: इध्ध्र से उध्ध्र तक की बेहिसाब उगाही रकम पर खड़ा कर दिया रिप्पल : अस्पताल बनाना नहीं, अब सुपाल को अस्पताल पहुंचाने की राह मजबूत कर दी इन चूहा-मूसों ने : मंत्री को निकाल बाहर कर दिया खफा-मंत्रिमंडल ने, अस्पताल हो गया दक्खिन : कहानी राजा उड़ान-छल्लों की, जिन्होंने सपा में छेद कर दिया- आठ :
कुमार सौवीर
लखनऊ : (गड़म-घुड़ गमड़-घुड़ कड़म:कड़ कड़म-कड़ कडकड़ कड़कड़ घम्म कड़कड़ घम्म)
नट: नखलऊ वाले डिरेबर वाले मिश्रा जी ने, अपनी शिश्टर बिपाशा बशू को, उनके लाल-लाल गालों पर खुस होकर, दुराचारी अमर सिंह इष्टैल में अरबों के अस्पताल का तोहफा फरमाया है।
नटी: जिन बाबू ने दिया रूपइया, हाथ में लेकर लाली। वो तो मेरे जीजा लागैं, मैं लागूंगी साली।
( नगाड़ा चिल्लाय पड़ा, कडकड़ कड़कड़ घम्म)
नट: रिश्तेदारी मत जोड़। यह पैसा, स्वार्थ और पॉलिटिक्स की दुनिया है। सीधे नोट लेकर अपने ब्लाउज में ठूंस ले और चल शुक्रिया अदा कर दे।
नटी: (पान की लाली चुआती नटी बनी-ठनी और सीने तक अपनी चोटी लहराती हुई गायत्री की तरह मुस्की मारती है) चल भाग हौलट, मोदी के चलते रद्दी नोट बन चुके मेरे बर्खास्तशुदा सुपाल को, धीरे-धीरे, हौले-हौले, चिप्पल-रिप्पल से, उलट-पलट के, शुक्रिया अदा करती हूं।
( नगाड़ा फिर चिल्लाया, कडकड़ कड़कड़ कड़मकड़म कड़कड़कड़कड़कड़ ढम्म-घम्म)
नट: धत्त, बेशरम। यह रिप्पल क्या है ससुरी?
नटी: यह रिप्पल है, रिप्पल मुंहझौंसे करमजले। वह नहीं जो हमेशा नेता चूसा करते हैं।
नट: लेकिन यह तो बता कि यह है क्या?
नटी: यह है हराम की दौलत खड़ी की गयी अट्टालिका खिखिखिखिखिखिखिखिखि
नट: इसमें हंसने की बात हुई?
नटी: हुई क्यों नहीं? इसी रिप्पल ने तो सत्यानास कर दिया। प्रतीकों वाला गायत्री मंत्र पढ़-पढ़ कर जो कमाई प्रतीकों में हासिल हुआ, उसे तो अमर-गाथा के चंद्रकांता-संतति के जंगलों में छिपा लिया गया था। लेकिन जो रकम चिरागे-सिंघल के इशारे में जुटायी गयी, उससे अस्पताल बनने लगा। पांच सौ बेड का। लेकिन बर्खास्तगी के चलते मकान बेगैरती के साथ खाली करना पड़ा, और अस्पताल खुद ही वेंटीलेटर में चला गया, जहां सिलिंडर तक नहीं है ऑक्सीजन का। ईसीजी मशीन तक नहीं है। अब तो दिनरात लंगोट बांधो, उतारो वाला ही कार्यक्रम चलता है। पूरा अस्पताल ड्रेसिंग-रूम में तब्दील हो गया।
नट: काहे, पैसा कहां गया?
नटी: पैसा चला गया तेरी—– में। जुबान मत खुलवा। सारे ठेकों का पूरा फुल-फुल्टास पेंमेंट ही कहां हुआ था? एक-तिहाई ही बन पाया था कि अचानक कुर्सी खींच कर गच्च करा दिया उस भतीजे ने।
नट: फिर?
