झूमा नशा सत्‍ता का, हवेली में तब्‍दील हुआ रैन-बसेरा

दोलत्ती

: नारा लगा कि यूपी के मिनी चीफ मिनिस्‍टर तो शिवपाल यादव हैं, पूर्वांचल में पारसनाथ : स्‍कूल, कोल्‍ड स्‍टोरेज समेत अकूत सम्‍पत्ति जुटायी पारसनाथ ने : बिलखती रही उषा विश्‍वकर्मा, जमीन जोती पारस ने :
कुमार सौवीर
जौनपुर : आज तो वहां पत्रकार और एक रिटायर्ड आईएएस अफसर की करतूतों ने माहौल को तबाह कर डाला है। लेकिन आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि जौनपुर में इसी जगह पर कभी एक लहराती बड़ी झील हुआ करती थी, जो अब नहीं है। इसी के बीचोंबीच जेसीज से ओलनगंज के बीच एक सड़क। झील के पानी का प्रवाह बना रहे इसके लिए एक सड़क के बीच एक बड़ा नाला नुमा पुल बनाया गया था। लेकिन करीब 25 बरस पहले इसी नाले-झील में एक इमारत बनायी गयी। इसे बनवाया तब के सांसद पारसनाथ यादव ने। अपनी जेब से नहीं, अपनी सांसद निधि से, और निर्माण कराया मुख्‍य विकास अधिकारी के निर्देश पर किसी सरकारी एजेंसी ने। इमारत का नाम था ओम रैन बसेरा। तब सरकार थी मुलायम सिंह यादव की, और पारसनाथ यादव उस वक्‍त शिवपाल सिंह यादव के खासमखास खेमे के सिपहसालार बन चुके थे। शिवपाल सिंह यादव के श्री-चरणों और करकमलों से इस इमारत का उद्घाटन पूरे हर्ष और उल्‍लास के साथ हुआ। इसी बीच नारा लगा था कि यूपी के मिनी चीफ मिनिस्‍टर तो शिवपाल यादव हैं, जबकि पूर्वांचल में पारसनाथ यादव।
दरअसल, इस इमारत को बनाने का मकसद बड़ा पुनीत और पवित्र तो था ही, साथ ही जन-कल्‍याण का एक लाजवाब नमूना भी था। दरअसल, पारसनाथ यादव चाहते थे कि उनके क्षेत्र में कोई भी शख्‍स बेहाल न रहे। अगर उसे कभी रहने की दिक्‍कत हो तो वह इस कि ओम रैन बसेरा में टिक जाए। लेकिन दुर्भाग्‍य तो देखिये कि जौनपुर में एक भी ऐसा व्‍यक्ति पारसनाथ यादव को नहीं मिला, जो इस लायक हो कि इस ओम रैन बसेरा में टिक सके। लेकिन इसके निर्माण के बाद जब इस ओम रैन बसेरा में रहने वाला ही कोई नहीं मिल रहा था, तो आखिर पारसनाथ यादव क्‍या करते। उन्‍होंने अपना सामान उठाया और सीधे इस ओम रैन बसेरा में स्‍थाई रूप से टिक गये।

