग्रेजी पढ़ाई-लिखायी में इन को डॉक्‍टर कहा जाने लगा। अंग्रेजी में गुटर-गुटर करके दूसरे विधा वाले स्‍वास्‍थ्‍य-वैज्ञानिक को बॉस्‍टर्ड, बुलशिट और फक जैसे नामों से पुकारा और ऐसे वैद्य को निचला दर्जा देकर खुद को सबसे ऊंचे पायदान पर स्‍थापित कर लिया। उन्‍होंने स्‍वयं को हिप्‍पोक्रेट के साथ ही साथ आयुर्वेद वाले धन्‍वन्‍तरि जैसी उपाधि भी अपने मुकुट में टांक डाली। महान लेखक प्रेमचंद की कहानी मंत्र में डॉक्‍टर चड्ढा और एक ओझा की कहानी आप पढ़ लीजिए तो या तो डॉक्‍टर चड्ढा और उनकी फर्जी औलादों का पिछवाड़ा छिन्‍न-भिन्‍न हो जाएगा, या फिर वे ऐसे समर्पित ओझाओं की भावनाओं को आत्‍मसात कर फफक कर रो पड़ेंगे और भविष्‍य में धन के बजाय दायित्‍व को सर्वोच्‍च प्राथमिकता दे देंगे।
लेकिन सिर्फ यहीं तक होता, तो कोई बात नहीं। चकाचौंध बाजार की चालबाज और फरेबी दुनिया के बनियों के साथ इन डॉक्‍टरों ने एक भयावक दुरुभि-संधि कर ली। चूंकि उनका दायित्‍व और समर्पण अब तक मानव-कल्‍याण से कोसों दूर चला जा चुका था, और जाहिर है कि उनके पास भी मेधा, ध्‍यान और ज्ञान भी बेहद बिकाऊ हो कर बिलकुल सड़ांध मारते एकांगी तक सिमट गया। नतीजा यह कि सभी मूर्खों ने धन्‍वन्‍तरि-दिवस को धनतेरस जैसे अवसर में तब्‍दील कर दिया। इसलिए उन्‍होंने बाजारू बनियों के साथ मिल कर खुद को बर्तन, चम्‍मच ही नहीं, बल्कि औकात के हिसाब से बेशकीमती आभूषणों की बिक्री तक पहुंचा दिया। नारा यह दिया गया कि समृद्धि से ही आयुष और स्‍वास्‍थ्‍य की श्रेष्‍ठता आंकी जा सकती है। अर्थ यह कि पूरे साल भर इन अंग्रेजी धन्‍वन्‍तरि भगवान की दूकाननुमा डिस्‍पेंसरी, अस्‍पताल, नर्सिंगहोम वगैरह की सेवा में अपना धन लगातार अर्पित करते रहे, और उसके बाद साबित करने के लिए कि तुम स्‍वस्‍थ हो, इसलिए साल में एक दिन धनतेरस के दिन बाजार के चमाचम दूकानों में खरीददारी करके उसे साबित भी करो। साबित करो कि सरकारी अस्‍पताल में सब फर्जीवाड़ा है, वहां से दूर रहो। सरकारी अस्‍पताल और कर्मचारी तो पूरे मस्‍त। उन्‍हें फ्री-फंड में प्राइवेट प्रैक्टिस का सुनहला मौका मिल गया। हां, कुछ चूतिये धन्‍वन्‍तरि में आज भी सरकारी अस्‍पताल में मरीजों में चिकित्‍सा, आयुष और स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति समर्पित हैं।
लेकिन उसके बाद तो ऐसे अंग्रेजी धन्‍वन्‍तरियों ने अपने ज्ञान को सड़क-छाप बना डाला। उधर आयुर्वेद और दीगर पैथी के समर्पित लोगों की हालत बुढ़ाते यौवन में श्‍लथ-अंग जैसी हो गयी। इनमें जो बिकाऊ हैं, वे खुद की डिग्री छिपा कर खुद को सर्जन के तौर पर स्‍थापित कर चुके हैं और बाकी जन्‍मना चूतिया टाइप अंग्रेजी एमबीबीएस उन आयुर्वेदिक सर्जनों का अण्‍ड-मण्‍ड सहलाते हुए अपनी दूकान चलाने पर मजबूर हैं।
अब हालत यह है कि इन अंग्रेजी धन्‍वन्‍तरियों को अपने बिकाऊ बनियागिरी की गुंडागर्दी से बचाव के लिए अपनी यूनियन की जरूरत है, जिसे आईएमए जैसा नाम दिया जाता है। यह लोग चिकित्‍सा के लिए बात-बात पर मोटी रकम उगाहते हैं। लेकिन उसके पहले तो भारी रकम लेकर भर्ती कर लेना और फिर चिकित्‍सा के पहले हजारों की जांच-परख की सलाहें। इनमें बड़ा हिस्‍सा कमीशन का होता है। सरकारी अस्‍पताल की जांचें उनके लिए हराम है, क्‍योंकि उन्‍हें वहां कमीशन के लिए धेला भर रकम नहीं मिल पाती है। उसके बाद खुद की फार्मेसी है, जिस पर केवल उसी अस्‍पताल के डॉक्‍टरों की दवा ही मिलती है। इन दवाखानों की दवाओं की सप्‍लाई सीएमओ दफ्तर के बड़े अफसरों के बेटों-बेटियों या बीवियों के नाम पर होती है। ऐसे सीएमओ अफसर नर्सिंग होम वगैरह के लिए मोटी रकम उगाहते हैं। फर्जी अल्‍ट्रासाउंड सेंटर खुले हैं, धड़ल्‍ले से, जिसमें सीएमओ दफ्तर के बीसियों बरस से कुर्सी पर जमे लोग नियमित रूप से जमे हैं, और हफ्ता वसूलते हुए जनता को ज्ञान देते हैं। भाजपा विधायक ऐसे धंधों में सबसे अव्‍वल हैं। निजी नर्सिंग होम तक में गम्‍भीर मरीजों को भी भर्ती कर लिया जाता है।
ऐसे डॉक्‍टर तनिक भी बवाल होने पर चिल्‍ल-पों करते हुए कि उन्‍हें सम्‍मान और सुरक्षा चाहिए। सरकार और प्रशासन भी इसके लिए तत्‍पर रहता है, क्‍योंकि इस लूट में उनका भी बड़ा हिस्‍सा होता है।
अब बताइये कि अगर आपके साथ अगर ऐसा होता है तो आप क्‍या करेंगे ऐसे बिकाऊ, रंगदारी वसूलते और गुंडागर्दी करते धन्‍वन्‍तरियों के साथ, जिनके चलते आपका स्‍वास्‍थ्‍य ही नहीं, बल्कि चैन, चिकित्‍सा और उनका भविष्‍य भी बर्बाद हो जाता है? उनके साथ आप सम्‍मान और सुरक्षा करेंगे, या फिर जूता लेकर उनका भरसक कुटम्‍मस करेंगे ?

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