नटी: फिर क्या? बाबा जी का घण्टा। चौ-बप्पा भी कूद पड़े थे। मुलायमित से मर-सिंगा से कहला कर बवाल कराया कि अक्लेस को अक्ल आ जाए। भोत समझायो, के झगड़ा मती करो, वरना अगली सरकार की उम्मीदें दक्खिन लग जाएगी। लेकिन कछु नाय माना। खुद भी मरा और हमको भी मरवाय लियो। पुराने नोट अब चल नहीं रहे। कोठरी-दर-कोठरी में भरा है। उसे खत्म किया जाए, यह टेंसन और कपार पर चढ़ गयी। नदी में फेंक नहीं सकते। जला दें तो सरकार प्रदूषण का मुकदमा दर्ज कराके इस बुढापे में चक्की पिसवा ने दे, सबसे बड़ा डर यही है। अक्लेस का कोई भरोसा नहीं। पहले बचपन में भी मेरे उप्पर पेशाब करता था, अब तो भविष्य पर भी मूतना शुरू कर दिया है उसने। बहुत बदबू-बिसांध मारता है। रामदेव बाबा से फोन मिलवा रहा हूं कि वह कोई तरीका सुझाये, कुछ न हो सका, तो नोटों को गला कर नोट-अवलेह नाम की कोई टॉनिक ही बनवाय दे। कनवा बाबा बड़ा कारसाज है। उसे भी चूतियापंथी करने में खूब महारत है, जनता भी तो पक्की दर-चूतिया है। लेकिन आजकल एक भी फोन नहीं रिसीव नहीं करता। उसका सहारा वाला पार्टनर गोभी श्रीवास्तव पहले तो खूब जूतियां चमकाया करता था, लेकिन आजकल सुब्रत राय को खूंटे पर बिठा कर खुद रामबबवा की चेलाई-पेलाई में जुटा है। ठग-श्री के लिए दो सौ करोड़ी फिरौती अदा करने की कोशिश भी बंद कर दिया। हमारे लिए क्या करेगा। अब तो यही बचा है कि हम-सब सपरिवार उसी अस्पताल में भर्ती हो जाएं, जिसे बनाने का ख्वाब संजोया था, गाना भी गाया-सुनाया था कि:- खुशी-खुशी कर दो विदा, के बेटी राज करेगी। हद्द कर दिया इस अक्लेस ने, जिसे मैंने अलादीन का चिराग बनाने के लिए सपने संजाये थे, उसी अक्लेस ने तो अच्छे-खासे आदित्य तक को ढिबरी बना कर कूड़ेदान में फंक दिया।
नट: लेकिन रिप्पल क्या?
नटी: अरे कोई इस नट के मुंह में एक चुसनी-निप्पल ठूंस दो यार। बहुत बकबकाय रहा है।
नट: वह तो कर ही दोगी, लेकिन रिप्पल क्या है?
नटी: रिप्पल माने, कंस्ट्रक्शन कम्पनी। डिरेबर-बप्पा को जब लगा कि बिटवा शशांक शेखर नहीं बन पायेगा, तो उसने अपनी पूरी पूंजी रिप्पल पर लगा दी। बड़े-बड़े कुबेरों लोगों को मिलाया, नाकारा बेटा खोदीप को मालिक बना कर कम्पनी बनायी, मेरठ में फुलसियानी को फंसाया, एक बड़े वकील के बेटे की कम्पनी के साथ इलाहाबाद में धंधा शुरू किया, अमौसी के पास शार्प कम्पनी के साथ टाउन-शिप बनाने की लन्तरानियां छेड़ीं, शहीद-पथ पर क्षुद्र-तुच्छ के साथ गलबहियां लपेटीं। अमरसिंगा बीन बजा ही रहा था, पैसा उगलने वाले बड़े-बड़े विभागों से पैसा तो अनापशनाप आ ही रहा था, जैसे ब्रह्मा से शिव-केश की ओर दौड़ती भागीरथी गंगा की हाहाकारी लहरें। करम-कुकर्म भी बड़े-बड़े लोगों के पास थे, उनकी हरकतें भी बीमारी वाली ही थीं। ऐसे में सिंगाअमर ने चिरागे-सिंघल से मिल कर गोमती नगर में एक आलीशान अस्पताल बनवाना शुरू कर दिया।
नट: फिर?
नटी: फिर क्या। पहले तो पैटरनिटी का सुख लूटा किया करते थे, लेकिन आजकल डायरेक्ट मैटरनिटी लीव पर चले गये।
( नगाड़ा कड़कने लगा। बोला:-कड़ कड़, कड़ कड़, धिन्न धिन्न ता ता ताता धिन्न धिन्न तड़ाका ढम्म, ढम्म)
बड़े-बड़े बिलौटे टाइप कौवे-मूस मौजूद हैं इस कहानी में, जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज को खोद डाला। एक बिल से दूसरे बिल तक। जहां खोदना चाहिए, वहां भी, और जहां नहीं चाहिए था वहां भी खोद डाला इन खुदासे चूहों-मूसों-बिलौटों-सियारों ने। इन लोगों ने अपने निजी कुत्सित लाभों के लिए सपा का बण्टाढार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। इस पूरी श्रंखला-बद्ध कहानी को सुनने-पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- कहानी राजा उड़ान-छल्ला की
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