पत्रकार हैं झौव्‍वा भर, सैंडविच में खजाना लुट जाएगा

दोलत्ती

: प्रेस-कांफ्रेंस में सैंडविच की मांग वाकई बेहूदा है : पहाड़ा-बाबू ने इशारा कर दिया कि हमारी सीमाओं को जानिये :
कुमार सौवीर
जौनपुर : का हो पत्रकार जी ! सैंडविच क्‍यों खाओगे? हमारी जेब से क्‍यों खाना चाहते हो? बहुत जुबान लहर मार रही हो तो अपनी जेब को टटोलो, हमें बख्‍श दो। अपने पैसे से खाने की आदत डालो, वरना अपनी छीछालेदर कराने पर आमादा हो। आखिर कब तक यह चलेगा?
यह हालत है पत्रकारों की। पहाड़ा बाबू ने अपनी हैसियत के हिसाब से टनाटन्‍न चाय-समोसा की तैयारी की थी, लेकिन तुम लगे उस पर भी खखेड़ करने। वह तो गनीमत रही कि पहाड़ा-बाबू ने तुम्हारा सम्मान खूब किया। वरना कोई दूसरा होता तो तुम्हें तुम्‍हारी औकात में लाकर खड़ा कर देता। वह भी सरेआम। ठीक उसी तरह से, जैसे जुल्फी-बाबू किया करता था। वह पूरे दौरान अपना कामधाम तो ढेला भर नहीं करता था, लेकिन सिर्फ अपनी जुल्फियां वार्तालापों में गोते लगवाया करता था। तुमको बात-बात पर ठेंगा दिखाता था। और तुम बकलोल की तरह उसकी बकलोली कैच किया करते थे। कामधाम तो उसने तुम्‍हारे लिए एक चवन्‍नी भर का भी नहीं कराया। और आज वह तुमको खबर देने के लिए बुला रहा है, साथ में चाय-समोसा भी खिला रहा है, तो तुम को सैंडविच के सपने दिख रहे हैं। रजिस्‍टर्ड बेवकूफ और सम्‍पूर्ण नामाकूल कहीं के।
जी हां। ठीक यही हालत हुई है आज जौनपुर में। यहां हर गली-कोने पर, ठेले-चौराहे पर, शौचालय और स्कूल में और रेलवे स्टेशन से फायर ब्रिगेड होते हुए बस अड्डा तक आते-जाते व गुजरते लोगों से पहाड़ा सुनने के ख्वाहिशमंद पहाड़ा बाबू जी इतने पहाड़ा-प्रेमी बने कि जिले में उनका नाम ही पहाड़ा-बाबू मशहूर हो गया। जैसे मैन्‍यूस्‍पैलिटी बाबू, जैसे असलहा बाबू, जैसे ही नाजिर बाबू, ठीक उसी तरह पहाड़ा-बाबू। आज उन्‍हीं पहाड़ा-बाबू ने पत्रकारों से बातचीत करने के लिए उन्‍हें अपने यहां आमंत्रित किया था। मसला था कि जिले की तहसीलों में लगातार बढ़ती जा रहीं उन शिकायतों पर बातचीत करना जिसके तहत काश्‍तकारों की जमीनों की दाखिल-खारिज की शिकायतों की बड़ी शिकायत हो रही है।
पहाड़ा-बाबू चाहते थे कि इस समस्या का स्थाई समाधान खोज लिया जाए। उन्होंने इस बारे में एक रणनीति बनाई थी और इसीलिए उन्होंने आज पत्रकारों को बुलाया था। खबर फैलते ही कि पहाड़ा-बाबू ने पत्रकारों को बुलाया है, पत्रकारों में मारे जोश के हल्‍ला खड़ा हो गया। मजेदार मामला यह कि पहाड़ा बाबू का का निमंत्रण पत्रकारों की नजर में कुछ इस तरह आया, मानो चोटहिया जलेबी की चाशनी का कोई विशाल तालाब साक्षात उनके सामने आ गया हो। पत्रकारों की जुबान से लार टपा-टप्‍प चूने लगी, और वे अपनी जीभ को लफड़-सफड़ करते-करते सीधे पहाड़ा-बाबू के यहां पहुंच गए।

