कबीर की मां के संताप को महसूसिए और खुद पर शर्म कीजिए

मेरा कोना

अभद्र-अश्लील शब्दों पर टिकी बनारसी लोक-संस्कृति जिम्मेदार

कबीर को महान मानने से पहले उस मां की पीड़ा को जानिये

कुमार सौवीर

लखनऊ : बचपन से ही पढ़ता रहा हूं कि हमारे देश के महान सुधारवादी संत-कवि कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ, नीरू नामक एक नि:संतान जुलाहा-दम्‍पति ने इस बच्चे को कबीर का नाम दिया, साधु रामानंद के चरणों में कबीर ने खुद का उद्धार किया और काशी-वाराणसी के कठमुल्लाओं-पंडतों को रौंदते हुए जनमानस में मानववाद का अमृत पिलाया।

धन्य हैं कबीर, नीरू जुलाहा, रामानंद और उनकी कालजयी सुधारवादी कविताएं-लाइनें। मगर सवाल तो यह है कि इस पूरे कर्मकाण्ड में मां कहां हैं। मेरा मतलब कबीर की मां, जिसे कभी हम अपनी मां, आपकी मां और पूरी दुनिया की मां बताते नहीं थकते हैं। मां के नाम पर कसीदे काढ़ते रहते हैं, जिस पर हमारे-आपके जीवन के हर अंग  पर जिस महिला की सनातन छाप पड़ती रही है। जिसे हम सभ्यताओं की जननी यानी आधार यानी धरती मानते हैं।

वह मां, जिसे लोगों द्वारा कभी विधवा का नाम दिया जाता है, तो कभी किसी ब्राह्मण परिवार की उस युवती है, यानी विवाह के बाद ही अपने पति को खो देने वाली। वह अपने गर्भस्थ बच्चे को प्रसव के ठीक बाद कहीं फेंक देती है। इतना ही नहीं, उस बेवा के प्रसव का स्थान भी काशी भी बता दिया जाता है।

कबीर से जुड़े यह सारे तथ्य कबीर के बाद से ही लगातार जन-मानस से जुड़े रहे हैं। लेकिन हकीकत तो यह है कि यह तथ्य नहीं हैं, दरअसल सवाल हैं जो हमारी आपराधिक मानसिकता का प्रमाण देते हैं। मेरा मानना है कि यह सारे के सारे कपोल-कल्पित तथ्य केवल गल्‍प हैं, गप हैं। यथार्थ नहीं। इनका इस्तेमाल खोज के तथ्यों की तरह नहीं, बल्कि सड़कछाप चर्चा में रोचक भाव डालने के तहत ही साजिशन हुआ है, ताकि चटखारा मसालेदार बन जाए। तथ्य यह तो है कि कबीर के साथ जुड़ी यह सारी नौटंकी एक सम्पूर्ण प्रश्न‍ है। घिनौनी सोच ने विष्ठा बिखेर डाली और साहित्यकारों ने उसे पूरे समाज के चेहरे पर पोत दिया। इसकी जननी-भूमि बनी बनारसी की अभद्र-अश्लील शब्दों पर टिकी ठिठोली की शैली वाली लोक-संस्कृ्ति। जी हां, यही तो पूरा षडयंत्र हुआ, जिसका मकसद महिला के चरित्र को हमेशा-हमेशा के लिए हीन-तर बनाना ही था।

कबीर से जुड़े सवाल बहुत गुरूतर हैं और बेहिसाब हैं। सबसे पहला सवाल तो यह है कि लोगों को कबीर की मां का पता कैसे चल गया कि वह विधवा ब्राह्मणी के अवैध पुत्र थे। तो पहले बात तो अवैध संतान पर ही हो जाए। नैसर्गिक रिश्तों को सामाजिक ताना-बाना तैयार करने वाले मानवीय दबंगों ने अवैध करार दिया है, यह बात तो समझ में जबरिया ही सही, समझ में आती है। लेकिन एक महिला की कोख में पलती या जन्मी संतान किस रिश्ते पर अवैध हो सकती है, यह मेरी समझ से परे है।

नजीर आपके सामने ईसाइयों के धर्म में है। मेरी के पुत्र थे जीसस, और वे मदर वर्जिन कही जाती हैं। यानी अविवाहित होते हुए भी उन्होंने एक बच्चे को हासिल किया और उसे जन्म भी दिया। दूर ही क्यों जाते हैं, दूसरी सशक्त नजीर तो हमारे मुम्बई में ही है। सिने जगत की मशहूर अदाकारा रह चुकी हैं नीना गुप्ता, जिन्होंने वेस्टइंडीज के एक बड़े क्रिकेटर से अपने बच्चे को हासिल किया और उसे अब तक उसे पूरे गर्व के साथ पालती रही हैं। खैर,

दूसरी बात यह कि वह महिला या तरूणी की संतान अवैध रिश्तों का ही प्रतिफल थी, इसका ढिंढोरा मचाने का औचित्य क्या है। बल्कि इसका ढोल बजाने का मतलब तो सीधे बलात्कारी मानसिकता का ही परिचायक है। यह भी तो हो सकता है कि उस मां की कोख में किसी बलात्कारी का पाप पल रहा हो। और अगर नहीं, तो अगर किसी युवती ने परिस्थितिजन्य भावावेश में किसी संतान को जन्म, दे दिया तो उसमें ढिंढोरा क्यों मचाया जाए। एक तो दबंगों की गुंडई और उस पर उसकी संतान पर हल्ला। यार, यह सारा गड़बड़झाला समझ में ही नहीं आ रहा है। ठीक उसी तरह, जैसे किसी तरूणी के साथ बलात्कार हुआ और उसके बाद से आज तक अदालतों में उस बलत्कृत युवती के माथे पर हमेशा-हमेशा के बलत्कृत-युवती का ठप्पा लगा दिया जाए।

तीसरी बात यह कि लोगों ने किस तर्क और आधार पर इस युवती को विधवा करार दे दिया गया। चौथी बात यह कि यह युवती ( भले ही वह विधवा ही रही ) ब्राह्मणी ही कैसे स्थापित हो गयी। किसी क्षत्रिय, ललाइन, मुसलमानिन, चमारिन, बनियाइन, भुजवाइन आदि जाति की भी हो सकती थी। न भी हो तो भी यह समझ में नहीं आता कि इस प्रकरण में युवती अथवा किसी विधवा की जाति को शामिल कैसे किया जा सकता है।

अरे एक सामान्य अथवा किसी मुसीबतजुदा युवती की पहचान क्या किसी अवैध रिश्तों पर शिशु जन्‍म देने वाली भर ही है। क्या ऐसे अनौचित्य सवालों को उछाल कर हम क्या कबीर जैसे महान शख्स की महानतम मां पर लांछन नहीं लगा रहे हैं। बहुत जल्दी नहीं है मुझे। फुरसत में इस सवाल पर अपना दिमाग मथियेगा और जरूरी समझें तो नामर्द दबंगों को जवाब दीजिएगा जो औरत की कोख को गरियाना अपना धर्म समझते हैं।

लेखक कुमार सौवीर पत्रकार हैं। उनसे kumarsauvir@gmail.com अथवा kumarsauvir@yahoo.com या फिर मोबाइल 09415302520 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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