गुलजार ने तो शब्द को ही पतुरिया बना डाला

मेरा कोना

 

प्रचलित शब्द रायता फैलना और रायगॉं शब्द अलग-अलग

कुमार सौवीर

रायगॉं बनाम रायता।

अवधी लोगों ने तो खैर अपभ्रंश की परम्परा का पालन किया होगा, लेकिन गुलजार तो पढ़े-लिखे रहे हैं। उन्होंने कैसे रायता फैला दिया।

बहराइच के विश्वेश्वरगंज के कन्या जूनियर स्कूल में 21 साल पहले प्रधानाचार्य की पद से रिटायर हुईं मेरी मां श्रीमती सत्यप्रभा त्रिपाठी ने आज यह खुलासा किया। मैंने किसी संदर्भ में कह दिया था कि बहराइच की सड़कें तो पूरी तरह रेगा हो गयी हैं।

दरअसल, हम अवधी लोग बर्बाद भाव के लिए रेगा शब्द का ही प्रयोग करते हैं।

लेकिन मां ने अपनी शिक्षिका प्रवृत्ति के तहत मुझे तत्काल सुधार दिया। बोलीं:- रेगा नहीं, रायगॉं होता है, जो उर्दू का शब्द है।

आपको बता दें कि शहरीकरण ने स्लैंग का प्रचलन-परम्परा लागू की है। पटना, लखनऊ, दिल्ली समेत उत्तरी-पश्चिमी राज्यों की बोली-भाषा में यह रोगाणु महामारी की तरह पसर गया है।

लेकिन दुख की बात है कि गुलजार ने बंटी और बबली में ऐश्वर्या राय पर अमिताभ-अभिषेक पर फिल्माये मुजरा-गीत के मुखड़े पर रायता फैलना का शब्द-प्रयोग किया है, जिसका मूल शब्द रायगॉं ही है। रायगॉं, यानी बिगड़ जाना, बर्बाद होना, सड़ जाना, विद्रूप हो जाना, वगैरह-वगैरह।

हमारे अजीज दोस्त हैं अहमद निसार। जौनपुर की शख्सियत है निसार म्यां। हालांकि उनका धंधा तो तम्बाकू-फरोशी है, लेकिन उनके दिमाग से जुबान तक शायरी बहती रहती है। मैंने पूछ लिया इस बारे। बोले:- रेग, रेगजार, रेत और रायगॉं एक ही खानदान के हैं, जिनकी आमद फारसी भाषा से है। जिसका अर्थ रेत या रेतीली जमीन से है। यानी निर्जन-अनुत्पादक भूमि। जबकि रायता का अर्थ अलहदा है। रायता फैलना का अर्थ बेमजा होना। रायता जितना भी पतला होगा, उसका स्वा द लगातार कम होता जाएगा।

शायर निसार ने एक वाकया बयान किया। बोले:- लखनऊ में एक बार फिराक, मजाज, जज्बी वगैरह शायर लोग अचानक रायता पर चर्चा करने लगे। सवाल उठा कि रायता को गजल में कैसे उतारा जाए, गजल में कैसे सराबोर किया जाए।

फिराक ने तजबीज किया:- टपक रहा है निगाहों से रायता कम कम।

मजाज साहब की सलाह थी कि:- रायता दाद-तलब है, मगर लज्जत महरूम-ए-निशात।

दाद-तलब मतलब प्रशंसनीय और महरूम-ए-निशात यानी स्वाद-नदारत। वगैरह-वगैरह।

शायर साहब निसार इस बारे में खूब जानकारियां परोसते हैं। कहते हैं कि रायता अगर बढिया बना है तो गाढ़ा होता है, टपकेगा नहीं। उसमें पानी ज्यादा हुआ तो बेकार। रायते की प्याली में उसकी हैसियत बनी रहनी चाहिए। खैर।

और कुछ भी हो, गुलजार ने अपनी इस फिल्म में ऐश्वर्या राय को मुजरावाली के तौर पर प्रस्तुत किया था। लेकिन यह अधिकार गुलजार को कैसे मिल गया कि वे किसी शब्द को पतुरिया या मुजरावाली बना डालें।

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लेखक कुमार सौवीर मूलत: पत्रकार हैं। उनसे kumarsauvir@gmail.com अथवा kumarsauvir@yahoo.com या फिर मोबाइल  09415302520 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

 

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