फिर क्‍या था, एक के बाद एक नयी-नयी मंजिलें इस ओम रैन बसेरा की ऊंचाईंयों तक उचकने लगीं। मकान का आयतन बढ़ने लगा। ऐश्‍वर्य टपकने लगा। सड़क छोटी होने लगी। चूंकि अब यह पारसनाथ का मकान हो चुका था, इसलिए उनके चेले-चापड़ों ने भी अपने मकान में सड़क को घेरना शुरू कर दिया। नक्‍शा का तो कोई मतलब ही नहीं
बहरहाल, इस ओम रैन बसेरा में जिस ओम शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया है, वह पारसनाथ यादव के बेटे का ही है। पारसनाथ यादव के कई परिचित इसकी पुष्टि करते हैं। जौनपुर के कई वरिष्‍ठ पत्रकारों ने बताया कि जब-जब भी वे उस समारोह के कवरेज में वहां गये थे और वहां लगे शिलापट्ट को उन्‍होंने देखा भी था। एक बार नहीं, यह पत्रकार जब भी पारसनाथ यादव के घर गये, वह शिलापट्ट हमेशा दिखा। वे बताते हैं कि अभी करीब छह-सात बरस पहले तक ओम रैन बसेरा का शिलापट्ट उनके घर में दीवार पर जड़ा हुआ था। लेकिन बाद में पहले तो उसे पर्दे से ढांप लिया गया, और फिर अलमारियों से छिपा लिया गया। अब यह क्‍या स्थिति है, पता नहीं।
दरअसल, पारसनाथ यादव को राजनारायण ने मुलायम सिंह यादव को एक मंत्र दिया था। वह था खर्चा, परचा और चर्चा। यही मंत्र मुलायम सिंह यादव अपने चेले-चापड़ों को भी खुले हाथों बांटा-लुटाया करते थे। पारसनाथ को भी यह मंत्र मिल गया। लेकिन उन्‍होंने उस मंत्र का केवल खर्चा हिस्‍सा ही सुनने की जरूरत समझी। वे समझ गये कि खर्चा के लिए सम्‍पत्ति जुटाना अनिवार्य है, बाकी तो नश्‍वर-जीवन के नश्‍वर तत्‍व होते हैं। शरीर और आत्‍मा चला जाएगा, लेकिन सम्‍पत्ति संतानों में सुरक्षित रहेगी, ऐसी मान्‍यता थी पारसनाथ यादव की। सूत्र बताते हैं कि इसके लिए उन्‍होंने अपने मडि़याहूं में एक विद्यालय पर कब्‍जा किया। कई अन्‍य स्‍कूलों पर भी ऐसा दखल था। सेंट पैट्रिक स्‍कूल के आगे एक कोल्‍ड स्‍टोरेज को जिस तरह उन्‍होंने हासिल किया, उससे काफी चर्चा हुई। बताते हैं कि यह मामला भी राजस्‍व विभाग तक पहुंच गया था।
लेकिन सबसे ज्‍यादा दर्दनाक हादसा तो उषा वर्मा नामक एक महिला के साथ हुआ, जिसकी जमीन पर पारसनाथ यादव काबिज हो गये। लेकिन इस पीसीएस जिले के किसी भी व्‍यक्ति में इतना साहस नहीं जुटा पाया, कि वह पारसनाथ यादव की गुण्‍डागर्दी के खिलाफ एक शब्‍द तक बोल सके।

इस महिला उषा वर्मा की जमीन पर दिनदहाड़े पारसनाथ यादव कब्‍जाते रहे, उषा वर्मा चिल्‍लाती रही, कोर्ट-कचेहरी और पुलिसथाने पर दौड़ती रही, जहां तहां मदद के लिए गुहार भी लगाती रही, लेकिन शिराज-ए-हिन्‍द जौनपुर के शेर और जवां मर्दो ने उस आवाज पर कान देने में ही अपनी भलाई समझी। मुझे भी इस बात का हार्दिक क्‍लेष और दुख है कि मैं लाख चाह कर भी इस मसले पर हस्‍तक्षेप नहीं कर पाया। वजह यह कि आर्थिक संकटों के चलते मेरा लखनऊ से बार-बार जौनपुर आ पाना मुमकिन नहीं था। मेरे पास इतने आर्थिक संसाधन नहीं थे कि मैं इस खर्च को उठा पाता। उधर मेरा न्‍यूज पोर्टल भी आर्थिक संकट से घिरा होने के चलते अचानक ठप हो गया था, जिसमें होने वाले भारी खर्च को मैं उस समय तत्‍काल नहीं पूरा कर पा रहा था। (क्रमश:)

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