जाकिर नाइक बनाम योगेश प्रवीण: कहां बिहारीलाल थे, और कहां मुरारीलाल

मेरा कोना

: कहां कहां के बाल हैं, कहां कहां के बाल : जमीन-आसमान का फर्क है जाकिर नाइक और योगेश प्रवीण में : एक नफरत बो रहा है तो एक इंसानियत के पौधे रोपने में जुटा है : एक ने सैकड़ों किताबें पढ़ी हैं, दूसरे ने सैकड़ों किताबें लिख डालीं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मेरे एक घनिष्‍ठ मित्र हैं। समझ लीजिए कि उनका नाम है फलाने। पढ़ेलिखे हैं और आईएएस की कुर्सी पर आसीन हैं। करीबी मित्रों के बीच गजब चर्चा करते हैं। पक्‍के किस्‍सा-गो। दुबली काया भले ही है, लेकिन मेधा में किसी किंग-कांग तक को पिछाड़ सकती हैं। शायरी-कविता में महारत है। किस्‍सों का मुकम्मिल खजाना हैं वे।

एक दिन उन्‍होंने मुझे एक किस्‍सा सुनाया। बोले:- दौर था निराला जी का। एक कवि हुआ करते, जिन्‍हें देखते ही निराला जी का मूड खराब हो जाता था। वजह उस महोदय का अंदाज और उनकी चाल-ढाल। सींकिया बदन था। तुर्रा यह कि यह कवि अपने पाजामा का नाड़ा एक हाथ से पकड़ते थे और दूसरे हाथ से कविता की डायरी। यह बात उस कवि को भी पता था कि निराला उन्‍हें पसंद नहीं करते, इसलिए वे किसी अनिष्‍ट-भय की आशंका से कनखियों से झांकते रहते थे। इस अदा से निराला जी का मूड और बिगड़ जाता था।

एक दिन एक जुगाडू कवि मुरारी लाल ने अपनी एक कविता का विमोचन के लिए कवि सम्‍मेलन आयोजित किया। मुख्‍य अतिथि बनाये गये निराला जी। उस सींकिया कवि को भी बुलाया गया था। मुरारी लाल ने कई कवियों से निजी अनुरोध किया था कि कवि सम्‍मेलन में उनकी कविताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा हो ताकि निराला जी पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़े।

इसके लिए कई उपमाएं भी सुझायी गयी थीं। मसलन, सींकिया कवि से कहा गया था कि वे मंच पर मुरारीलाल की तारीफ करते हुए उन्‍हें बिहारी जी के समकक्ष रखने का प्रयास करेंगे। इसके लिए ज्‍यादा मानदेय और शराब की धांसू व्‍यवस्‍था थी। खैर,

कवि सम्‍मलेन में कई वक्‍ताओं ने मुरारी पुराण सुनाया। निराला जी बोर हो रहे थे। जब सींकिया कवि को बुलाया गया तो निराला जी को कनखियों में झांकते हुए कवि ने माइक को थामा। सींकिया कवि ने गले तक दारू गटक रखी थी, लेकिन वह था बहुत स्‍पष्‍ट-वक्‍ता। कवि ने डायरी खोलने के बजाय सीधे एक शेर दाग दिया:-

“कहां कहां के बाल हैं, और कहां कहां के बाल।

कहां बिहारीलाल थे, और कहां मुरारीलाल।। “

बस फिर क्‍या था। सुनते ही निराला जी तमक कर उठे और सीकिंया की ओर लपके। सींकिया समझा कि निराला जी उसे उसकी अशिष्‍टता पर उसे पीट देंगे। उधर निराला जी मंच पर उठे। उस तोता कवि की ओर। भयभीत होकर तोता कवि भागने लगा लेकिन निराला जी ने लम्‍बे डग भरे और उसे लपक कर सीने से लगा लिया।