कई तो एक घंटा पहले ही पहाड़ा-बाबू के दरवज्‍जे पर अपना शीश टिका कर उसे चूमने लगे। कई लोग तो इस पहाड़ा-दरगाह की चौखट पर अपनी अरदास लेकर पहुंच गए थे। वे चाहते थे कि इसी बहाने अकेले में पहड़ा-बाबू से मुलाकात हो जाए, और वे अपने कुछेक प्राइवेट प्रैक्टिस टाइम काम-धंधे को निपटा लें। कम से कम, आज का दिन तो बढ़िया निपट जाए। बोहनी हो जाए। देखते ही देखते पहाड़ा-बाबू के कमरे में एक सौ से ज्‍यादा पत्रकार साहबान लोग किसी बोरे में एक-दूसरे के तले-उप्‍पर एडजेस्‍ट होने की कोशिश करने लगे।
तो साहब प्रेस-कांफ्रेंस के पहले ही पहाड़ा-बाबू खुद ही पहले अपने मुख्‍य द्वार पर मौजूद हो गये। ताकि पत्रकारों का स्वागत-सत्कार के लिए आगवानी कर सकें। पत्रकार भी टाइम से बहुत पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस रूम में डट गए। कई तो ऐसे पहले पहुंचे थे, ताकि अगली सीट पर काबिज हो जाएं और पहाड़ा बाबू की आंखों में आंखें डालकर अपना चौखटा दिखा सकें। मानो, अपनी माशूका को निहारना चाहते हों। जाहिर कर सकें कि सजनी हमहूं राजकुमार। उधर पहाड़ा-बाबू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले माहौल हल्का और दोस्ताना बनाने के लिए हल्की हंसी-मजाक का माहौल बनाना शुरु कर दिया। ताकि जो बाकी पत्रकार अभी तक न पहुंच पाए हों, उनकी प्रतीक्षा कर ली जाए।
इसी बीच पहाड़ा-बाबू ने अर्दली को इशारा करने के लिए घंटी बजायी। बोले कि पत्रकार जी लोगों को पानी-वानी पिलाओ भई।
इस पर एक बड़े पत्रकार ने अपनी बड़ी खूंखार निगाह सो पहाड़ा-बाबू को घूरा और बोले कि:- “पत्रकारों को सिर्फ पानी ही पिलाएंगे आप पहाड़ा-बाबू जी?”
“नहीं नहीं। आपके लिए गर्मागर्म स्‍वादिष्‍ट समोसा और चाय के साथ मिठाई की भी व्यवस्था है। आप कहिये तो अभी सर्व करा दिया जाए यह नाश्‍ता। “:- नौकरशाही में अपना जीवन घिस चुके पहाड़ा-बाबू ने तपाक से जवाब दिया।
लेकिन इस पर एक पत्रकार जी ने अपनी अनिच्छा का प्रदर्शन किया। कुछ रोष और हिकारत के अंदाज में कहा:- “मैं समोसा नहीं खाता। मेरे लिए सैंडविच मंगवा दीजिए।”
पहाड़ा-बाबू घाट-घाट का पानी पी चुके थे। तुर्की-ब-तुर्की बोले:- “कोई बात नहीं। सैंडविच ही मंगवा लेता हूं आपके लिए। लेकिन यह भी बताइए कि चाय के अलावा काफी मंगवा लूं या फिर कोई दूसरी व्यवस्था???”
पहाड़ा-बाबू के इस प्रश्‍नवाचक और झन्‍नाटेदार जवाबनुमा कमेंट को सुन कर सारे पत्रकार हो-हो करके हंस पड़े। जाहिर है कि पहाड़ा-बाबू का अंदाज और संकेत बिल्कुल साफ था, कि आवभगत करने की जिम्मेदारी बुलावा देने वाले की होती है, मेहमान की नहीं। मेजबान की तैयारियों में ही मेहमान को संतोष करना होता है। लेकिन इसके बावजूद, पहाड़ा बाबू ने उस पत्रकार के लिए सैंडविच मंगवा ही लिया। लेकिन संकेत जरूर दे दिया कि हम अपनी सीमाओं के तहत ही रहते हैं। सीमा से बाहर की ख्वाहिशें मत पाला कीजिए।

हम हमेशा आपका सम्‍मान करते हैं, लेकिन आप भी तो अपनी सीमाओं को पहचानने की जहमत फरमाइये।

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