अब मुरारी लाल और बिहारी जी के संदर्भ में ताजा घटनाक्रम देखिये, डॉक्‍टर जाकिर नाइक और डॉ योगेश प्रवीण।

खुद को इस्‍लामी वैज्ञानिक कहलाने वाले डॉक्‍टर जाकिर नाइक इस समय दुनिया भर में आतंक की फसल लहलहाने के तौर पर कुख्‍यात हो चुके हैं। उन पर और उनके पीस टीवी को कनाडा, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, भारत और बांग्‍लादेश आदि अनेक देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है। भारत और बांग्‍लादेश में अब नाइक पर सख्‍त कार्रवाई की तैयारी चल रही है। इसलिए जाकिर नाइक फिलहाल खाड़ी देशों में ही छिपे हैं। जाकिर ने कई धर्मों की किताबें पढ़ी हैं और उसका मनचाहा संदर्भ लेकर वह कुरान और इस्‍लाम को सर्वश्रेष्‍ठ करार देना ही नहीं, बल्कि आतंकवाद को हलाल जायज करने का अभियान छेड़े है। उसकी तकरीरों ने मुस्‍लमानों के जेहन में जहर बोना शुरू किया है, नतीजा है ढाका हादसा। जाकिर नाइक केवल धर्म के नाम पर घृणा खोदता और बोता है।

जबकि लखनऊ के डॉ योगेश प्रवीण ने भी सैकड़ों ही नहीं, बल्कि हजारों किताबें पढ़ी हैं। इंसानियत की तलाश में लखनऊ के इतिहास को खोज निकालने में जिस शख्‍स ने सर्वाधिक और शायद इकलौती कोशिश की है, उनका नाम है डॉक्‍टर योगेश प्रवीण। मूलत: शिक्षक हैं योगेश प्रवीन। इसके पहले केवल अब्‍दुल हलीम शरर ने ही लखनऊ पर कोई किताब लिखी थी। कोई दो साल पहले। लेकिन वह केवल शुरूआत ही थी, योगेश प्रवीण ने उसे मुकाम तक पहुंचाया है। योगेश प्रवीण को बहुआयामी महानता और बहु-धर्म सद्भभाव के अलावा कुछ बोलने और देखने की फुर्सत ही नहीं। वे किसी भी विषय, धर्म, समूह या व्‍यक्ति को लेकर घृणा के बजाय उनकी खासियत और खुसूसियत पर बातचीत करते हैं। अवध और लखनऊ को लेकर किसी भी सवाल पर आप बातचीत कीजिए, डॉ योगेश प्रवीण का ऐसे किसी भी सवाल का मुंहजुबानी जवाब मौजूद है।

जाकिर नाइक जर्रा-जर्रा में घृणा खोजता और उलीचता है, जबकि योगेश प्रवीण लखनऊ के इतिहास में आपसी भाईचारा, मोहब्‍बत, स्‍नेह, अपनापन, रिश्‍ते और उनके बीच तरक्कियों की राह खोजते हैं। डॉ योगेश प्रवीण ने लखनऊ के इतिहास पर इतनी मेहनत की है जिसकी कोई तुलना ही नहीं। इतिहासकार के तौर उनकी किताबों और उनकी तकरीकों में हर क्षेत्र के कण-कण को समाया गया है।

मेरा निजी मानना है कि भले ही योगेश प्रवीण के अध्‍ययन का क्षेत्र खासतौर पर अवध और लखनऊ रहा हो, लेकिन उनकी तुलना महान इतिहासकार एएल बाशम से कम नहीं की जा सकती, जिन्‍होंने पूरे दुनिया की सभी बड़ी यूनिवर्सिटीज में अब तक सैकड़ों शोधार्थियों को पीएचडी करायी है। बेहद स्‍नेहिल और आत्‍मीयता से बातचीत करते हैं डॉ योगेश प्रवीण। आप कभी उनसे मिलिये, आप पायेंगे कि उनसे मुलाकात के बाद आपका कद काफी ऊंचा हो जाएगा।

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